Supreme Court Decision : सास-ससुर को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, कहा- इस कानून का हो रहा गलत इस्तेमाल
Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के एक मामले में सास-ससुर के पक्ष में फैसला सुनाया। दरअसल आपको बता दें कि सास-ससुर ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उनकी बहू द्वारा प्रताड़ना का आरोप लगाया गया था और मुकदमे को रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए इस खबर को पूरा पढ़ लें-
HR Breaking News, Digital Desk- (Supreme Court Decision) सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 498A (दहेज प्रताड़ना) के दुरुपयोग पर चिंता जताई है, जो महिलाओं को पति और रिश्तेदारों की क्रूरता से बचाने के लिए बनाई गई थी। कोर्ट (Court) ने माना है कि हाल के समय में वैवाहिक मुकदमेबाजी (matrimonial litigation) बढ़ी है, जिससे विवाह संस्था के प्रति असंतोष और टकराव बढ़ा है। कोर्ट इस कानून के दुरुपयोग पर लगाम लगाने और निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने से बचाने की कोशिश कर रहा है।
इसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत झगड़े के चलते पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ धारा 498ए जैसे प्रविधानों का हथियार की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
शीर्ष अदालत ने आइपीसी की धारा 498ए का हथियार की तरह उपयोग करने की प्रवृति पर जताई चिंता-
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद (marital dispute) के दौरान सामान्य से आरोपों के जरिये झूठा फंसाए जाने को अगर बगैर जांचे छोड़ दिया जाता है तो यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए इस अदालत ने अपने फैसलों के माध्यम से अदालतों को आगाह किया है कि जब पति के रिश्तेदारों और सास-ससुर के खिलाफ (against mother-in-law and father-in-law) प्रथम दृष्टया मामला न बनता हो तो उनके खिलाफ कार्यवाही आगे न बढाएं।
पटना हाई कोर्ट के फैसले को किया रद, सास-ससुर को दी राहत-
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के एक मामले में सास-ससुर के पक्ष में फैसला सुनाया। जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने पटना हाई कोर्ट (patna high court) के आदेश को रद्द कर दिया और सास-ससुर के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए और अन्य धाराओं के तहत दर्ज मुकदमे को भी खारिज कर दिया। सास-ससुर ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उनकी बहू द्वारा प्रताड़ना का आरोप लगाया गया था और मुकदमे को रद्द करने की मांग की गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा, विवाह संस्था को लेकर अब पहले से अधिक असंतोष और टकराव-
कोर्ट ने आइपीसी की धारा 498ए पर केंद्रित एक फैसले में कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य पति और ससुराल वालों द्वारा महिला पर की जाने वाली क्रूरता को रोकना था। यह धारा 1983 में शामिल की गई थी और इसका मकसद हिंसा को रोकना था। लेकिन हाल के दिनों में देश में वैवाहिक मुकदमेबाजी बढ़ गई है और विवाह संस्था पर अब पहले से अधिक टकराव है।
इसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत झगडे़ के चलते पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ 498ए जैसे प्रविधानों का हथियार की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में तथ्यों और एक अप्रैल, 2019 को दर्ज एफआइआर को देखकर पता चलता है कि याचिकाकर्ता (सास-ससुर) के खिलाफ सामान्य आरोप लगाए गए हैं। शिकायतकर्ता का आरोप है कि सभी अभियुक्त उसे मानसिक प्रताड़ना देते थे और उसका गर्भ गिराने की धमकी देते थे। याचिकाकर्ता ने सास-ससुर के खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाए हैं। आरोपों के अलावा उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं बताई गई है।
लगाए गए आरोप सामान्य हैं जो कि छोटे-छोटे झगड़ों के कारण लगाए गए कहे जा सकते हैं। स्पष्ट आरोपों के अभाव में सास-ससुर के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत देना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में यह अदालत उल्लेखित कर चुकी है कि आपराधित मुकदमेबाजी (criminal litigation) में बाद में बरी होने के बाद भी अभियुक्त पर गहरे निशान छोड़ता है इसलिए ऐसी प्रक्रिया को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।