Supreme Court : पति की प्रॉपर्टी पर पत्नी को बराबर अधिकार दिलाएगा SC का ये फैसला 

Supreme court decision : सुप्रीम कोर्ट हाउस वाइफ के हक़ में ये बड़ा फैसला लेने जा रहा है जिसके बाद हाउस वाइफ को पति की प्रॉपर्टी में बराबर का अधिकार मिल जायेगा | क्या है पूरा मामला, आइये जानते हैं 

 

HR Breaking News, New Delhi : मद्रास हाई कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में गृहिणियों की संपत्ति के अधिकार का दायरा बढ़ाते हुए कहा कि वो पति की संपत्ति में बराबर की हक़दार हैं. महिला अधिकारों के विशेषज्ञों ने इसे बड़ा फ़ैसला क़रार दिया है क्योंकि देश में पहली बार किसी अदालत ने पति की कमाई में पत्नी के योगदान को मान्यता दी है.

क्या है मामला?

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मद्रास हाई कोर्ट ने जिस मामले में ये फ़ैसला दिया है वह तमिलनाडु के एक दंपति से जुड़ा है.

इस जोड़े की शादी 1965 में हुई थी. लेकिन 1982 के बाद पति को सऊदी अरब में नौकरी मिल गई और वो वहीं रहने लगे.

लेकिन तमिलनाडु में रह रही उनकी पत्नी ने पति की कमाई से यहां कई संपत्तियां खरीद लीं.

ये संपत्तियां पति के भेजे पैसे से ख़रीदी गई थीं. पत्नी की कोई कमाई नहीं थी.

1994 में भारत लौटने के बाद पति ने आरोप लगाया कि पत्नी सभी संपत्तियों पर अपने मालिकाना हक़ का दावा कर रही है.

पति ने कहा कि पत्नी को उन्होंने जो गहने दिए थे उन्हें छिपा लिया गया.

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साथ ही पत्नी ने अपने कथित प्रेमी को पावर ऑफ अटॉर्नी देकर एक संपत्ति बेचने की कोशिश की.

इस मुक़दमे में पांच संपत्तियों को लेकर विवाद थे. चार संपत्तियां पत्नी के नाम पर ख़रीदी गई थीं. इनमें कडलूर में एक घर और एक प्रॉपर्टी शामिल थी. पांचवीं संपत्ति सोने के बिस्कुट, गहने और साड़ियों के तौर पर थीं, जो पति ने पत्नी को बतौर गिफ्ट दिए थे.

पति ने 1995 में निचली अदालत में केस कर इन पांचों संपत्तियों पर अपने मालिकाना हक़ का दावा किया. इनमें पत्नी को गिफ्ट में दिए गए सोने के बिस्कुट, गहने और साड़ियां भी शामिल थीं. गिफ्ट देने के बाद ये संपत्ति पत्नी की हो गई थीं.

पति ने दावा किया कि सभी संपत्तियां उनके पैसे से ख़रीदी गई हैं और पत्नी सिर्फ उसकी ट्रस्टी हैं. 2007 में इस शख्स की मौत हो गई और फिर उनके बच्चों ने इस संपत्ति पर अपना दावा किया.

अदालत ने दिए दिलचस्प तर्क

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अदालत ने कहा कि पत्नी घरेलू काम करके संपत्ति बनाने में योगदान देती है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि संपत्ति पत्नी के नाम ख़रीदी गई है या पति के नाम. पति या पत्नी ने अगर परिवार की देखभाल की है तो संपत्ति में बराबरी का हक़दार होगा. अदालत ने कहा कि पत्नी के घरेलू काम की वजह से पति के पैसे में परोक्ष तौर पर बढ़ोतरी हुई होगी, जिससे संपत्ति खरीदने में मदद मिली होगी.

अदालत ने कहा कि पति आठ घंटे की नौकरी करता है लेकिन पत्नी चौबीस घंटे काम करती है. अगर गृहिणी न हो तो पति को कई चीज़ों के लिए पैसे खर्च करने पड़ते. जबकि गृहिणी घर में कई भूमिकाएं निभाती हैं. वो खाना बनाती है. घर में डॉक्टर, इकोनॉमिस्ट समेत कई लोगों का काम एक साथ करती है. इससे पति को नौकरी करने में आसानी होती है.

अदालत ने कहा, "इन सारे कामों को करके पत्नी घर का माहौल आरामदेह बनाती हैं. इस तरह परिवार में उनका योगदान निश्चित तौर पर एक महत्वहीन काम नहीं है. ये बगैर किसी छुट्टी के 24 घंटे का काम है. इसकी तुलना पति के आठ घंटे की ड्यूटी से नहीं की जा सकती.’’

अहम फ़ैसला

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कई विशेषज्ञों ने इस फ़ैसले को मील का पत्थर कहा है. महिला अधिकारों की पैरवी करने वाली वकील और कानूनी विशेषज्ञ फ्लेविया एग्नेस ने कहा, "ये काफी सही फैसला है क्योंकि ये महिलाओं के घरेलू काम को मान्यता देता है."

पारिवारिक और संपत्ति से जुड़े मामलों की नामी वकील मालविका राजकोटिया ने कहा, "ये काफी अहम फैसला है. ये एक मील का पत्थर है. ये महिलाओं के लगातार अपने अधिकारों के लिए लड़ने का नतीजा है.’’

राजकोटिया ने बताया कि गाड़ियों की दुर्घटनाओं के मामले में क्लेम तय करने के वक्त जजों ने गृहिणियों की एक अनुमानित आय तय की है. लेकिन ये इतना कम है कि इसका कोई खास मतलब नहीं बनता.’’

‘’ये पहली बार है जब गृहिणियों के अधिकारों को सही अर्थों में मान्यता दी गई है.’’

इससे पहले बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अदालतों ने कई केस में गृहिणियों के घरेलू काम की कीमत हर महीने से 5000 से 9000 रुपये के बीच आंकी थी.

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