supreme court decision : प्रॉपर्टी मालिक को 40 साल बाद मिला मालिकाना हक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
HR Breaking News - (supreme court)। अक्सर संपत्ति विवाद के मामले पारिवारिक सदस्यों के बीच होते हैं, लेकिन कई बार किरायेदार व प्रोपर्टी मालिक के बीच भी गहरे विवाद हो जाते हैं, जिन्हें निपटने में लंबा समय लग जाता है। ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट में आया, जिसमें प्रोपर्टी (Property Rules) मालिक को लंबे समय बाद अपना हक मिल सका है। यह मामला राजस्थान के जयपुर से जुड़ा है, खबर में जानिये सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में दशकों से लटके पड़े इस मामले में क्या फैसला सुनाकर इस विवाद को सुलझाया।
कब शुरू हुआ था यह विवाद-
यह मामला (tenancy dispute) चार दशक पुराना है, जिसके अनुसार रवि खंडेलवाल नाम के एक शख्स ने 1985 में राजस्थान के जयपुर (jaipur property dispute) में किसी कंपनी से प्रोपर्टी खरीदी थी। तब वहां तुलिका स्टोर्स किराये पर रहता था। खंडेलवाल के द्वारा इस प्रोपर्टी को खरीदे जाने के बाद तुलिका स्टोर्स और खंडेलवाल के बीच विवाद बढ़ता गया। इस बढ़े हुए मामले को सुलझने में 40 साल गुजर गए।
जानिए यह पूरा मामला-
यह मामला 30 जनवरी 1985 से शुरू हुआ है। इस मामले की शुरूआत तब हुई जब रवि खंडेलवाल ने जयपुर में पॉश इलाके में एक प्राइम लोकेशन पर प्रॉपर्टी (Property Case) खरीदी थी। यह बहुत महंगी भी थी। इस प्रोपर्टी को रवि खंडेलवाल ने जयपुर मेटल इलेक्ट्रिक कंपनी से खरीदा था। प्रोपर्टी खरीदने के बाद रवि खंडेलवाल ने तुलिका स्टोर्स जगह खाली करने को कहा, लेकिन तुलिका स्टोर्स ने रवि खंडेलवाल का विरोध करते हुए जगह खाली करने से इंकार कर दिया।
किराएदार ने दिया टीनेंट लॉ का हवाला-
तुलिका स्टोर्स ने जगह को खाली करने को लेकर 'टीनेंट कंट्रोल ऑफ रेंट एंड इविक्शन एक्ट' (tenent law) का हवाला दिया। किराएदार ने कहा कि टीनेंट कंट्रोल ऑफ रेंट एंड इविक्शन एक्ट'(Tenant Control of Rent and Eviction Act) के तहत कोई भी मालिक किराएदार ( Tenant property rights) की मर्जी के खिलाफ 5 साल से पहले उसे जगह से खाली नहीं करा सकता है।
इस तरह के कानून का राजस्थान में पहले प्रावधान था। हालांकि, बाद में कानून कानून में बदलाव हुआ। रवि खंडेलवाल के बोलने के बाद भी जगह को खाली न करने पर मामला निचली अदालत से जिला अदालत, फिर हाईकोर्ट और आखिर में सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा, जहां उसकी समस्या का समाधान हो सका।
निचली अदालत में दो दशकों तक चला मामला-
जब इस मामले को निचली अदालत (lower court Decsion) में ले जाया गया तो वहा ये मुकदमा तकरीबन 17 साल तक चला। लंबे चौड़े विवाद के बाद अदालत ने किराएदार के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने कहा की रवि खंडेलवाल को प्रोपर्टी (property owner rights) 1985 में मिली थी और तुलिका स्टोर्स को यह प्रोपर्टी किराए पर 1982 में दी गई थी।
जिस समय में किराएदार को प्रोपर्टी खाली कराने के लिए कहा गया था, उस समय 5 साल की अवधि पूरी नहीं हुई थी। इसके बाद रवि खंडेलवाल (right of property owner) ने को अपनी ही प्रोपर्टी पर हक पाने के लिए खुब भागा-दौड़ी करनी पड़ी। रवि खंडेलवाल ने अपना हक पाने के लिए जिला अदालत में अर्जी दी। जहां खंडेलवाल के पक्ष में फैसला सुनाया गया। उसके बाद किरायेदार तुलिका स्टोर्स ने जिला अदालत के इस फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।
हाईकोर्ट ने इतने दिनों में लिया फैसला-
जिला अदालत (District Court) का यह मामला 2004 तक चला और 2004 में तुलिका स्टोर्स ने इस फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट(high court decision) ने भी इस मामले पर फैसला सुनाने में 16 साल लगा दिए।हाई कोर्ट में आए फैसले का हक प्रॉपर्टी के मालिक के खिलाफ आया यानी किराएदार के पक्ष में आया। इस फैसले पर विरोध करते हुए अब प्रॉपर्टी के मालिक खंडेलवाल ने 2020 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे किया विवाद का निपटारा-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Judgement) ने इस दशकों से अटके मामले को आखिरकार निपटा दिया और फैसला प्रॉपर्टी के मालिक के हक में आया। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी भी जताई कि प्रॉपर्टी पर कब्जे का ये विवाद 38 साल तक चला। कोर्ट ने संविधान 142 के तहत (Under article 142 of the constitution) इस विवाद का निपटारा किया और अदालत का कहना है कि इस केस का सही फैसला आने में इतना वक्त लग चुका है और अगर ये केस फिर अपील में जाता है तो इससे इंसाफ का मजाक होगा।
प्रॉपर्टी के मालिक ने कहा-
आखिरकार खंडेलवाल को 40 साल बाद अपना मालिकाना हक मिल गया और मकान (sampatti ke hak) के मालिक ने कहा कि इतने दशकों तक कोई केस लड़ना बहुत मुश्किल है।उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में वकील 3 से 5 लाख मांगते हैं और जो आम आदमी के लिए मुमकिल नहीं है, लेकिन वो ऐसा इसलिए कर पाए, क्योंकि वकील खंडेलवाल के पिता थे और इस वजह से उन पर फीस का कोई प्रेशर नहीं था। आज के समय में रवि खंडेलवाल (Landlord rights) की ये प्रॉपर्टी करोड़ों में हैं, जबकि किराए के तौर पर उन्हें 500 रुपये महीना मिल रहा था।