Tenant Rights : किराएदारों को मिले 5 अधिकार, अब नहीं चलेगी मकान मालिक की मनमर्जी
Tenant's rights - अपना खुद का नया घर खरीदने का सपना सभी देखते हैं। लेकिन हर साल प्रॉपर्टी के रेट में जबरदस्त बढ़ोतरी हो रही है जिसकी वजह से शहरों में मकान खरीदना महंगा हो गया है। ज्यादातर लोग कम बजट के चलते घर नहीं खरीद पाते हैं ऐसे में वह किराए के मकान में रहना पसंद करते हैं। लेकिन कई बार मकान मालिक अपनी मनमानी करना शुरू कर देते हैं। या तो आपका रेंट बढ़ा देंगे या एकदम से घर खाली करने को कहर देते हैं। अगर आप किराए के मकान में रहते हैं और ऐसी समस्याओं से बचना चाहते हैं तो आपको किराएदार के इन पांच अधिकारों के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है।
HR Breaking News (ब्यूरो)। आज के समय में घर बनाने के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत होती है, इस कारण तमाम लोग ताउम्र खुद का घर नहीं बना पाते और किराए के मकान में रहकर गुजर-बसर करते हैं। वहीं तमाम लोग नौकरी की तलाश में अपने घर को छोड़कर महानगरों में आते हैं और किराए के मकान में रहकर अपना काम चलाते हैं। लेकिन कई बार मकान मालिक मनमानी करते हैं और किराएदार की मजबूरी का फायदा उठाते हैं। कभी भी वे किराएदारों को किराया बढ़ाने के लिए कह देते हैं या अचानक से मकान खाली करने के लिए बोल देते हैं। ऐसे में किराएदारों को परेशान होना पड़ता है। किराएदार परेशान इसलिए होते हैं क्योंकि वे अपने अधिकार नहीं जानते। अगर आप भी Rent पर रहते हैं तो आपको किराएदार के कुछ अधिकारों के बारे में जरूर पता होना चाहिए, ताकि आपकी मजबूरी का कोई गलत फायदा न उठा सके।
कभी भी वे किराएदारों को किराया बढ़ाने के लिए कह देते हैं या अचानक से मकान खाली करने के लिए बोल देते हैं. ऐसे में किराएदारों को परेशान होना पड़ता है. किराएदार परेशान इसलिए होते हैं क्योंकि वे अपने अधिकार नहीं जानते. अगर आप भी Rent पर रहते हैं तो आपको किराएदार के कुछ अधिकारों के बारे में जरूर पता होना चाहिए, ताकि आपकी मजबूरी का कोई गलत फायदा न उठा सके।
किराएदार के अधिकार-
कानून कहता है कि रेंट एग्रीमेंट में लिखी समय सीमा से पहले मकान मालिक किराएदार को मकान से नहीं निकाल सकता. अगर किराएदार ने 2 महीने से रेंट न दिया हो या उसके मकान का इस्तेमाल कॉमर्शियल काम या किसी ऐसे काम के लिए कर रहा हो, जिसका जिक्र रेंट एग्रीमेंट में न हो, तो वो किराएदार से मकान खाली करने के लिए कह सकता है. लेकिन इस स्थिति में भी मकान मालिक को किराएदार को 15 दिनों का नोटिस देना पड़ता है।
अगर मकान मालिक मकान का किराया बढ़ाना चाहता है तो उसे किराएदार को कम से कम तीन महीने पहले इसके लिए नोटिस देना चाहिए. अचानक से किराया नहीं बढ़ा जा सकता. इसके अलावा मकान मालिक से बिजली का कनेक्शन पीने का साफ पानी पार्किंग जैसी साधारण सुविधा मांगना किराएदार का अधिकार है. कोई भी मकान मालिक इससे इनकार नहीं कर सकता।
रेंट एग्रीमेंट लागू होने के बाद अगर मकान का ढांचा खराब हो जाता है, तो उसे ठीक कराने का जिम्मा मकान मालिक का होता है. लेकिन अगर मकान मालिक उसे रेनोवेट कराने की स्थिति में नहीं है, तो किराएदार मकान का किराया कम करने के लिए कह सकता है. किसी विवाद की स्थिति में किराएदार रेंट अथॉरिटी से भी संपर्क कर सकता है।
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रेंट एग्रीमेंट लागू होने के बाद कोई भी मकान मालिक उसे बार-बार डिस्टर्ब नहीं कर सकता. अगर मकान मालिक किराएदार के घर रिपेयर से जुड़े किसी काम या दूसरे मकसद से घर आना चाहता है तो उसे कम से कम 24 घंटे पहले किराएदार को लिखित नोटिस देकर सूचित करना चाहिए.इसके अलावा अगर किराएदार घर में नहीं है तो मकान मालिक उसके घर के ताले को नहीं तोड़ सकता और न ही उसका सामान घर से बाहर निकाल सकता है।
किराएदार को हर महीने किराया देने पर रसीद लेने का अधिकार है. अगर मकान मालिक समय से पहले किराएदार को निकालता है तो कोर्ट में रसीद को सबूत के तौर पर दिखाया जा सकता है।
11 महीने के लिए ही क्यों बनता है रेंट एग्रीमेंट-
जब भी हम किराए (Rent) पर घर लेते हैं, तो रेंट एग्रीमेंट बनवाना पड़ता है. रेंट एग्रीमेंट (Rent Agreement) में किराए से लेकर और भी कई तरह की जानकारियां लिखी रहती हैं. रेंट एग्रीमेंट हमेशा 11 महीने के लिए ही बनता है. अगर आप कभी भी किराए के मकान में रहे होंगे या अभी भी रह रहे हैं, तो आपको पता ही होगा कि रेंट एग्रीमेंट 11 महीने के लिए ही बनता है. अब ऐसा क्यों होता और इसके पीछे की वजह क्या है? चलिए समझ लेते हैं।
दरअसल, भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 (डी) के तहत, एक साल से कम अवधि के लिए रेंट एग्रीमेंट या लीज एग्रीमेंट का पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है. इसका मतलब ये है कि मकान मालिक 11 महीने का ही रेंट एग्रीमेंट बना सकते हैं।
कानून के जानकार बताते हैं कि हमारे देश के पेचीदा कानूनों और अधिकतर कानूनों का किराएदारों के पक्ष में होना इसकी एक बड़ी वजह है. ऐसे में अगर किसी किराएदार से संपत्ति के मालिक का विवाद हो जाता है और वो किराएदार से संपत्ति खाली कराना चाहता है, तो उसके लिए ये बहुत ही मुश्किल भरा काम होता है. थोड़ी सी चूक की वजह से संपत्ति के मालिक को अपनी ही संपत्ति के लिए वर्षों कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ जाती है. इसलिए 11 महीने का ही रेंट एग्रीमेंट बनाया जाता है।
रेंट टेनेंसी एक्ट (Rent Tenancy Act) में अगर किराए को लेकर कोई विवाद हो और मामला कोर्ट में जाता है, तो कोर्ट को अधिकार है कि वह किराया फिक्स कर दे. फिर मकान मालिक उससे अधिक किराया नहीं ले सकता है।
इसके अलावा 11 महीने के रेंट एग्रीमेंट किए जाने की बड़ी वजह स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस से बचना है. क्योंकि अगर रेंट एग्रीमेंट एक साल से कम अवधि के लिए है, तो उसपर देय स्टाम्प शुल्क अनिवार्य नहीं है. 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट (Rent Agreement) मकान मालिक के पक्ष में होता है. रेंट एग्रीमेंट का शुल्क किराएदार को भुगतान करना होता है।
11 महीने के नोटरी रेंट एग्रीमेंट का ड्राफ्ट तैयार करना कानूनी तरीके से वैध है. अगर कोई विवाद होता है, तो इन एग्रीमेंट को सबूत के रूप में पेश किया जा सकता है. इस तरह के किराए का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए 100 रुपये या 200 रुपये के स्टॉम्प पेपर का उपयोग किया जाता है।
जब भी कोई मकान मालिक अपनी प्रॉपर्टी को किराए पर देता है तो उसे डर रहता है कि कहीं किराएदार कुछ साल यहां रहने के बाद उसके घर पर कब्जा ना कर लें। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई किराएदार करीब 12 साल तक किराए से प्रॉपर्टी में रहता है तो वो उस पर अपना हक जता सकता है और कब्जा भी कर सकता है। कई बार इसी तरह के मसले शायद आपने अपने आस पास भी देखे होंगे।
अब सवाल यह बनता है कि क्या ये बाते सही हैं? क्या सही में ऐसा कोई नियम है कि कुछ साल बाद किराएदार संपत्ति पर हक जता सकता है या फिर ये बातें गलत हैं? आइए आज किराएदार और मकान मालिक से जुड़े इन जरूरी नियमों को ही जानते हैं। इन्हे जानने के बाद आप आसानी से अपना घर किराए पर दे सकते हैं। एक किराएदार और मकान मालिक को कुछ नियमों के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है।
जानिए क्या कहता है कानून
कानून के जानकारों के मुताबिक, अगर देखा जाए तो किराएदार किसी की भी प्रॉपर्टी पर हक नहीं जमा सकता है। किराएदार का मालिक की प्रॉपर्टी पर कोई हक नहीं है। लेकिन, इसका मतलब ये भी नहीं है कि वो ऐसा नहीं कर सकता है। यह अलग अलग परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में किराए पर रहने वाला व्यक्ति उस पर अपना हक जाहिर कर सकता है। ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के मुताबिक, एडवर्स पजेशन में ऐसा नहीं होता है। इसमें जिस पर प्रॉपर्टी का कब्जा होता है। वहीं बेचने का अधिकारी भी होता है। किरायदार को इस बात को साबित करना होगा कि 12 सालों से लगातार घर में उसका कब्जा है। कब्जा करने वाले किरायदार को टैक्स रसीद, प्रॉपर्टी डीड गवाहों के एफिडेविट आदि की भी जरूरत होती है।
कब कर सकते हैं कब्जा
अब हम आपको बता रहे हैं कि आखिर एडवर्स पजेशन क्या होता है? अगर कोई 11 साल से ज्यादा समय से रह रहा है तो वो उस प्रॉपर्टी पर अधिकार जमा सकता है। इसके उलट अगर कोई किराएदार है और मकान मालिक समय-समय पर रेंट एग्रीमेंट बनवा रहा है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। इस स्थिति में कोई भी व्यक्ति उनकी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकता है।
क्या करें?
अपने घर को किराए पर देने वाले मकान मालिक को सलाह दी जाती है कि वो समय पर रेंट एग्रीमेंट बनवाते रहें। ऐसा करने से आपके पास एक सबूत के तौर पर रहेगा कि आपने अपनी प्रॉपर्टी किसी दूसरे व्यक्ति को किराए पर दे रखी है। इस स्थिति में कोई भी किरायेदार उस प्रॉपर्टी का मालिक नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के अंतर्गत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन की वैधानिक अवधि 12 साल है। वहीं सरकारी अचल संपत्ति के मामले में यह अवधि 30 साल की है। बता दें कि अगर किसी व्यक्ति ने अचल संपत्ति पर 12 साल से अधिक समय से कब्जा कर रखा है तो कानून भी उसी व्यक्ति के साथ है।
मकान मालिक-किरायेदार का क्लासिक केस
पिछले 10 मार्च 2021 को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया था। कोर्ट ने इसे 'क्लासिक' केस बताया था। इस मामले में कोर्ट ने एक किराएदार के खिलाफ फैसला सुनाया था जिसने मकान मालिक को उसकी प्रॉपर्टी से तीन दशक तक दूर रखा था। कोर्ट ने किरायेदार पर साथ ही एक लाख रुपये की पेनल्टी लगाने के साथ-साथ मार्केट रेट पर 11 साल का किराया भी देने का आदेश दिया था।
यह मामला पश्चिम बंगाल के अलीपुर में एक दुकान को लेकर था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आदेश दिया कि दुकान को कोर्ट के आदेश के 15 दिन के अंदर मकान मालिक को सौंप दिया जाए। कोर्ट ने किराएदार को आदेश दिया कि मार्च, 2010 से अब तक बाजार रेट पर जो भी किराया बनता है, तीन महीने के अंदर मकान मालिक को चुकाए। कोर्ट ने अदालत का समय बर्बाद करने और मकान मालिक को कोर्ट की कार्यवाही में घसीटने पर भी किराएदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
क्या था मामला
यह मामला 1967 का है। लावण्या दत्ता ने अलीपुर में अपनी दुकान 21 साल के लिए लीज पर दी थी। लीज खत्म होने के बाद 1988 में मकान मालिक ने किराएदार से दुकान खाली करने के लिए कहा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब 1993 में सिविल कोर्ट में किराएदार को निकालने के लिए केस दाखिल हुआ जिसका फैसला 2005 में मकान मालिक के पक्ष में आया। इसके बाद 2009 में केस फिर कोर्ट में आया और 12 साल तक खिंचा।
किराएदार मकान मालिक नहीं है
मकान मालिक और किराएदार के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एक अप्रैल 2021 को भी एक अहम फैसला सुनाया था। कोर्ट का कहना था कि मकान मालिक ही किसी मकान का असली मालिक होता है। किराएदार चाहे जितने भी दिन किसी मकान में क्यों न रह ले उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि वह मात्र एक किराएदार है न कि मकान का मालिक। कोर्ट ने इस मामले में किराएदार को कोई राहत देने के इन्कार करते हुए उसे तुरंत मकान खाली करने को कहा था।
इस मामले में किराएदार ने करीब तीन साल से मकान मालिक को किराया नहीं दिया था और न ही वह दुकान खाली कर रहा था। दुकान मालिक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। निचली अदालत ने किराएदार को किराया चुकाने और दो महीने में दुकान खाली करने को कहा। मामला फिर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने करीब नौ लाख रुपये जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया। लेकिन किरायेदार ने इसे भी नहीं माना और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
मकान मालिकों के खिलाफ फैसला
आठ अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मकान मालिकों के खिलाफ फैसला दिया था। कोर्ट का कहना था कि अगर वास्तविक या वैध मालिक अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस पाने के लिए समयसीमा के अंदर कदम नहीं उठा पाएंगे तो उनका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा। उस पर जिसने कब्जा कर रखा है, उसी को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दे दिया जाएगा। अगर किसी ने 12 साल से अवैध कब्जा कर रखा है तो कानूनी मालिक के पास भी उसे हटाने का अधिकार नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति में अवैध कब्जे वाले को ही कानूनी अधिकार, मालिकाना हक मिल जाएगा।