Bank Cheque : चेक के पीछे साइन कब करने हाेते हैं, मुश्किल में फंसने से पहले आप भी जान लें नियम

sign on the back of a cheque -  आज के समय में भले ही फोन पे, गूगल पे आदि का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है। लेकिन फिर भी लोग बड़ी पेमेंट का भुगतान चेक के जरिए ज्यादा करते हैं और ये एक हद तक सबसे सेफ (how to be safe) भी है। आपने भी कई बार देखा होगा जब चेक भरते हैं तो उसके पीछे साइन (sign on cheque) किया जाता है। हालांकि, इससे जुड़े नियमों के बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं होती है। अगर आप भी चेक के जरिए ट्रांजेक्शन करते हैं तो आपके लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि चेक के पीछे साइन क्यों किया जाता है और कब किया जाता है। आईये नीचे जानते हैं इसकी कारण...

 

HR Breaking News (नई दिल्ली)।   आजकल पैसे से निकालने से लेकर जमा कराने तक बैंकिंग (banking rules for cheque) से जुड़े तमाम काम आजकल ऑनलाइन हो रहे हैं। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है कि बैंक चेकबुक का महत्व कम हो गया है। आप चेक के जरिए आसानी से किसी को भी पैसे दे सकते हैं। आपने अक्सर देखा होगा कि चेक से लेनदेन के समय हमेशा उसके पीछे साइन (sign on cheque) कराए जाते हैं। क्या आपने कभी ये सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है।  

 

 

 

 

चेक के पीछे साइन करते समय ध्यान रखनी चाहिए ये बात


बैंक चेक (sign on cheque) एक वित्तीय संस्थान या व्यक्तिगत कैश निकासी का एक लिखित गारंटी होता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि यह आमतौर पर एक बैंक को एक खाते से दूसरे खाते में एक तय राशि का भुगतान करने का एक लिखित आदेश होता है।  बैंक द्वारा चेक को दो पक्षों के बीच लेनदेन करने का एक सुरक्षित, संरक्षित और सुविधाजनक तरीका माना जाता है।

चेक पर या उसके पीछे साइन करने का बैंक की भाषा में एक खास मतलब होता है।  सभी तरह के बैंक चेक पर पीछे साइन नहीं किया जाता है। सिर्फ बियरर्स चेक पर ही पीछे के साइन किया जाता है। बियरर्स चेक उस तरह के चेक को कहा जाता है जिसे बैंक में जाकर जमा कराया जाता है और उसमें किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिखा होता है। उस चेक की मदद से कोई भी कैश बैंक से निकाल सकता है। बैंक बियरर्स चेक (Bank Bearers Check) को सहमति से जारी किया गया ट्रांजेक्शन मान लेता है। नियम के अनुसार इस तरह के चेक से हुए फ्रॉड की जिम्मेदारी बैंक की नहीं होती है। 

जान लें चेक से जुड़ी ये जरूरी बातें

चालू या बचत खाते के लिए चेक जारी किया जा सकता है।

केवल चेक पर नामित भुगतानकर्ता ही इसे भुना सकता है।

बिना तारीख वाला चेक अमान्य होता है।

एक बैंक चेक जारी होने की तारीख से 3 महीने के लिए वेलेड होता है। 

चेक के निचले भाग में 9 अंकों का एमआईसीआर कोड होता है जो चेक क्लीयरेंस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है।

चेक की रकम शब्दों और अंकों दोनों में लिखी होनी चाहिए।

चेक जारी करने वाले को बिना ओवरराइटिंग के चेक पर हस्ताक्षर करना चाहिए।

चेक पर प्राप्तकर्ता का नाम ठीक से लिखा होना चाहिए।

 

कब नहीं होती चेक पर साइन करने की जरूरत


जैसा कि हमने ऊपर बताया कि ऑर्डर या पेयी चेक पर पीछे साइन की जरूरत नहीं होती है। इसके अलावा बियरर्स चेक पर भी तब हस्ताक्षर की जरूरत नहीं होती जब कोई शख्स खुद के अकाउंट से ही चेक के जरिए पैसे निकालने गया होता है। साइन की जरूरत तब ही होती है जब कोई थर्ड पार्टी यानी तीसरा शख्स बियरर्स चेक के लेकर किसी और कहने पर उसका पैसा निकालने आया होता है।

इसलिए करवाते हैं बियरर्स चेक के पीछे साइन


अगर आप कोई बियरर्स चेक काट लेते हैं और गलती से वह चोरी हो जाता है तो इससे आपको बड़ा नुकसान हो सकता है। इस चेक में किसी व्यक्ति का नाम नहीं होता है इसलिए बैंक आपसे इसके पीछे साइन करवाता है। पीछे साइन किए बिना बैंक बियरर्स चेक को स्वीकार नहीं करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि इस चेक के जरिए किया जाने वाला ट्रांजेक्शन आपकी सहमति से हुआ है और इसमें किसी तरह की गलती होने पर उसके लिए बैंक जिम्मेदार नहीं होगा।

चेक के पीछे साइन को लेकर ये हैं नियम


कई बार चेक पर किये गए साइन को वेरीफाई करने के लिए भी बैंक चेक के पीछे साइन करवाते हैं। लेकिन यह केवल तभी जरूरी होता है जब कोई तीसरा व्यक्ति बियरर्स चेक लेकर बैंक के पास जाता है। अगर आप खुद के अकाउंट से पैसे निकालने के लिए बियरर्स चेक का इस्तेमाल करते हैं तो चेक के पीछे साइन करने की जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा पेयी चेक और आर्डर चेक के पीछे भी साइन नहीं किये जाते हैं। वहीं चेक का अमाउंट पचास हजार रुपये से ज्यादा होने पर बैंक एड्रेस प्रूफ भी लेता है। 

चेक बाउंस होने पर क्या होती है सजा


चेक बाउंस (Check Bounce) के मामले आए दिन सामने आते हैं और अदालतों में इस तरह के केस लगातार बढ़ रहे हैं। इससे जुड़े ज्यादातर मामलों में राजीनामा नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सज़ा दी जाती है।  चेक बाउंस के बहुत कम केस ऐसे होते हैं जिनमें अभियुक्त बरी किए जाते है। इसलिए ये जानना बेहद जरूरी है कि इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान हैं? लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम 2 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। हालांकि, आमतौर पर अदालत 6 महीने या फिर 1 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाती है।  इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के तहत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने निर्देश भी दिया जाता है। प्रतिकर की ये रकम चेक राशि की दोगुनी हो सकती है।


जानिये, सजा होने पर कैसे करें अपील


चेक बाउंस का अपराध 7 वर्ष से कम की सजा का अपराध है इसलिए ये जमानती अपराध की श्रेणी में आता है। इसके तहत चलने वाले केस में अंतिम फैसले तक अभियुक्त को जेल नहीं होती है। अभियुक्त के पास अधिकार होते हैं कि वो आखिरी निर्णय तक जेल जाने से बच सकता है।  
चेक बाउंस केस में अभियुक्त सजा को निलंबित किए जाने के लिए भी कोर्ट से गुहार लगा सकता है। इसके लिए वह ट्रायल कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के तहत आवेदन पेश कर सकता है। चूंकि किसी भी जमानती अपराध में अभियुक्त के पास जमानत लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सजा को निलंबित कर दिया जाता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के मुताबिक सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।