Bank Loan : लोन देते वक्त बैंक के एजेंट नहीं बताते ये बातें, आपको होना चाहिए पता

जब आप लोन लेते हैं तो एजेंट कमीशन में भी कमाते हैं. यह कमीशन इंश्‍योरेंस बेचकर और बढ़ जाता है. ऐसे में होम लोन के साथ धीरे से सिंगल प्रीमियम टर्म प्‍लान भी बढ़ा दिया जाता है.आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.

 

HR Breaking News (नई दिल्ली)।  आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर व्यक्ति लोन के लिए आवेदन करता है. बैंक इस बात को बखूबी समझते हैं. वे इस स्थिति का फायदा उठाने की पूरी कोशिश करते हैं. अब गेंद आपके पाले में है. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन्‍हें ऐसा करने देते हैं या नहीं. लेकिन, ऐसा भी तभी किया जा सकता है जब उनकी हर चाल का आपको पता हो.

एक उदाहरण देखते हैं. बैंक से फोन आता है, ''क्‍या आप पर्सनल लोन लेना चाहते हैं? अपने मूल्‍यवान ग्राहकों के लिए हम 9 फीसदी की बेहद कम दर पर लोन ऑफर कर रहे हैं. जी हां, फ्लैट 9 फीसदी सालाना.''

यह मैसेज अपने शिकार को फंसाने का चारा है. यह उन बहुत से तरीकों में से एक है जो ग्राहकों को बनाने के लिए रिलेशनशिप मैनेजर इस्‍तेमाल करते हैं. बैंक और गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के एजेंट भोले-भाले ग्राहकों को झूठे दावों और लुभावने वादों से बार-बार फुसलाते हैं.


9 फीसदी की दर पर पर्सनल लोन सस्‍ता लग सकता है. लेकिन, कुछ ग्राहक ही समझते हैं कि ब्‍याज का फ्लैट रेट ईएमआई के साथ लोन को देखने का सही तरीका नहीं है. हर एक ईएमआई मूल रकम को कम करती है. इसलिए ऐसे लोन का मूल्‍यांकन ब्‍याज की घटती दर (रिड्यूसिंग रेट ऑफ इंटरेस्‍ट) पर करना चाहिए.

रिड्यूसिंग रेट ऑफ इंटरेस्‍ट में जैसे-जैसे लोन की अवधि गुजरती वैसे-वैसे ईएमआई भी कम होती जाती है. वहीं, फ्लैट रेट में ऐसा नहीं होता है. अलबत्‍ता लोन की पूरी अवधि के दौरान एक ही तरह की ईएमआई का भुगतान किया जाता है. दोनों में पहली व्‍यवस्‍था ग्राहकों के लिए फायदेमंद है. लेकिन, इसका जिक्र कोई भी रिलेशनशिप मैनेजर नहीं करता है.

अगर लोन पांच साल का है तो 8 फीसदी फ्लैट रेट 15.7 फीसदी रिड्यूसिंग रेट के बराबर पड़ता है (ग्राफिक देखें). दुर्भाग्‍यवश इस बात को बहुत कम ग्राहक समझते हैं. उन्‍हें कम फ्लैट रेट का झांसा दिया जाता है और वे उसमें आसानी से आ जाते हैं.

जो ग्राहक इस बात को समझते हैं, उनके लिए बैंक स्‍टाफ के पास दूसरे हथियार होते हैं. लोन प्रोसेसिंग फीस इनमें सबसे पसंदीदा होता है. यह छोटी रकम होती है, अमूमन लोन की रकम का 1-2 फीसदी जिसमें 2,000 से 3,000 रुपये की सीमा होती है. लेकिन, ये चार्ज लोन की प्रभावी दरों को बढ़ा देते हैं.

यह तरीका भी बढ़ाता है लोन की कॉस्‍ट


एडवांस ईएमआई एक और तरीका है जिसके जरिये प्रभावी ब्‍याज दर को बढ़ाया जा सकता है. यह आसान ट्रिक है जिससे ग्राहक को मिलने वाले कुल कर्ज को कम कर दिया जाता है. इसके तहत ग्राहक से एडवांस में दो ईएमआई देने के लिए कहा जाता है. 14 फीसदी की दर से दो साल के लिए 5 लाख रुपये के लोन की ईएमआई 24,000 रुपये निकलती है. अगर आप दो ईएमआई अपफ्रंट दे देते हैं तो कुल दिया जाने वाला लोन घटकर 4.52 लाख रुपये रह जाता है. जबकि आपसे 5 लाख रुपये के लिए चार्ज किया जाता है.

क्‍यों ध्‍यान नहीं देते ग्राहक?


जब लोग लोन लेते हैं तो मंजूर होने वाली रकम को लेकर इस कदर चिंतित होते हैं कि उन्‍हें दो ईएमआई का पेमेंट करना बहुत भारी नहीं लगता. वे इसकी चिंता भी नहीं करते. लेकिन, सच यह है कि इन दो ईएमआई के पेमेंट से लोन की प्रभावी ब्‍याज दर 14 फीसदी से बढ़कर 16.6 फीसदी हो जाती है. अगर ग्राहक सवाल करते हैं तो उसका ध्‍यान यह कहकर भटका दिया जाता है कि फॉर्म में कमी थी, कुछ और डॉक्‍यूमेंट की जरूरत है या बस कुछ और फीचर की बात कह दी जाती है.

एप्‍लीकेशन पर हस्‍ताक्षर करा लेने पर होता है फोकस


यही वजह है कि लोन के एप्‍लीकेशन प्रोसेस को तेजी से निपटाया जाता है. लोगों को लोन डॉक्‍यूमेंट में दिए गए क्‍लॉज को न पढ़ने का समय दिया जाता है न समझने का. नियम और शर्तें तो वैसे भी इतने बारीक फॉन्‍ट में लिखे जाते हैं कि ग्राहक पढ़ ही न पाए. कुल मिलाकर लोन एप्‍लीकेशन पर हस्‍ताक्षर करा लेने पर पूरा फोकस होता है.


इंश्‍योरेंस को लेकर झूठ


जब आप लोन लेते हैं तो एजेंट कमीशन में भी कमाते हैं. यह कमीशन इंश्‍योरेंस बेचकर और बढ़ जाता है. ऐसे में होम लोन के साथ धीरे से सिंगल प्रीमियम टर्म प्‍लान भी बढ़ा दिया जाता है. यह पॉलिसी लोन लेने वाले को कवर करती है और कुछ हो जाने की स्थिति में उसके लोन का भुगतान करती है. देय प्रीमियम को लोन की राशि में जोड़ दिया जाता है ताकि ग्राहक को उसे अपनी जेब से नहीं देना पड़े. बता दें कि होम लोन के साथ इंश्‍योरेंस की बिक्री पूरी तरह से गैर-कानूनी है. बेशक आरबीआई बैंक को अपने हितों की सुरक्षा करने की अनुमति देता है. इसके लिए एसेट और कर्जदार को बीमित करने पर भी जोर दिया जाता है. लेकिन, यह इंश्‍योरेंस कहीं से भी खरीदा जा सकता है. बैंक इस बात के लिए जोर नहीं दे सकता है कि इंश्‍योरेंस उसी से खरीदा जाए. इस नियम के बारे में ग्राहक को कभी नहीं बताया जाता है.

मौखिक वादे किए जाते हैं


अगर ग्राहक को महंगी खरीद करने के लिए फुसला लिया जाए तो कमीशन बढ़ जाते हैं. कार लोन इत्‍याद‍ि में अक्‍सर ऐसा किया जाता है. कार के साथ रोडसाइड एसिस्‍टेंस कवर देने की बात की जाती है. कई एड-ऑन फीचर देने का वादा सिर्फ मौखिक रूप से कर दिया जाता है. इन्‍हें कभी पेपर पर नहीं दिया जाता है.