Success Story : जॉब न मिलने पर आत्म हत्या की सोचने वाली लड़की आज बन गई CEO 
 

स्‍कूल में अपनी टेढ़ी गर्दन और बोलने के भारतीय लहजे के कारण जो हमेशा हंसी का पात्र बनीं. कॉलेज के बाद लगातार नौकरी पाने में असफल होने पर जिन्होंने आत्‍महत्‍या करने तक की कोशिश की आज वही लड़की बन गई सीईओ। आइए जानते हे इनकी पूरी कहानी। 
 
 

HR Breaking News, Digital Desk- भारत के युवा चीफ एग्जिक्‍यूटिव ऑफिसर्स (CEO) में शामिल एडलवाइज एमएफ की सीईओ राधिका गुप्‍ता (Edelweiss MF CEO Radhika Gupta) की सफलता की कहानी काफी दिलचस्‍प है. स्‍कूल में अपनी टेढ़ी गर्दन और बोलने के भारतीय लहजे के कारण राधिका हमेशा हंसी का पात्र बनीं.

कॉलेज के बाद लगातार नौकरी पाने में असफल होने पर उन्‍होंने आत्‍महत्‍या करने तक की तैयारी कर ली, पर खुशकिस्‍मती से उनके दोस्‍तों ने मौके पर पहुंचकर उन्‍हें बचा लिया. एक बार नौकरी मिलने के बाद राधिका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 33 साल की उम्र में ही वे सीईओ बन गईं.

एक रिपोर्ट के अनुसार राधिका गुप्‍ता ने ह्यूमन ऑफ बॉम्‍बे को बताया कि उनके पिता एक राजनयिक थे. इस कारण उनकी शिक्षा भारत, पाकिस्‍तान, अमेरिका और नाइजीरिया में हुई. नाइजीरिया में उनके क्‍लासमेट उनकी टेढ़ी गर्दन और बोलने के भारतीय लहजे के कारण उनका मजाक उड़ाते थे और उसे अप्‍पू नाम से बुलाते थे. यह सिम्‍पसन के एक कैरेक्‍टर का नाम है.


मां से तुलना-

राधिका ने बताया, “मेरी तुलना हमेशा मेरी मां से की जाती थी, जो की मेरे ही स्‍कूल में पढ़ाती थीं. मेरी मां एक बहुत तेजस्‍वी महिला हैं. लोग हमेशा मेरी मां से मेरी तुलना करते हुए कहते कि आप उनके मुकाबले बहुत कुरूप लगती हो. इससे मेरा आत्‍मविश्‍वास टूट जाता.”

7वें इंटरव्‍यू में फेल हुई तो आत्‍महत्‍या का किया प्रयास-

22 साल की उम्र में कॉलेज के बाद राधिका को कहीं नौकरी नहीं मिली. 7वें जॉब इंटरव्‍यू में फेल होने के बाद उन्‍होंने आत्‍महत्‍या करने की सोची. राधिका ने बताया, “मैं खिड़की से देख रही थी और बस छलांग लगाने ही वाली थी कि मेरे दोस्‍तों ने मुझे बचा लिया. वे मुझे मनोचिकित्‍सक के पास ले गए.”

राधिका का कहना है कि मनोचिकित्‍सा वार्ड में उनका डिप्रेशन का इलाज किया गया. इस वार्ड से उन्‍हें छुट्टी तभी मिली जब राधिका ने डॉक्‍टर्स को बताया कि उनको एक जॉब इंटरव्‍यू देने जाना है. राधिका मनोचिकित्‍सा वार्ड से इंटरव्‍यू देने गई. वो इस इंटरव्‍यू में सफल हो गईं और उन्‍हें मैकेंजी में नौकरी मिल गई.


राधिका का कहना है कि इससे मेरी जिंदगी पटरी पर लौट आई. लेकिन तीन साल बाद ही उन्‍होंने कुछ बदलाव करने का इरादा किया. 25 साल की उम्र में वे भारत लौट आई. ऐसा उन्‍होंने अपने पति और दोस्‍त के साथ मिलकर अपनी एसेट मैनेजमेंट फर्म शुरू करने के लिए किया. कुछ साल बाद ही उनकी कंपनी का एडलवाइज एमएफ ने अधिग्रहण कर लिया.

राधिका ने बताया, “मैं सफल होने लगी थी. अब मैं अपना हाथ अवसरों की ओर बढ़ाना चाहती थी. इसलिए जब एडलवाइज ने सीईओ की तलाश शुरू की तो मैंने भी हिचकिचाते हुए अपने पति की प्रेरणा से इसके पद के लिए अप्‍लाई कर दिया.” कुछ महीनों के बाद ही एडलवाइज ने राधिको को अपना सीईओ चुन लिया. वो 33 साल की उम्र में सीईओ बन चुकी थींं.


शारीरिक खामियां ही खासियत हैं-

राधिका ने बताया कि अगले ही साल उन्‍हें एक समारोह में भाषण देने लिए बुलाया गया. वहां उन्‍होंने अपने बचपन की असुरक्षा और अपने आत्‍महत्‍या के प्रयास के बारे में बताया. इसके बाद तो लोग अपने जीवन की कहानियां राधिका के साथ शेयर करने लगे. राधिका अब 39 साल की हो चुकी हैं. उनका कहना है,

“मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि मैंने यह समझ लिया है कि मेरी खामियां मुझे कम खूबसूरत नहीं बनातीं. इसलिए अब जब कोई मेरी दिखावट पर कमेंट करता है तो मैं उससे कहती हूं, हां, मेरी आंखों में भेंगापन है और मेरी गर्दन टेढ़ी है. यह मेरी खासियत है. आपके पास क्‍या अनूठा है.”