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Article 370 पर 16 दिनों की सुनवाई के बाद Supreme Court ने बताया फैसला

Supreme court news : सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर में रद्द किये Article 370 के खिलाफ बहुत सारी याचिकाएं कोर्ट में दायर हुई थी और िंह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है | आइये जानते हैं 

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HR Breaking News, New Delhi : अनुच्छेद 370 मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 16 दिन तक दोनों पक्षों की जिरह सुनी और आज यानी 5 सितंबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया. इस दौरान दोनों पक्षों ने संवैधानिक पहलुओं से लेकर ऐतिहासिक घटनाक्रम पर चर्चा की. मामला उस वक्त खासा गर्म हुआ, जब कोर्ट ने मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर लोन से इस बात का हलफनामा मांग लिया कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं.

क्या है मामला?

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5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा खत्म करने का प्रस्ताव पास किया था. साथ ही राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांटने का भी फैसला लिया गया था. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी. अब इस मामले को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सुनवाई की. बेंच के बाकी सदस्य हैं- जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्य कांत.

2 याचिकाकर्ताओं ने वापस ली याचिका
मामले के पहले 2 याचिकाकर्ताओं शाह फैसल और शेहला रशीद ने सुनवाई शुरू होने से पहले ही अपनी याचिकाएं वापस ले लीं. इसलिए कोर्ट ने दोनों का नाम याचिकाकर्ताओं की लिस्ट से हटाने का निर्देश दिया. इसके बाद नेशनल कांफ्रेंस सांसद मोहम्मद अकबर लोन का नाम याचिकाकर्ताओं की लिस्ट में पहले नंबर पर आ गया.

याचिकाकर्ता पक्ष की दलीलें

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लोन की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए. उनके अलावा राजीव धवन, गोपाल सुब्रमण्यम, जफर शाह जैसे कई वरिष्ठ वकीलों ने अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का फैसला खारिज करने की मांग की. इन वकीलों ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय विशेष परिस्थितियों में हुआ था. इसलिए, उसे अलग दर्जा मिला. राज्य की एक अलग संविधान सभा थी, जिसका काम 1957 में पूरा हो गया. भारत के संविधान से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से ही हो सकता था. इसलिए, संसद का फैसला कानूनन गलत है.

जज नहीं हुए आश्वस्त
संविधान पीठ के जज याचिकाकर्ता पक्ष की इस दलील से सहमत नज़र नहीं आए. उन्होंने कहा कि 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा खत्म हो गई. लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि सिर्फ इस वजह से अनुच्छेद 370 को स्थायी मान लिया जाए. चीफ जस्टिस ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, "यह सही है कि राज्य के कुछ विषयों पर संसद कानून नहीं बना सकता था, लेकिन इससे भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के संबंध पर कोई असर नहीं पड़ता. भारत में विलय का मतलब ही यही था कि जम्मू-कश्मीर ने अपनी संप्रभुता भारत को सौंप दी."

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'सत्यपाल मलिक का बयान बाद में दिया गया'
अनुच्छेद 370 को बेअसर किए जाने का विरोध कर रहे एक याचिकाकर्ता की तरफ से जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान की चर्चा की गई. एक वेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू में मलिक ने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल यह, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि 370 को लेकर केंद्र सरकार क्या करने जा रही है. उनसे कोई चर्चा नहीं की गई. लेकिन जजों ने इस दलील को ठुकराते हुए कहा कि पूर्व राज्यपाल ने जो कहा वह पद से हटने के काफी बाद में दिया गया बयान है. इससे मामले पर असर नहीं पड़ता.

सरकार के समर्थन में 6 दिन की जिरह
शुरू के 9 दिन याचिकाकर्ता पक्ष ने अपनी बातें रखीं. इसके बाद 6 दिन केंद्र सरकार और उसके फैसले का समर्थन करने वाले संगठनों ने दलीलें दीं. 16वें यानी आखिरी दिन एक बार फिर याचिकाकर्ता पक्ष ने अपनी बातें रखीं. केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जिरह की. इसके अलावा कई संगठनों ने भी केंद्र के फैसले के समर्थन में पक्ष रखा. ऐसे संगठनों के लिए हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी और महेश जेठमलानी जैसे कई बड़े वकील पेश हुए.

केंद्र ने क्या कहा?

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केंद्र ने कोर्ट को बताया कि अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का फैसला राष्ट्रहित के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए भी लिया गया था. अटॉर्नी जनरल ने राष्ट्र की अखंडता के पहलू पर ज़ोर दिया. दूसरी तरफ सॉलिसीटर जनरल ने बताया कि पुरानी व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35-A भी लागू था. इसके चलते राज्य में बसे लोगों की एक बड़ी संख्या को दूसरे नागरिकों जैसे अधिकार नहीं उपलब्ध थे. वह संपत्ति नहीं खरीद सकते थे, मतदान भी नहीं कर सकते थे. अब वह लोग सबके बराबर हो गए हैं.

जम्मू-कश्मीर को दोबारा मिलेगा राज्य का दर्जा
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली पर जानकारी मांगी. इस पर केंद्र सरकार ने बताया कि केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव करवाए जाएंगे. वहां पर वोटर लिस्ट को अपडेट करने का काम अंतिम चरण में है. केंद्र के वकील ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाएगा. लेकिन ऐसा कब होगा, यह अभी नहीं बताया जा सकता. हालांकि, सरकार ने साफ किया कि लद्दाख भविष्य में भी केंद्र शासित क्षेत्र बना रहेगा.

याचिकाकर्ता से मांगा देश के प्रति निष्ठा का हलफनामा

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सुनवाई के 15वें दिन सामाजिक संगठन 'रूट्स इन कश्मीर' ने कोर्ट को जानकारी दी कि याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर लोन ने एक बार विधानसभा में 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' का नारा लगाया था. 'रूट्स इन कश्मीर' ने इसके अलावा भी लोन के कई बयानों की जानकारी कोर्ट को दी. यह सभी बयान भारत विरोधी और आतंकवाद के प्रति सहानुभूति रखने वाले थे. इसके बाद सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि लोन से देश के प्रति निष्ठा का हलफनामा मांगा जाना चाहिए. इस पर कोर्ट ने लोन से इस बात का लिखित हलफनामा मांगा कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं. वह अलगाववाद और आतंकवाद का समर्थन नहीं करते.

लोन का हलफनामा
पाकिस्तान समर्थक नारा लगाने वाले नेशनल कांफ्रेंस सांसद मोहम्मद अकबर लोन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा, "मैं भारत का एक ज़िम्मेदार नागरिक हूँ. सांसद के रूप में ली गई शपथ को दोहराता हूँ. मैंने भारत के संविधान को बनाए रखने और भारत की अखंडता को बनाए रखने की शपथ ली है." लोन के इस हलफनामे को अधूरा बताते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने विरोध जताया.

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