Ajab Gajab : ऐसा होता है महिला अघोरी साधुओं का जीवन, इस चीज का है विशेष महत्व
HR Breaking News, New Delhi : 12 साल बाद देश में कुम्भ का मेला लगता है और इस मेले में अघोरी साघु आकर्षण का खास केंद्र होते हैं और दुनिया भर से लोग इन्हे देखने आते हैं। अघोरी नाम सुनते ही हम सभी के मन में एक विचित्र चित्र उभर कर सामने आ जाता है. एक अज्ञात भय जो मन को बरबस ही चिंता में डाल देता है. अघोर पंथ एक बेहद रहस्यमयी दुनिया है. इसको जितना जानने की कोशिश करें उतनी ही जिज्ञासा बढ़ने लगती है. अघोर पंथ में गुरु का विशेष महत्व है, बिना गुरु के कोई भी शिष्य अघोरी नहीं बन सकता, ना ही वह किसी तरह के मंत्र की सिद्धि कर सकता है. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बता रहे हैं अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया के बारे में, साथ ही बताएंगे क्या महिला अघोरी होती हैं? इसके अलावा जानेंगे उनकी तीन तरह की दीक्षाओं के बारे में.
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क्या महिलाएं भी होती हैं अघोरी?
अघोर पंथ में पुरुष और महिलाओं दोनों की दीक्षा होती है, परंतु इन दोनों की प्रक्रिया एक दूसरे से बहुत अलग होती है. किसी भी महिला को अघोरी बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन परिश्रम करना होता है. उन्हें अपने गुरु को ये भरोसा दिलाना होता है कि वह साधु बनने के लायक है. क्योंकि महिलाएं अत्याधिक भावनात्मक स्वभाव की होती हैं, तो इन्हें सबसे पहले अपने पूरे परिवार और समाज के साथ मोह भंग करना पड़ता है. पूरे तरीके से अपने घर परिवार को छोड़कर अघोर पंथ में शामिल होना पड़ता है. अघोरी बनने से पहले जीवित अवस्था में ही महिलाओं को अपना पिंडदान करना होता है. यहां तक कि अपने बाल भी मुंडवाने पड़ते हैं. इससे ये सिद्ध होता है कि उस महिला को अपने शारीरिक रंग रूप से कोई फर्क नहीं पड़ता. अखाड़े के गुरु उस महिला के घर जाकर सबसे पहले उसके पिछले और इस जन्म से संबंधित जानकारी एकत्रित करते हैं और यह इत्मीनान कर लेते हैं कि उस महिला ने अपने परिवार के साथ पूरी तरह से संपर्क खत्म किया है या नहीं. जब गुरुओं को भरोसा हो जाता है कि उस महिला का अपने परिवार से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं है तब उस महिला की दीक्षा प्रक्रिया शुरू की जाती है.
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तीन तरह से होती है अघोरियों की दीक्षा
1. हिरित दीक्षा
तीन तरह की दीक्षाओं में सबसे पहली होती है हिरित दीक्षा. इस तरह की दीक्षा में गुरु अपने शिष्य को कान में गुरु मंत्र या बीज मंत्र देते हैं. जो मंत्र फुकन भी कहलाता है. तीन दीक्षाओं में सबसे सरल यही दीक्षा मानी जाती है. इसमें गुरु शिष्य के बीच किसी तरह का कोई बंधन नहीं होता. यह दीक्षा कोई भी ले सकता है. अधिकतर अघोरियों को यही दीक्षा प्राप्त होती है.
2. शिरित दीक्षा
दूसरी दीक्षा होती है शिरित दीक्षा, इसमें गुरु और शिष्य के बीच कुछ सरल और कुछ जटिल नियम होते हैं. जो गुरु ही बनाते हैं. इस दीक्षा में नियम अनुसार गुरु अपने शिष्य से वचन लेते हैं और उसकी कमर, गले या बाजू में काले रंग का धागा बांधते हैं. जहां महिलाओं की बाईं भुजा पर धागा बांधा जाता है, वहीं पुरुषों की दाईं भुजा पर धागा बांधने का रिवाज है. इसके बाद गुरु अपने हाथ में जल लेकर शिष्य को आचमन कराते हैं.
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3. रंभत दीक्षा
अघोर पंथ की तीसरी और सबसे जटिल दीक्षा है रंभत, रंभत दीक्षा सभी को नहीं दी जाती है. इस दीक्षा के नियम बेहद कठिन होते हैं. यह गुरु द्वारा विलक्षण लोगों को ही दी जाती है. रंभत दीक्षा होने के बाद उस शिष्य पर गुरु का पूरी तरह से अधिकार हो जाता है. सिर्फ गुरु ही दीक्षा वापस लेकर उस शिष्य को इस बंधन से मुक्ति दिला सकता है. ये दीक्षा देने से पहले गुरु उस शिष्य को कई तरह की चुनौतियों पर जांचता परखता है.