Court decision : पति पत्नी के बीच बने रिश्ते को कब माना जायेगा गलत, अदालत ने बताया
Husband wife relation : हाल ही में कोर्ट ने पति पत्नी के रिशत को लेकर ये बात क्लियर कर दी है, कोर्ट ने बताया है की किस समय पति और पत्नी के बीच बने रिश्ते को गलत मन जायेगा , आइये विस्तार से जानते हैं
HR Breaking News, New Delhi : दो व्यस्कों के बीच बनाए गए शारीरिक संबंध को दुष्कर्म की श्रेणी में कब मान सकते हैं, इसपर केरल हाईकोर्ट का कहना है कि एक पुरुष और महिला के बीच यौन संबंध केवल तभी दुष्कर्म माने जा सकता है, जब यह उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना अथवा जबर्दस्ती और धोखाधड़ी से सहमति प्राप्त करते हुए बनाया गया हो.
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि दो इच्छुक वयस्क लोगों के बीच यौन संबंध भारतीय दंड विधान की धारा 376 के दायरे में दुष्कर्म के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. जब यौन संबंध छलपूर्वक या गलतबयानी के जरिए बनाए गए हों तभी ये दुष्कर्म माने जाएंगे.
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कोर्ट ने एक अहम बात भी कही कि सहमति से बनाए गए संबंध बाद में विवाह में परिवर्तित नहीं किए गए हों तब भी ये दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आते हैं.
कोर्ट की अहम टिप्पणी-यौन संबंध तब दुष्कर्म कहा जाएगा, जब…
कोर्ट के इस कथन के बाद कि शारीरिक संबंध बनाने के बाद शादी से इनकार करना या रिश्ते को शादी में बदलने में विफल रहने को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता.एक पुरुष और एक महिला के बीच यौन संबंध केवल तभी दुष्कर्म की श्रेणी में आ सकता है जब यह महिला की इच्छा के विरुद्ध हो या उसकी सहमति के बिना बनाए गए हों.हाईकोर्ट ने साफ कहा कि दुष्कर्म तभी होता है, जब सेक्स की सहमति न हो या सहमति का उल्लंघन किया गया हो.
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केरल हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में शादी से इनकार करने पर दुष्कर्म में गिरफ्तार एक वकील को जमानत दे दी है और इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि शादी से इनकार करने पर दुष्कर्म का मामला नहीं बनता हैजस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने वकील द्वारा दायर जमानत अर्जी पर फैसले में यह टिप्पणी की. आरोपी वकील पर एक सहकर्मी के साथ चार साल तक संबंध रखने और फिर दूसरी महिला से शादी करने का फैसला करने का आरोप है.
हाईकोर्ट का कहना है कि एक पुरुष और महिला के बीच यौन संबंध केवल तभी दुष्कर्म माने जा सकता है, जब यह उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना अथवा जबर्दस्ती और धोखाधड़ी से सहमति प्राप्त करते हुए बनाया गया हो.
पत्नी से भी जबर्दस्ती दुष्कर्म की श्रेणी में
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सुप्रीम कोर्ट ने भी अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि दुष्कर्म तो दुष्कर्म होता है, इसमें विवाहित और अविवाहित महिलाओं के सम्मान में अंतर नहीं किया जा सकता और कोई महिला विवाहित हो या न हो, उसे असहमति से बनाए जाने वाले यौन संबंध को ‘ना’ कहने का अधिकार है. महत्वपूर्ण बात यह है कि एक महिला, महिला ही होती है और उसे किसी संबंध में अलग तरीके से नहीं तौला जा सकता.
पत्नी पर यौन उत्पीड़न का क्रूर कृत्य बलात्कार है. यह सदियों पुरानी सोच और परंपरा है कि पति उनके शासक हैं. विवाह किसी भी तरह से महिला को पुरुष के अधीनस्थ होने का चित्रण नहीं करता है.
सेक्स वर्कर्स को भी अपने ग्राहकों को ना कहने का अधिकार है. जब पति की बात आती है तो एक महिला को, जो एक पत्नी भी है, इस अधिकार से कैसे दूर रखा जा सकता है?
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