Father's Property : पिता की प्रोपर्टी में बेटा-बेटी का कितना कम ज्यादा अधिकार, जानिए कानूनी प्रावधान
Father's Property : अक्सर प्रोपर्टी से जुड़े नियमों और कानूनों को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव होता है। जो आगे चलकर परिवारों में रंजिश का कारण बनती है। ऐसे में आज हम आपको अपनी इस खबर में पिता की संपत्ति पर अधिकार से जुड़ी बातों को स्पष्टता से समझाएंगे... तो चलिए आइए जान लेते है नीचे इस खबर में-

HR Breaking News, Digital Desk- (Who Has The Right Over Father's Land) अक्सर पिता की जमीन पर अधिकार को लेकर लोगों में जानकारी की कमी होती है, जो परिवारों में रंजिश का कारण बनती है। इस तरह के विवादों की वजह से रिश्ते बिगड़ जाते हैं और कभी-कभी तो लोगों की जान तक चली जाती है।
गलतफहमियों और जानकारी के अभाव के कारण ऐसे संघर्ष पैदा होते हैं। ऐसे में आज हम आपको अपनी इस खबर में पिता की संपत्ति पर अधिकार से जुड़ी बातों को स्पष्टता से समझाएंगे-
देश में अगर जमीन के सामान्य वर्गीकरण को देखें तो मुख्यत: किसी भी व्यक्ति के द्वारा दो प्रकार से जमीन अर्जित की जाती है।सबसे पहली वह जो व्यक्ति ने खुद से खरीदी है या उपहार,दान या किसी के द्वारा हक त्याग (अपने हिस्से की जमीन को ना लेना) आदि से प्राप्त की है। इस तरह की संपत्ति को स्वयं अर्जित की हुई संपत्ति कहा जाता है। इसके अलावा दूसरे प्रकार की वह जमीन होती है जो कि पिता ने अपने पूर्वजों से प्राप्त की है। इस प्रकार से अर्जित की गई जमीन को पैतृक संपत्ति की श्रेणी में रखते हैं।
खुद अर्जित की गई जमीन पर अधिकार और उत्तराधिकार के जानें नियम-
- जहां तक पिता की खुद की अर्जित की गई जमीन (Father's own acquired land) का सवाल है तो, ऐसे में वह अपनी जमीन को बेचने, दान देने, उसके अंतरण संबंधी किसी भी तरह का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act), संपत्ति अंतरण अधिनियम में मिलता है।
- पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गई जमीन पर केवल उनका ही अधिकार होता है, और कोई भी व्यक्ति या संस्था उनके निर्णय को प्रभावित नहीं कर सकती। इसके अनुसार, जमीन के संबंध में जो भी फैसले लिए जाएंगे, वे केवल पिता के विवेकाधीन होंगे। कानूनी रूप से, बिना उनकी अनुमति के कोई और उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता। इस प्रकार, अपने अर्जित संपत्ति पर निर्णय लेने का पूरा अधिकार पिता का होता है।
- अगर वो अपनी स्वअर्जित जमीन की वसीयत तैयार करते हैं और जिस किसी को भी उसका मालिकाना हक देना चाहते हैं तो इस जमीन पर उसी का अधिकार होगा। संबंधित व्यक्ति के बच्चे अगर इस मुद्दे को लेकर न्यायालय (court) का रुख करते हैं तो वसीयत पूरी तरह से वैध होने की स्थिति में यह संभावना है कि इस मामले में कोर्ट पिता के पक्ष में ही फैसला सुनाएगा।
यह स्पष्ट है कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति का अधिकार पिता के पास होता है। हालांकि, यदि पिता की मृत्यु से पहले उन्होंने जमीन के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया, तो उनके बेटे और बेटियों को उस संपत्ति पर कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस स्थिति में, बच्चों का मालिकाना हक संपत्ति पर स्वत: परिलक्षित होता है, जिससे पिता की इच्छाओं का सम्मान करते हुए संतान को संपत्ति में हिस्सेदारी मिलती है।
संपत्ति को लेकर हिंदू और मुसलमानों के क्या हैं नियम-
आपके लिए ये जान लेना बेहद जरूरी है कि भारत में संपत्ति पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुसलमानों के अलग-अलग नियम हैं।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में बेटे और बेटी दोनों का पिता की संपत्ति पर बराबर अधिकार माना जाता है। वो अलग बात है कि भारतीय सामाजिक परंपराओं (Indian social traditions) के चलते अनगिनत बेटियां पिता की संपत्ति पर अपना दावा नहीं करतीं लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 उन्हें बेटों के बराबर अधिकार देता है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal law) में इस तरह की संपत्ति पर अधिकार में बेटों को ज्यादा महत्व दिया गया है। लेकिन न्यायालयों की प्रगतिशील सोच और बराबरी के अधिकार के चलते उन्हें भी धीरे-धीरे हिंदू बेटियों की तरह ही अधिकार दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। गौर करने वाली एक बात यह है कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति की वसीयत (bequest of property acquired by father) में अगर पिता अपनी बेटियों को हक नहीं देता तो ऐसे में न्यायालय भी बेटी के पक्ष में फैसला नहीं सुनाएगी। लेकिन पैतृक संपत्ति के मामले में स्थिति अलग है।
पैतृक संपत्ति को लेकर क्या हैं नियम?
पिता पैतृक संपत्ति (Ancestral property) से संबंधित वसीयत नहीं बना सकता है, जिसके परिणामस्वरूप बेटे और बेटियों को इस संपत्ति पर बराबर अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। पहले बेटी को इस संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं थे, लेकिन 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम (succession act) में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए और अब बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार प्राप्त हैं। इस परिवर्तन ने बेटियों के अधिकारों को मजबूत किया है।