High Court Decision : घर-परिवार, पति पत्नी और बच्चों को लेकर हाईकोर्ट के 5 बड़े फैसले, जो हर किसी को जानने चाहिए
Delhi High Court - दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में हर घर-परिवार, पति-पत्नी के रिश्ते, बच्चों, शारीरिक संबंधों, शादीशुदा रिश्तों जुड़े मामलो पर बड़ा फैसला सुनाया है। दिल्ली हाई कोर्ट के इन पांच बड़े फैसलों के बारे में हर किसी को पता होना चाहिए। इन फैसलों को समझते हुए आपको ये देखना चाहिए कि कहीं ये आपकी फैमली में तो नहीं हो रहा है।
HR Breaking News (ब्यूरो)। याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केरल और दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों कई अहम फैसले सुनाए। केस इतने अनोखे थे कि हाईकोर्ट की पीठ द्वारा चौंकाने वाली टिप्पणियां भी की गईं। यह टिप्पणियां और फैसले हर घर-परिवार, पति-पत्नी के रिश्ते, बच्चों, शारीरिक संबंधों, शादीशुदा रिश्तों आदि कई मुद्दों से जुड़े हैं। ऐसे ही 5 फैसलों के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जानिए और देखिए कहीं आपके घर में भी तो ऐसा नहीं हो रहा…
जीवनसाथी का जानबूझकर संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। पीठ का कहना है कि अगर पति या पत्नी जानबूझकर शारीरिक संबंध नहीं बनाते। पति या पत्नी दोनों ही संबंध बनाने से इनकार कर दें या शादीशुदा लाइफ में सेक्स होता ही नहीं तो वह शादी नहीं, एक अभिशाप है, क्रूरता है।केस में अहम फैसला देते हुए कोर्ट ने एक दंपती के तलाक को बरकरार रखा है। दंपती की शादी को सिर्फ 35 दिन ही हुए कि तलाक हो गया।
हाईकोर्ट ने कहा कि दहेज प्रताड़ना की बात कहते हुए संबंध नहीं बनाना। प्रताड़ना के सबूत नहीं होने पर भी पुलिस को शिकायत देना भी क्रूर अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि दंपती ने 2004 में हिंदू रीति-रिवाज से शादी की थी और कुछ समय बाद ही पत्नी अपने मायके चली गई। इसके बाद वह वापस लौट कर नहीं आई। पति को साथ पत्नी का इस तरह का व्यवहार क्रूरता है, इसलिए पति तलाक का हकदार है।
पत्नी शारीरिक संबंध न बनाए तो पति के किसी और से फिजिकल रिलेशन गलत नहीं
दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस सुरेश कुमार कैत एवं जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने तलाक के एक मामले में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने एक व्यक्ति के तलाक को इसलिए मंजूरी दे दी कि वह पिछले 18 साल से पत्नी की बजाय किसी और महिला के साथ रह रहा है। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि शादी के रिश्तों में शारीरिक संबंध एक महत्वपूर्ण आधार है। अगर पत्नी के साथ नहीं रहने के चलते आदमी के किसी गैर औरत के साथ ताल्लुक बन जाते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है। इसे क्रूरता नहीं कहा जाना चाहिए।
कोर्ट ने पति का तलाक मंजूर करते हुए फैसले में टिप्पणी की है कि परिवार में बार-बार होने वाले झगड़ों के परिणामस्वरूप मानसिक पीड़ा होती है। लंबे समय के मतभेदों और आपराधिक शिकायतों की वजह से इस शख्स की मानसिक शांति छिन गई। दांपत्य सुख से वंचित होना पड़ा, जो किसी भी वैवाहिक रिश्ते का आधार माना जाता है। शारीरिक संबंध एक जिंदगी का एक महत्वपूर्ण भाग है। अब जबकि वह पिछले करीब दो दशक से पत्नी से अलग रह रहा है तो किसी अन्य महिला से संबंध बनाने को क्रूरता कहना उचित नहीं है।
पति दूसरी महिला के साथ रह सकता है, लेकिन…
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने तलाक के एक मामले में अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी से अलग होने के बाद किसी अन्य महिला के साथ पति रह सकता है। इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा, लेकिन दोबारा मिलने की संभावना नहीं होनी चाहिए, तभी यह बात लागू होगी। पीठ ने महिला की याचिका खारिज कर दी और कहा कि लंबे अलगाव के बाद तलाक की कार्यवाही लंबित होने के दौरान किसी अन्य महिला के साथ रहना पत्नी द्वारा सिद्ध क्रूरता के कारण पति को तलाक से वंचित नहीं कर सकता है।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 13 सितंबर के एक आदेश में कहा कि इस तरह के लंबे समय तक मतभेदों और आपराधिक शिकायतों ने प्रतिवादी-पति के जीवन को कष्टकारी बना दिया। वह वैवाहिक रिश्ते से भी वंचित हो गया। अलगाव के इतने लंबे वर्षों के बाद पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं होने के बाद, प्रतिवादी पति को किसी अन्य महिला के साथ रहकर शांति और आराम मिल सकता है। उसे इस अधिकार से भी वंचित नहीं रखा जा सकता है। फैमिली कोर्ट ने भी सही निष्कर्ष निकाला कि पत्नी ने पति के साथ क्रूरता की।
कमा रही महिला को मेंटेनेंस नहीं दिया जा सकता
एक महिला की मेंटेनेंस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने नौकरी कर रही, पैसा कमा रही महिला को भरण-पोषण देने से इनकार किया है। महिला ने अपनी याचिका में पति से कोर्ट खर्च के रूप में 55 हजार रुपये और रहने के लिए 35 हजार रुपये प्रति महीने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने महिला के पक्ष में मेंटेनेंस देने का आदेश पारित करने से इनकार करते हुए कहा कि वह महिला योग्य होने के साथ-साथ नौकरी भी कर रही है। ऐसे में पति द्वारा भरण-पोषण का मामला नहीं बनता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि पुरुष (उसका पति) एक साधारण ग्रेजुएट है। महिला अपनी शादी के समय एम फिल थी। अब महिला कंप्यूटर फील्ड में PHD है और नौकरी भी कर रही है। ऐसे में वह मेंटेनेंस की हकदार नहीं है। पहले फैमिली कोर्ट ने पति से अलग हो चुकी महिला के भरण-पोषण की मांग करने वाली याचिका को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट का रूख किया था। मामले की सुनवाई को बाद हाईकोर्ट ने महिला की फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।