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High Court Decisions : पति-पत्नी के प्रोपर्टी पर हाईकोर्ट ने किया सबकुछ साफ, सुनाया अहम फैसला

High Court Decisions : मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने एक केस की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि पत्नी एक गृहिणी के रूप में अपने पति की संपत्ति के अधिग्रहण (acquisition of husband's property) में समान योगदान करती है. कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए इस खबर काे पूरा पढ़ लें- 

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High Court Decisions : पति-पत्नी के प्रोपर्टी पर हाईकोर्ट ने किया सबकुछ साफ, सुनाया अहम फैसला

HR Breaking News, Digital Desk- मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने एक केस की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि पत्नी एक गृहिणी के रूप में अपने पति की संपत्ति के अधिग्रहण (acquisition of husband's property) में समान योगदान करती है. कोर्ट ने कहा कि यह कहना कि गृहस्थी के सामान में पत्नी की सहायता मूल्यहीन है, सही नहीं है. इसके आधार पर, कोर्ट (Court) ने यह स्पष्ट किया कि पत्नी अपने पति की संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी (equal share in husband's property) की हकदार होती है. यह टिप्पणी महिलाओं के योगदान को मान्यता और सम्मान प्रदान करती है.

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस कृष्णन रामासामी ने कहा कि एक पति (Husband) बिना अपनी पत्नी के सपोर्ट (support) के न तो पैसे कमा सकता है न ही जॉब कर सकता है. पत्नी उसके परिवार की केयर (care) करती है. ऐसी स्थिति में जो भी प्रॉपर्टी (property rights) चाहे पत्नी के नाम पर खरीदी गई हो चाहे पति के नाम पर उसमें दोनों का अधिकार बराबर होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई भी संपत्ति दोनों के प्रयाशों और बचत के बिना खरीदना संभव नहीं है.

जस्टिस रामासामी ने पति-पत्नी को एक गाड़ी के दो पहियों की तरह समान महत्व का बताया. उन्होंने कहा कि पति बाहर पैसे कमाता है, जबकि पत्नी घर पर परिवार की देखभाल करती है. दोनों का योगदान परिवार के कल्याण में आवश्यक है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार में जो भी होता है, उसमें दोनों की बराबर भागीदारी होती है. अगर किसी महिला ने पूरे परिवार के लिए समर्पण दिखाया और फिर उसे अकेला छोड़ दिया गया, तो यह अन्याय है. इस प्रकार, दोनों की भूमिका समान और महत्वपूर्ण है.

सुनवाई के दौरान जस्टिस रामासामी ने कहा कि अभी तक कोई ऐसा कानून नहीं बना है जो कि गृहिणी महिलाओं के प्रयासों को प्रमाणिकता दे. उन्होंने कहा कि कोर्ट (court decision) उन महिलाओं के कंट्रीब्यूशन को अच्छे से समझता है, जब उनके त्याग को रिवॉर्ड देने की बारी आती है.

इस मामले में हुई सुनवाई-

मद्रास हाइकोर्ट (Madras High court decision) ने 2016 में एक केस की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि एक दंपत्ती की शादी 2965 में हुई थी. उनके तीन बच्चे हुए, जिनमें दो बेटे और एक लड़की शामिल थी. दंपत्ती के पति ने 1983 से 1994 तक नौकरी के लिए मिडिल ईस्ट में काम किया. इस मामले में अदालत ने उस अवधि में परिवार की स्थिति और पति की अनुपस्थिति के प्रभाव पर विचार किया. 

अदालत (court) की टिप्पणियों का उद्देश्य दंपती के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझना था, जो उनके बच्चों की परवरिश से जुड़े थे. जब वह भारत लौटा तो उसने पत्नी पर उसके पैसे से अनचाही प्रॉपर्टी खरीदने का आरोप लगाया. साथ ही पति ने पत्नी पर यह आरोप भी लगाया कि उसकी पत्नी का उसकी गैरमौजूदगी में एक एफेयर भी था.