indian marriage tradition: जानिए मां क्यों नही देखती है अपने बेटे के फेरे, पीछे की बड़ी वजह आई सामने

HR Breaking News: डिजिटल डेस्क नई दिल्ली, Marriage Rituals : हिन्दू धर्म में हर मांगलिक कार्य करने को लेकर बहुत से रीति-रिवाज हैं. इन्हीं मांगलिक कार्यों में से एक है विवाह. विवाह के दौरान किए जाने वाले रिवाजों को सबसे पवित्र रिवाज माना जाता है. विवाह के दौरान बहुत से रीती-रिवाज निभाए जाते हैं. जैसे कन्यादान, सात फेरे, मंगलसूत्र पहनना और गृह प्रवेश. इन रीती-रिवाजों के पूरा होने पर ही विवाह संपन्न माना जाता है. विवाह को हिन्दू धर्म में दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलान माना जाता है, लेकिन आपने अक्सर देखा होगा बेटों की शादी में माता शामिल नहीं होती है. मतलब अपने बेटे की शादी में माताएं उनके फेरे नहीं देखती हैं, इसके पीछे क्या कारण है? आइए जानते हैं दिल्ली निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित आलोक पाण्डया से.
-मुगल काल की है परंपरा
मान्यताओं के अनुसार पहले के समय में माताएं अपने बेटों की शादी में जाती थीं, लेकिन जब भारत में मुगलों का आगमन हो गया, उसके बाद से मां अपने बेटे के शादी में नहीं जाती. मुगल शासन के दौरान महिलाएं बारात में जाती थीं, तब पीछे से कई बार डकैती और चोरी का शिकार हो जाती थीं. इसी को ध्यान में रखते हुए और घर की रखवाली के लिए महिलाओं ने घर में रहना शुरू कर दिया. इसी वजह से शादी वाले दिन लड़के के घर में सभी महिलाएं एकत्रित होकर मनोरंजन के लिए गीत गाती हैं.
-गृह प्रवेश भी है एक कारण
विवाह के बाद जब दुल्हन अपने ससुराल पहुंचती है तो उसका गृह प्रवेश करवाया जाता है. इस दौरान दुल्हन की पूजा की जाती है और कलश में द्वार पर चावल रखे जाते हैं. इस कलश को दुल्हन अपने सीधे पैर से धकेल कर घर के अंदर प्रवेश करती है. इसके बाद दुल्हन के हाथ पर हल्दी लगाई जाती है. इसी रश्म को गृह प्रवेश कहा जाता है. मान्यता के अनुसार इस रस्म की तैयारी करने के लिए भी मां बेटे की शादी में नहीं जाती.
-कहां-कहां आज भी प्रचलित है ये परंपरा?
भारतवर्ष में ये परंपरा आज भी उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान में देखने को मिलती है. इन जगहों पर बेटे की शादी में माताएं नहीं जाती. हालांकि अब समय के साथ-साथ लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है. आजकल माताएं अपने बेटों की शादी में जाती हैं और उसे पूरी तरह से इंजॉय भी करती हैं.