landlord and tenant case : मकान मालिकों के पक्ष में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, किराएदार को किराया नहीं देना पड़ा भारी
landlord and tenant Rights :मकान मालिक और किराएदार का रिश्ता खट्टा मीठा होता है। कई बार दोनों में इतना लगाव हो जाता है कि एक परिवार की तरह रहते हैं तो अनेकों बार आपस में छोटी-छोटी बातों पर कहा सुनी भी होती है। अक्सर ऐसा भी देखने को मिलता है कि मकान मालिक (Land Lord) और किराएदार (Tenant) का विवाद कोर्ट तक पहुंच जाता है। अब मकान मालिकों के पक्ष में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। किराएदार को किराया नहीं देना महंगा पड़ गया है।
HR Breaking News (Landlord vs Tenant) अदालत में न जाने कितने केस पेंडिंग है, लेकिन जब किसी केस में फैसला आता है तो वह एक नजीर का काम करता है। अब हाई कोर्ट का एक बड़ा फैसला किराएदार और मकान मालिक के विवाद में आया है। हाई कोर्ट ने फैसला मकान मालिक के पक्ष में दिया है। किराया न देने पर किराएदार को मुश्किल होने वाली है।
40 साल तक मुकदमे में उलझाए रखा
दरअसल एक मामले में हाई कोर्ट की ओर से 15 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। जिस पर जुर्माना लगाया गया है, उस पक्ष ने दूसरे पक्ष को 40 साल तक मुकदमों में उलझाए रखा। कोर्ट ने इस पर सख्त टिप्पणी भी की है और साथ में मुकदमे में किराएदार (tenant rights) पर भारी जुर्माना भी लगाया है।
कोर्ट में रखा गया यह पक्ष
अदालत में किराएदार (tenant) और मकान मालिक (landlord) दोनों तरफ से अपने पक्ष रखे गए। मामले में न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ की ओर से किराएदार वोहर ब्रदर की याचिका को खारिज कर दिया गया।
कोर्ट ने सख्त आदेश दिया कि अगर हर्जाने (Harjana) की राशि 2 महीने में जमा नहीं होती है तो वसूली करवाई जाएगी। किराएदार (fine on tenant) वसूली करवाने के लिए जिलाधिकारी को आदेश दिया गया है।
प्रतिवादी के वकील गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी थी कि विवाद की शुरुआत में 1982 में जब संपत्ति की स्वामिनी कस्तूरी देवी ने फैजाबाद रोड पर संपत्ति को खाली करने के लिए मामला कोर्ट में चला गया। वह अपने बेटे की व्यवसाय के लिए संपत्ति खाली कराना चाह रही थी।
मकान मालिक के पक्ष में आया था शुरुआत में फैसला
याची की ओर से संपत्ति को खाली करने से इनकार करने पर संबंधित अधिकारी के समक्ष रिलीज प्रार्थना पत्र दिया गया। 1992 में इसको खारिज कर दिया गया। उस समय वोहरा ब्रदर्स के ओर से संपत्ति का 187.50 रुपए किराया (rent rules) दिया जाता था।
प्राधिकारी के आदेश के विरुद्ध संपत्ति स्वामिनी ने अपील दाखिल की इसका फैसला 1995 में स्वामिनी के पक्ष में आया था। इस पर किराएदार की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई, जो विचारधीन थी। प्रतिवादी के अधिवक्ता की यह भी दलील थी कि याची ने संपत्ति में शिकमी किराएदार (tenant) भी रख लिए हैं।
30 साल पुरानी याचिका की खारिज
उत्तर प्रदेश के लखनऊ हाई कोर्ट (tenant vs landlord case) की एक बेंच ने 30 साल पुरानी याचिका को खारिज किया है। इसमें याचिका को खारिज करते हुए किराएदार पर 15 लाख रुपए का हर्जाना भी लगाया है।
अदालत ने इस मामले में सख्त टिप्पणी भी की है। अदालत ने कहा कि किराएदार ने एक तो 1979 से किराए का भुगतान नहीं किया, दूसरी ओर 1981 में जब संपत्ति की मालकिन ने अपनी संपत्ति को अपने बेटे के व्यवसाय के लिए खाली करने को कहा तो संपत्ति पर मुकदमा ठोक दिया। जिससे पूरी पीढ़ी के अधिकारों को वंचित कर दिया।
