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Supreme Court : खेती की जमीन में शादीशुदा बेटी का हिस्सा होगा या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में किया साफ

Supreme Court : आमतौर पर प्रोपर्टी से जुड़े नियमों और कानूनाें को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव होता है. इसी कड़ी में आज हम आपको अपनी इस खबर में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए एक फैसले के मुताबिक ये बताने जा रहे है कि खेती की जमीन में शादीशुदा बेटी का हिस्सा होगा या नहीं-

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Supreme Court : खेती की जमीन में शादीशुदा बेटी का हिस्सा होगा या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में किया साफ

HR Breaking News, Digital Desk- विवाहित महिलाओं को कृषि भूमि के उत्तराधिकार (inheritance of agricultural land) में भेदभाव से बचाने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। याचिका में मांग की गई है कि विवाहित महिलाओं को भी कृषि भूमि (agriculture land) में पुरुषों के समान उत्तराधिकार का अधिकार मिलना चाहिए।

याचिका में उत्तर प्रदेश (UP) और उत्तराखंड (Uttarakhnad) के कृषि भूमि उत्तराधिकार कानूनों में विवाहित महिलाओं (married women) के साथ भेदभावपूर्ण प्रावधान होने का आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई है। उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 और उत्तराखंड भूमि कानूनों में कृषि भूमि के उत्तराधिकार (inheritance of agricultural land) में महिलाओं से संबंधित प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन बताया गया है।

न्यायालय ने केंद्र, उत्तर प्रदेश  और उत्तराखंड सरकारों को राजस्व संहिता की धारा 108 और 110 के प्रावधानों पर चार सप्ताह में जवाब देने का नोटिस जारी किया है। ये धाराएं अविवाहित बेटियों को कृषि भूमि के उत्तराधिकार में प्राथमिकता देती हैं, जबकि विवाहित बेटियों को यह अधिकार नहीं मिलता। अगली सुनवाई 10 तारीख को होगी।

याचिका में इसे महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए रेखांकित किया गया है कि विवाह एक महिला के उत्तराधिकार अधिकार को समाप्त करने का कारण नहीं बनना चाहिए। धारा 110 के तहत, किसी विधवा का पुनर्विवाह उसकी कृषि भूमि के अधिकार को समाप्त कर देता है। पुनर्विवाह को महिला की मृत्यु के समान माना गया है, और पुर्नविवाह पर विधवा का कृषि भूमि पर अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है। याचिका में इसे महिला के संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण और असंवैधानिक बताया गया है। (Widow's right on agricultural land on remarriage)

पुनर्विवाह अधिकार को कर देता है समाप्त-
राजस्व संहिता की धारा 109 में यह प्रावधान है कि यदि कोई महिला कृषि भूमि में उत्तराधिकारी बनती है और उसका पुनर्विवाह होता है, तो यह उसके अधिकार को समाप्त कर देता है। पुरुषों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। याचिका में यह तर्क दिया गया है कि विवाह का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे उत्तराधिकार अधिकारों के साथ समझौता नहीं किया जाना चाहिए।

भारतीय उत्तराधिकार कानूनों (Indian succession laws) के तहत, पुरुष के विवाह से उसकी पैतृक कृषि भूमि के उत्तराधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वहीं, पुत्री के विवाह के बाद उसका पैतृक कृषि भूमि पर स्वामित्व समाप्त हो सकता है। यदि कोई महिला अपने पति की कृषि भूमि की उत्तराधिकारी बनती है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह भूमि उसके मायके (अपने परिवार) के सदस्यों को न मिलकर, पति के वारिसों को हस्तांतरित होती है।

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