सवा साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वायरस की उत्पत्ति का नही लगाया जा सका पता, WHO की जांच पर भी सवाल?

HR BREAKING NEWS. 2019 में चीन से शुरू हुई कोरोना महामारी दुनियाभर में कहर बरपा रही है। यह वायरस आया कहां से, एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी यह रहस्य बना हुआ है। इस बारे में दुनिया के टॉप साइंटिस्ट के एक ग्रुप का कहना है कि कोरोनावायरस के किसी लैब से फैलने की थ्योरी को तब तक गंभीरता से लेना चाहिए, जब तक यह गलत साबित नहीं हो जाती।
अभी और जांच की जरूरत
चीन के वुहान शहर से दुनियाभर में फैले कोरोना ने अब तक 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली है, जबकि 16.25 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। दुनिया के टॉप साइंटिस्ट की टीम में कुल 18 लोग शामिल हैं, जिन्होंने वायरस के बारे में अहम जानकारियां साझा की हैं।
इस टीम में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता, फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर में इवॉल्यूशन ऑफ वायरस की स्टडी करने वाली जेसी ब्लूम भी शामिल हैं। इनका कहना है कि महामारी की उत्पत्ति को लेकर अंतिम फैसले पर पहुंचने के लिए अभी और जांच की जरूरत है।
WHO ने कई फैक्ट्स पर ध्यान नहीं दिया
स्टैनफोर्ड में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डेविड रेलमैन सहित वैज्ञानिकों ने साइंस जर्नल में कहा कि वायरस के किसी लैब और जेनेटिक स्पिलओवर दोनों से अचानक बाहर निकलने की थ्योरी को खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की वायरस के उत्पत्ति के सिलसिले में की गई जांच में इस बात पर सही तरीके से गौर नहीं किया गया कि यह लैब से भी बाहर आ सकता है।
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4 हफ्ते तक चीन में रही थी WHO की टीम
इससे पहले WHO की टीम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि वायरस शायद चमगादड़ से मनुष्यों में आया होगा। हालांकि, लैब से बाहर आने वाली थ्योरी की आशंका नहीं है। WHO की टीम ने जनवरी और फरवरी में वुहान और उसके आसपास के इलाकों में 4 हफ्तों तक जांच की थी।
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एशियाई देशों का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण
टॉप साइंटिस्ट की टीम ने बताया कि हमें पर्याप्त डेटा मिलने तक प्राकृतिक और लैब दोनों से इसके बाहर आने की थ्योरी को गंभीरता से लेना चाहिए। कुछ देशों में एशियाई देशों के खिलाफ विरोध की भावना देखी जा रही है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि महामारी की शुरुआत में चीनी डॉक्टर, वैज्ञानिक, पत्रकार और नागरिक ही थे, जिन्होंने वायरस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दुनिया के साथ साझा की थी और वह भी बड़ी निजी कीमत पर।