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Rajasthan Highcourt : महिला ने कहा मुझे मां बनना है पति को पैरोल दो, कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

राजस्थान हाई कोर्ट में एक महिला ने अजमेर जेल में सजा काट रहे अपने पति के लिए 15 दिन की पैरोल की मांग करते हुए कहा कि वह संतान प्राप्ति चाहती है. हाईकोर्ट ने महिला के मां बनने के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उसके पति को पैरोल देने का फैसला सुनाया. आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.
 
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Rajasthan Highcourt : महिला ने कहा मुझे मां बनना है पति को पैरोल दो, कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

HR Breaking News (ब्यूरो) : राजस्थान हाईकोर्ट (rajasthan highcourt) ने अजमेर जेल (ajmer jail) में आजीवन सजा काट रहे एक बंदी की पत्नी की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. महिला ने अपने पति की पैरोल (parole) के लिए राजस्थान हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जहां महिला ने मांग रखी कि उसे वंश वृद्धि के लिए संतान प्राप्ति होनी जरूरी है ऐसे में अजमेर जेल में सजा काट रहे उसके पति को 15 दिन की पैरोल दी जाए ताकि वह संतान प्राप्ति कर सके.

बता दें कि उम्र कैद (life imprisonment) की सजा काट रहे बंदी की शादी हो चुकी है लेकिन उसके कोई संतान नहीं है. वहीं पत्नी शादी से खुश है और बच्चा चाहती है. महिला ने इससे पहले अजमेर कलेक्टर को अर्जी दी थी लेकिन वहां सुनवाई नहीं होने के बाद महिला ने हाईकोर्ट का रूख किया. इधर राजस्थान हाईकोर्ट ने महिला की गुहार पर उसके पति को पैरोल देने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने महिला के मां बनने के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उसके पति को पैरोल देने का फैसला सुनाया.

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मिली जानकारी के मुताबिक भीलवाड़ा जिले के रबारियों की ढाणी का रहने वाला एक शख्स फरवरी 2019 से ही अजमेर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है. नंदलाल नामक इस कैदी को सजा होने से कुछ पहले ही उसकी शादी शादी हुई थी.


जज से क्या बोली महिला


महिला ने जज से कहा कि वह शादी से खुश है और बच्चा चाहती है इसलिए उसने अजमेर कलेक्टर के यहां सुनवाई नहीं होने के बाद हाईकोर्ट की शरण ली है. हाईकोर्ट में महिला ने कहा कि उसका पति जेल के सभी नियमों और कानूनों का सख्ती से पालन कर रहा है और अपनी सजा काट रहा है. महिला ने कहा कि वह कोई आदतन अपराधी भी नहीं हैं इसलिए उनके व्यवहार को देखते हुए और मेरे अधिकारों का ध्यान रखते हुए मेरे पति को 15 दिन की पैरोल दी जाए.


कोर्ट ने क्या कहा


महिला की गुहार सुनने के बाद जज संदीप मेहता व फरजंद अली की खंडपीठ ने कहा कि वैसे तो संतान उत्पत्ति के लिए पैरोल से जुड़ा कोई साफ नियम नहीं है लेकिन लेकिन वंश के संरक्षण के लिए संतान उत्पत्ति होना जरूरी माना गया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ऋग्वेद और वैदिल काल के उदाहरण के साथ संतान उत्पत्ति को एक मौलिक अधिकार बताया.

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कोर्ट में जज ने कहा कि पत्नी की शादीशुदा जिंदगी से संबंधित यौन और भावनात्मक जरूरतों की रक्षा के लिए 15 दिन की पैरोल दी जाती है. वहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि धार्मिक आधार पर हिंदू संस्कृति में गर्भधान 16 संस्कारों में से एक है ऐसे में इसी को आधार बनाकर यह अनुमति दी जा रही है.