Supreme Court Decision : साझे वाले घर में बेटी, बहू, सास, मां, पत्नी का कितना हक, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
HR Breaking News - (supreme court decision)। महिलाओं को आज भी कोर्ट-कचहरी में चक्कर लगाकर अपने हितो के लिए लड़ते हुए देखा जाता है। अब हाल ही में कोर्ट में एक ऐसा मामला आया था, जिसके तहत कोर्ट ने एक साझा परिवार में बेटी, बहू, सास, मां के क्या अधिकार होते हैं, उसके बारे में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में घरेलू हिंसा (Shared Family Domestic Violence) की शिकार महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए ये फैसला सुनाया है।
जानिए क्या है पूरा मामला-
आइए पहले मामले पर गौर करते हैं कि आखिर मामला क्या है तो आपको बता दें कि बैंच इस मामले के तहत महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो अपने पति की मौत के बाद साझे परिवार में घरेलू हिंसा से पीड़ित थी। बेंच ने इस बारे में कहा कि एक महिला (womens right )जब तक घरेलू संबंध में है तब तक उसे साझा घर में रहने का अधिकार है।
संपत्ति पर महिलाओं के अधिकार -
भले ही उसका घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत केस नहीं है, लेकिन जब तक वह घरेलू संबध में हैं तब तक एक एक मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास और बहू या महिलाओं की साझा घर में रहने का अधिकार है। शीर्ष अदालत का कहना है कि साझे परिवार में महिलाओं को वास्तविक वैवाहिक आवास तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि महिलाओं के अधिकार (Women's rights)को संपत्ति पर अधिकार के बावजूद अन्य घरों तक बढ़ाया जा सकता है।
साझे घर में महिलाओं के अधिकार-
बेंच का कहना है कि जो महिलाएं ससुराल से अलग जगहों पर रहती हैं, उनके हितों को ध्यान में रखकर यह फैसला सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट (supreme court judgment) की बेंच का कहना है कि ऐसी कई परिस्थितयां हो सकती है, जिसमे प्रत्येक महिला साझे वाले घर में रहने के अपने अधिकार का यूज कर सकती है। फैसले में कहा गया कि महिलाओं की कई श्रेणियों और घरेलू संबंधों(supreme court on domestic violence) में अन्य श्रेणियों के निवास के अधिकार के तहत गारंटी है, जोकि धारा 17 की उप-धारा (1) के तहत लागू की गई है। इस प्रावधान के तहत महिलाओं को साझे घर (Rights to live in a shared household) से बेदखल नहीं किया जा सकता है। अगर महिला पर कोई घरेलू हिंसा नहीं हो रही है तो वह एक घर में रह सकते हैं।
किस वजह से महिलांए घरेलू रिश्ते पर निर्भर-
बेंच का कहना है कि एक महिला (woments right in join family) के साझा घर में रहने का अधिकार तो हैं, लेकिन इसकी वजह यह है कि भारत में कई ऐसी महिलाएं है, जो शिक्षित नहीं हैं और न ही वे सेल्फ डिपेंडेंट हैं। शिक्षित न होने के कारण उनके पास खर्च करने के लिए पैसे भी नहीं हैं। कोर्ट (SC on Shared houses rules) का कहना है कि कई कारणों के चलते महिलाएं घरेलू रिश्ते में रहने के लिए निर्भर हो सकती है। उनका मानना है कि भारत में ज्यादातर महिलाओं के पास स्वतंत्र आय का साधन नहीं है और इस वजह से वे अपने घर पर पूरी तरह से निर्भर हैं। शीर्ष अदालत ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत 'साझा परिवार' प्रावधान का विश्लेषण करते हुए 79 पेज का फैसला सुनाया।
वास्तविक घर को लेकर अधिकार -
सुप्रीम कोर्ट (supreme court ka latest decision) ने मामले पर गौर करते हुए कहा कि एक घरेलू हिंसा अधिनियम नागरिक संहिता का एक हिस्सा है जो हर एक नागरिक पर लागू होता है। संविधान के नियमों के अनुसार गारंटीकृत अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए और घरेलू संबंधों में जो घरेलू हिंसा की महिलाएं शिकार होती है, उनकी सुरक्षा के लिए भारत में चाहे वो महिलाएं किसी भी धर्म या जाति की हो, उन्हे सामान अधिकार दिए गए हैं। या यूं कहलें कि अब महिलाओं के अधिकार केवल वास्तविक निवास तक सीमित नहीं हो सकते हैं।
शादी के बाद महिलाओं के अधिकार-
वास्तविक निवास (SC Decision in Actual residence) के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने एक उदाहरण से अधिकारों को स्पष्ट किया है। पीठ ने कहा कि अगर एक महिला की शादी होते ही उसे अपने पति के घर में रहने का अधिकार मिल जाता है जो कि घरेलू हिंसा एक्ट (domestic violence act)के तहत एक साझा घर बन जाता है। फिर चाहे कोई भी मामला हो, उसे साझा घर में रहने का अधिकार (SC decision on womens right) है। भारत में, यह है एक महिला के लिए एक सामाजिक मानदंड है कि उसकी शादी पर उसके पति के साथ रहने के लिए उसे अलग-अलग स्थानों पर रहने का फैसला करना पड़ता हैं, लेकिन फिर भी उसे ऐसे मामले में एक साझा घर में रहने का अधिकार है।
