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Supreme Court Decision : अब पत्नी को इस स्थिति में भी मिलेगा गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय

Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पत्नी, यदि उसके पास पति के साथ रहने से इंकार करने का वैध कारण हो, तो उसे गुजारा भत्ता मिलना जारी रहेगा, भले ही उसने साथ रहने के आदेश का पालन न किया हो। कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए इस खबर के साथ अंत तक बने रहे-

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Supreme Court Decision : अब पत्नी को इस स्थिति में भी मिलेगा गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय

HR Breaking News, Digital Desk- (Supreme Court News) सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पत्नी, यदि उसके पास पति के साथ रहने से इंकार करने का वैध कारण हो, तो उसे गुजारा भत्ता मिलना जारी रहेगा, भले ही उसने साथ रहने के आदेश का पालन न किया हो।

 सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने इस सवाल पर कानूनी विवाद का निपटारा किया कि क्या वैवाहिक अधिकारों (marital rights) की फिर से बहाली का आदेश पाने वाला पति कानून के अनुसार पत्नी को भरण-पोषण (Maintenance of wife as per law) देने से मुक्त हो जाता है, यदि उसकी पत्नी साथ रहने के आदेश का पालन करने और ससुराल लौटने से इनकार कर देती है।

जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) का अगस्त 2023 का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें महिला को भरण-पोषण देने से मना किया गया था। हाई कोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर लिया था कि महिला ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद अपने पति के साथ नहीं रहने का विकल्प चुना। बेंच ने इस तर्क को अस्वीकार किया।

कोर्ट के पास यह तथ्य रखे गए थे कि पति लगातार अपनी पत्नी के साथ बुरा बर्ताव करता था। कोर्ट (court) ने कहा कि उसके वापस न आने की वजह काफी अच्छी थी। कोर्ट ने पति को निर्देश (court instructed husband) दिया कि वह अगस्त 2019 में आवेदन करने के दिन से भरण-पोषण का भुगतान करे।

क्या है पूरा मामला?

अब पूरे मामले पर गौर करें तो एक जोड़े की शादी 1 मई 2014 को हुई थी, लेकिन अगस्त 2015 में उनका रिश्ता टूट गया। पति ने दावा किया कि पत्नी 21 अगस्त 2015 को उसका घर छोड़कर चली गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी। पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली (Husband restored marital rights) के लिए रांची में पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की।

पत्नी ने कोर्ट को बताया कि उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित (mentally tortured) किया गया और उससे 5 लाख रुपये की मांग भी की गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके पति का विवाहेतर संबंध था और 2015 में गर्भपात (abortion) होने के बाद भी वह उनसे मिलने नहीं गए।

फैमिली कोर्ट ने साथ रहने का दिया था आदेश-

पत्नी ने यह भी कहा कि वह वापस जाने को तैयार हैं, लेकिन शर्तों के साथ। उसे घर के टॉयलेट का इस्तेमाल करने और खाना पकाने के लिए लकड़ी के चूल्हे या कोयले के चूल्हे के बजाय गैस का चूल्हे का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जानी चाहिए। 23 मार्च 2022 को फैमिली कोर्ट ने दोनों को साथ रहने का आदेश दिया, लेकिन पत्नी ने उस आदेश का पालन नहीं किया।

इसके बजाय, उन्होंने भरण-पोषण के लिए झारखंड हाई कोर्ट (High Court) में अपील की। हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि पत्नी ने सहवास आदेश का पालन नहीं किया था और आदेश के खिलाफ अपील नहीं की थी, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं थी। (Family court had ordered to live together)

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट का आदेश किया रद्द-

पत्नी ने भरण-पोषण के लिए सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का फैसला सिर्फ मामले की विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करेगा, न कि पति-पत्नी के साथ रहने या अलग रहने की स्थिति पर। यह निर्णय पति-पत्नी के संबंधों की जटिलता को ध्यान में रखकर लिया जाएगा, जिससे न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट (jharkhand high court) के फैसले को रद्द कर दिया और फैमिली कोर्ट (family court) के 10 हजार रुपये भरण-पोषण के आदेश को बहाल कर दिया। गुजारा भत्ता का बकाया तीन किस्तों में देना होगा