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Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने बताया, सयुंक्त परिवार की प्रोपर्टी का कैसा होगा बंटवारा

Supreme Court Decision : आमतौर पर प्रोपर्टी से जुड़े नियमों और कानूनों को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव होता है। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए एक फैसले के मुताबिक आपको बता दें कि आखिर सयुंक्त परिवार की प्रोपर्टी का बंटवार कैसे होगा- 

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Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने बताया, सयुंक्त परिवार की प्रोपर्टी का कैसा होगा बंटवारा

HR Breaking News, Digital Desk- (Supreme Court Decision) सुप्रीम कोर्ट ने संयुक्त परिवार की संपत्ति के बंटवारे को सभी हिस्सेदारों की सहमति से करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने निर्णय में कहा कि यदि किसी हिस्सेदार की सहमति नहीं ली गई है, तो बंटवारा निरस्त किया जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कर्ता या संपत्ति का प्रबंधक केवल तीन स्थितियों में बंटवारा कर सकता है: कानूनी आवश्यकता, संपत्ति के लाभ के लिए, और सभी हिस्सेदारों की सहमति से। यह निर्णय संपत्ति विवादों में महत्वपूर्ण है।

पीठ ने कहा, यह स्थापित कानून है कि जहां सभी हिस्सेदारों की सहमति से बंटवारा नहीं किया गया हो, यह उन हिस्सेदारों के कहने पर निरस्त हो सकता है जिनकी सहमति प्राप्त नहीं हुई है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय (karnataka high court) के उस आदेश के खिलाफ एक अपील पर यह टिप्पणी की जिसमें एक व्यक्ति द्वारा बंटवारे और उसकी एक तिहाई संपत्ति के पृथक कब्जे के लिए अपने पिता तथा उसके द्वारा लाए गए एक व्यक्ति के खिलाफ दायर मुकदमे को खारिज कर दिया गया था।

न्यायालय (court) ने स्पष्ट किया कि इस मामले में दूसरे प्रतिवादी ने स्वीकार किया है कि निपटान विलेख एक उपहार विलेख है, जिसे पिता ने 'प्यार और स्नेह से' तैयार किया था। न्यायालय ने कहा कि हिंदू पिता या हिंदू अविभाजित परिवार (hindu undivided family) का कोई प्रबंधक केवल 'पवित्र उद्देश्य' के लिए पैतृक संपत्ति (ancestral property) का उपहार देने का अधिकार रखता है। 'पवित्र उद्देश्य' में धर्मार्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए दिए जाने वाले उपहार शामिल हैं। यह स्पष्ट करता है कि ऐसे उपहार केवल धार्मिक या समाजसेवा के कार्यों के लिए दिए जा सकते हैं।


पीठ ने कहा इसलिए, प्यार और स्नेह से निष्पादित पैतृक संपत्ति के संबंध में उपहार का एक विलेख 'पवित्र उद्देश्य' शब्द के दायरे में नहीं आता है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में उपहार विलेख किसी धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्य के लिए नहीं है। हमारा विचार है कि पहले प्रतिवादी द्वारा दूसरे प्रतिवादी के पक्ष में निष्पादित निपटान विलेख / उपहार विलेख को प्रथम अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा सही रूप से अमान्य घोषित किया गया था।