home page

Supreme Court Decision : हिमाचल में कौन खरीद सकता है जमीन, सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ

Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ये साफ कर दिया है कि आखिर हिमाचल में जमीन कौन खरीद सकता है... आइए नीचे खबर में जाने कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से। 

 | 
Supreme Court Decision : हिमाचल में कौन खरीद सकता है जमीन, सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ

HR Breaking News, Digital Desk- पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि केवल खेती में लगे कृषक (किसान) ही हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद सकते हैं। अन्य लोगों को हिमालयी राज्य में जमीन खरीदने के लिए राज्य सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी। 1972 के हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम में प्रासंगिक प्रावधानों का हवाला देते हुए जस्टिस पीएस नरसिम्हा और सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह टिप्पणी की।

पीठ ने कहा कि "इसका उद्देश्य गरीब व्यक्तियों की छोटी कृषि भूमि को बचाना और कृषि योग्य भूमि को बड़े पैमाने पर गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए बदलने की जांच करना भी है।" 


अधिनियम की धारा 118 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि एक व्यक्ति जो कृषक नहीं है, वह केवल राज्य सरकार की अनुमति से ही हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद सकता है। इसमें कहा गया है, "सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह हर मामले को देखे और तय करे कि ऐसी अनुमति दी जा सकती है या नहीं।" एक कृषि योग्य भूमि को गैर-कृषि उद्देश्य में बदलने संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणियां कीं।

इस मामले में एक किसान ने याचिका दायर की थी। दरअसल एक निजी कंपनी ने याचिकाकर्ता किसान को जमीन के दो प्लॉट (भूखंडों) के खरीदार के रूप में अधिकार सौंपा था। कंपनी ने गैर-कृषि उद्देश्य के लिए यह जमीन खरीदी थी, लेकिन इसके लिए उसे राज्य सरकार की स्वीकृति नहीं मिली। बाद में इसने याचिकाकर्ता को जमीन के विक्रेता के साथ बिक्री दस्तावेज (सेल डीड) हासिल करने का अधिकार सौंपा।

बता दें कि धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश का कोई भी जमीन मालिक किसी भी गैर कृषक को किसी भी माध्यम जिसमें सेल डीड, लीज, गिफ्ट, तबादला, गिरवी आदि शामिल है, से जमीन हस्तांतरित नहीं कर सकता।

अब याचिकाकर्ता ने उसी सेल डीड के निष्पादन के लिए राज्य में एक सिविल कोर्ट के समक्ष मुकदमा दायर किया लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। उच्च न्यायालय ने भी अपील दायर करने में देरी के आधार पर अपील खारिज कर दी। अब अपने फैसले में, शीर्ष अदालत ने न केवल उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि की, बल्कि 1972 के अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों और उद्देश्य पर भी प्रकाश डाला।

अदालत ने कहा, “1972 अधिनियम की धारा 118 के तहत, केवल एक कृषक, जिसे 1972 अधिनियम की धारा 2 (2) के तहत परिभाषित किया गया है, वह ही हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीद सकता है। जिसका अर्थ होगा कि जमीन का मालिक जो व्यक्तिगत रूप से हिमाचल प्रदेश में अपनी जमीन पर खेती करता है। अगर किसी गैर-कृषक को जमीन खरीदनी है, तो ऐसा केवल राज्य सरकार की पूर्व अनुमति से ही किया जा सकता है।"

इसने इस बात पर भी जोर दिया कि 1972 के अधिनियम की धारा 118 का पूरा उद्देश्य छोटी खेती वाले किसानों की रक्षा करना है। अदालत ने कहा कि भले ही सरकार को मंजूरी देने का अधिकार है, लेकिन फिर भी हर मामले के तथ्यों के आधार पर अनुरोध की जांच करने की उम्मीद की जाती है।