supreme court : सरकारी और प्राइवेट कर्मचारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिन में सुनाए 2 अहम फैसले
supreme court decision : सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल ही में 2 ऐसे फैसले सुनाए गए हैं, जो हर सरकारी और प्राइवेट कर्मचारी के लिए अहम हैं। सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों का असर करोड़ों कर्मचारियों (employees rights in law) पर पड़ेगा। अधिकतर कर्मचारी इस बात को लेकर भी हैरानी में हैं उनसे जुड़े ये दोनों ही मामले काफी बड़े हैं और सुप्रीम कोर्ट ने ये एक-एक दिन के अंतराल पर सुनाए हैं। आइए विस्तार से जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों के बारे में।
Hr Breaking News (supreme court Verdict) : अगर आप भी कोई प्राइवेट या सरकारी जॉब कर रहे हैं तो ये खबर आपके काफी काम की है। अक्सर देखा जाता है कि कोर्ट कचहरी में कर्मचारियों के कई मामले सामने आते हैं। कभी याचिका कर्मचारी (legal right of employees) द्वारा दर्ज की जाती है तो कभी एंपलॉयर द्वारा। अधिकतर लोग इस बात से अनजान होते हैं कि भारतीय कानून में उनके लिए क्या प्रावधान दिए गए है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाएं दर्ज की गई थीं, जिसकी वजह से कोर्ट ने कर्मचारियों के लिए दो दिन में दो अहम फैसलों को सुनाया है।
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यह जानकारी न देने पर कर्मचारी से मनमानी गलत
सुप्रीम कोर्ट ये दोनों ही फैसले कर्मचारियों के हक से सीधे तौर पर जुड़े हैं। पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट (supreme court news) की ओर से बताया गया कि अगर किसी मामले में कर्मचारी द्वारा कोई सूचना छिपाई जाती है या झूठी जानकारी और उन पर हुई किसी FIR की जानकारी नहीं (Suppression Of Criminal Case) दी जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि एंपलॉयर कर्मचारी से मनमाने ढंग से बर्ताव करने लगेगा और उसे मनमानी करते हुए बर्खास्त कर देगा। ऐसा करना कानून के विरुद्ध है।
रिटायरमेंट के बाद यह नहीं कहा जा सकता
अगर दूसरे मामले के बारे में बात करें तो इसमें सुप्रीम कोर्ट (supreme court judgement on employee FIR) ने बताया कि कर्मचारियों को अतिरिक्त भुगतान या इंक्रीमेंट अगर गलती से कर दिया गया है तो रिटायरमेंट के बाद उसकी वसूली या रिकवरी यह इस आधार पर नहीं की जा सकती कि ऐसा किसी गलती के कारण हुआ।
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एक मामले में Supreme Court ने कही ये बड़ी बात
सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में एक मामला दर्ज किया गया था, जिसमें एक व्यक्ति की ओर से याचिका दर्ज की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट (High court news in hindi) ने एक अहम फैसला सुनाया है। याचिका दर्ज करने वाला व्यक्ति रेलवे सुरक्षा बल (Railway Protection Force) में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत था। जब याची की ट्रेनिंग को शुरू किया गया था तो उसे इस आधार पर एक आदेश से हटा दिया गया कि कैंडिडेट ने इस बात का खुलासा नहीं किया गया था कि उसके खिलाफ एक FIR दर्ज कराई गई थी।
कोर्ट ने इस बात को माना कानून का उल्लंघन
यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने फैसला दिया कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे सेवा में बनाये रखने की मांग करने को लेकर कोई अधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन उसके साथ मन माने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करना सरासर कानून का उल्लंघन है।
याची ने कही यह बात
याची के बयान और कानूनी सुबूतों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि अपीलकर्ता की ओर से भरे जाने वाले सत्यापन फॉर्म के वक्त याची के खिलाफ पहले से ही एक आपराधिक मामले को दर्ज किया गया था। इसके अलावा शिकायतकर्ता ने बताया कि उन्होंने अपना हलफनामा (supreme court judgement on increment) दायर किया था कि जिसमें साफ तौर पर बताया गया था कि एफआईआर में जो शिकायत दर्ज की गई थी, वो गलतफहमी की वजह से ही थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए बताया कि याची को नौकरी से हटाना उपयुक्त नहीं है।
रिटायरमेंट से जुड़ा मामला
सुप्रीम कोर्ट में आए दूसरे मामले में केरल के एक शिक्षक के याचिका दर्ज की थी, जिसमें उन्होंने बताया कि शिक्षक ने साल 1973 में स्टडी लीव ली थी, लेकिन जब उन्हें इंक्रीमेंट (supreme court judgement on employee rights) दिया गया था, तक उनकी अवकाश की अवधि को लेकर विचार नहीं किया गया था।
बढ़ोतरी के 24 साल के बाद यानी 1997 में उनके खिलाफ एक नोटिस जारी किया गया था और 1999 में उनके रिटायर हो जाने के बाद उनसे इस पैसे को वसूल करने के लिए कार्यवाही को शुरू कर दिया गया था। शिक्षक इसके खिलाफ हाई कोर्ट (High court news ) में गए लेकिन यहां पर जाने के बाद उन्हें राहत नहीं मिली। जिसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
पहले हाई कोर्ट में लगाई थी गुहार
शिक्षक की गुहार पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision for employees) की पीठ ने बताया कि कोई सरकारी कर्मचारी, विशेष रूप से जो सेवा के निचले पायदान पर है, जो भी राशि प्राप्त करता है, उसे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खर्च करने की जरूरत पड़ती है, इस पर वह खर्च करेगा। ऐसे में इस तरह के मामले में 24 साल के लंबे समय बाद नोटिस जारी का क्या औचित्य है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme court decision) ने यह भी कहा कि अगर भुगतान देय राशि से भी ज्यादा अधिक है या गलत भुगतान किया गया है या जहां गलत भुगतान का पता जल्दी ही चल गया है तो ऐसे में वसूली के खिलाफ कोई राहत(relief against recovery) नहीं दी जाएगी। यह मामला पहले हाईकोर्ट में था, जहां शिक्षक को राहत नहीं मिल सकी थी।
लंबे अरसे तक चला मुकदमा
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक के पक्ष में फैसला सुनाया कि इसके खिलाफ राज्य की ओर से गलत तरीके से वेतन वृद्धि (salary hike cases)की वसूली की कार्यवाही को शुरू कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दो दशक की कानूनी लड़ाई को यह फैसला देकर समाप्त कर दिया। यह मामला पहले केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court)तो उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चला था।