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Supreme Court Decision : किराएदार और मकान मालिक के 11 साल पुराने विवाद में सुप्रीम कोर्ट दिया क्लासिक फैसला

Supreme Court Decision : मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenants) विवाद आम हैं, जो अक्सर अदालतों तक पहुंचते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा केस आया जिसे कोर्ट ने 'क्लासिक' केस कहा है. 11 साल पुराने विवाद में सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला रहा... आइए ये जान लेते है नीचे इस खबर में-

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Supreme Court Decision : किराएदार और मकान मालिक के 11 साल पुराने विवाद में सुप्रीम कोर्ट दिया क्लासिक फैसला

HR Breaking News, Digital Desk- (Supreme Court) मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenants) विवाद आम हैं, जो अक्सर अदालतों तक पहुंचते हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा "क्लासिक" मामला आया, जिसमें न्यायिक प्रक्रिया के घोर दुरुपयोग को उजागर किया गया. कोर्ट ने इस केस को उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किया कि कैसे कानूनी प्रणाली का गलत फायदा उठाया जा सकता है, जिससे यह न्याय के अनुचित उपयोग का एक प्रमुख उदाहरण बन गया.

किरायेदार भरे जुर्माना भी और 11 साल का किराया भी-

सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने एक किरायेदार को तीन दशक तक संपत्ति पर अवैध कब्जे (illegal occupation of property) के लिए दंडित किया है. कोर्ट ने किरायेदार को मकान मालिक को 1 लाख रुपये का जुर्माना और 11 साल का बाजार दर पर किराया देने का आदेश दिया है. यह फैसला न्यायपालिका (judiciary) की दृढ़ता को दर्शाता है कि वह संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करती है.

मकान मालिक-किरायेदार का क्लासिक केस-

मकान मालिक-किरायेदार का क्लासिक केसबेंच के जस्टिस किशन कौल और आर सुभाष रेड्डी ने कहा कि किसी के हक को लूटने के लिए कोई कैसे न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल कर सकता है, ये केस इसका 'क्लासिक' उदाहरण है. ये मामला पश्चिम बंगाल के अलीपुर में एक दुकान को लेकर है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court decision) की बेंच ने आदेश दिया कि दुकान को कोर्ट के आदेश के 15 दिन के अंदर मकान मालिक को सौंप दिया जाए. 

बाजार रेट पर अबतक का किराया भी देना होगा -

सुप्रीम कोर्ट ने एक किराएदार को मार्च 2010 से बकाया बाजार दर पर किराया तीन महीने के भीतर मकान मालिक को चुकाने का आदेश दिया है. साथ ही, न्यायिक समय की बर्बादी और मकान मालिक को बेवजह कोर्ट में घसीटने के लिए किराएदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.

क्या था पूरा मामला? 

यह मामला 1967 का है, जब लबन्या प्रवा दत्ता ने अपनी दुकान 21 साल के लिए लीज पर दी थी. 1988 में लीज खत्म होने पर, मकान मालिक ने किरायेदार से दुकान खाली करने को कहा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 1993 में बेदखली का मुकदमा दायर किया गया, जिसका फैसला 2005 में मकान मालिक के पक्ष में आया.

इसके बाद 2009 में केस फिर दाखिल हुआ और 12 साल तक खिंचा. ये केस देबाशीष सिन्हा नाम के व्यक्ति ने दाखिल किया था जो कि किरायेदार का भतीजा था. देबाशीष का दावा था कि वो किरायेदार का बिजनेस पार्टनर भी है. लेकिन कोर्ट ने देबाशीष की याचिका को खारिज कर दिया और उसे मार्च 2020 से मार्केट रेट (market rate) पर किराया देने के लिए भी कहा.