supreme court : सरकारी कर्मचारी के बाद घर के किस सदस्य को नहीं मिलेगी पेंशन, जानिये सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
supreme court decision : सरकारी कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद घर चलाने के लिए अच्छी पेंशन मिलती है। यह पेंशन कर्मचारी के परिवार के भरण पौषण के लिए आवश्यक जरूरत भी होती है। जब किसी कर्मचारी की मौत होती है तो पेंशन घर के किसी सदस्य को मिलती है। परंतु, सरकारी कर्मचारी की पेंशन (Pension) घर के किस सदस्य को नहीं मिलेगी, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट (supreme court news) के फैसले से बात साफ हो गई है।

Hr Breaking News (ब्यूरो) : सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सरकारी कर्मचारी की पेंशन के उत्तराधिकारी को लेकर बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट की ओर हाईकोर्ट (High court) के फैसले को बरकरार रखा गया है। हाईकोर्ट ने सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के भाग 54 (14B) का हवाला दिया था। इसके तहत पेंशन से याची को मना कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।
पारिवारिक पेंशन का कौन नहीं है हकदार
सुप्रीम कोर्ट (supreme court pension decision) के फैसले से साफ हो गया कि सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद पति अथवा पत्नी द्वारा गोद ली संतान पारिवारिक पेंशन की हकदार नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने एक पेंशन के केस की सुनवाई के दौरान ये बात स्पष्ट कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने रखा फैसला बरकरार
सुप्रीम कोर्ट (supreme court order) में जस्टिस केएम जोसेफ व बीवी नागरत्ना की पीठ ने मामले की सुनवाई की। पीठ नेबॉम्बे हाई कोर्ट के 2015 के आदेश को बरकरार रखा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बोला था कि सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के भाग 54 (14B) का के अनुसार गोद लिया हुआ बच्चा पारिवारिक पेंशन का अधिकार नहीं रखता है।
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सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) सुनवाई के दौरान हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act 1956) का जिक्र किया। इस अधिनियम की धारा 8 व 12 का कोर्ट ने व्याख्यान किया। इसमें अदालत ने कहा कि ये अधिनियम हिंदू महिला को अनुमति देते हैं कि वह अपने अधिकार में एक संतान को गोद ले सकती हैं। बेटा या बेटी नाबालिग व मानिसिक रुप से विकृत नहीं होने चाहिए।
क्या कहते हैं पेंशन गोद लेने के नियम
हिंदू दत्तक ग्रहण एवं रखरखाव अधिनियम (HAMA 1956) के अनुसार कहा गया है कि अपने पति के संग रह रही एक हिंदू महिला बिना पति की स्पष्ट सहमति के किसी को गोद नहीं ले सकती हैं। वहीं, हिंदू विधवा महिला के लिए यह शर्त लागू नहीं है, वह अपनी इच्छा से किसी को गोद ले सकती हैं। इसी प्रकार तलाकशुदा महिला को भी ये अधिकार है। वहीं, जब किसी महिला के पति को कानूनी तौर पर मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित किया हो तो वह भी अपनी मर्जी से किसी को गोद ले सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कही यह बात
सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने पारिवारिक पेंशन के दायरे को स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि परिवार पेंशन का लाभ कानूनी रूप से गोद ली गई संतानों तक सीमित होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी के परिवार की परिभाषा का भी जिक्र किया।
पेंशन नियमों को लेकर दिया ये हवाला
कोर्ट के फैसले से ये स्पष्ट हो गया कि सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 (Pension Rule) के भाग 54 (14B 2) के अनुसार दत्तक ग्रहण शब्द सरकारी कर्मचारी के नौकरी के कार्यकाल के दौरान तक सीमित है। परिवार की पेंशन के संबंध में कार्यकाल के दौरान ही गोद लेने तक का नियम है। अदालत ने कहा कि सरकारी कर्मी के जीवनकाल में या फिर और उसकी मौत के बाद पति या पत्नी की ओर से लिए गए गोद बच्चे के लिए दत्तक ग्रहण शब्द की व्याख्या नहीं करनी चाहिए। उक्त बातें स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दत्तक पुत्र चिमुरकर की अपील को खारिज कर दिया।
जानिए पूरा मामला
नागपुर में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन में श्रीधर चिमुरकर नामक व्यक्ति अधीक्षक के पर पर तैनात थे। वह 1993 में रिटायर हुए और 1994 में उनकी मौत हो गई। पति की मौत के बाद पत्नी माया मोतघरे ने श्री राम श्रीधर चिमुरकर को गोद ले लिया। 6 अप्रैल 1996 को ये कदम उठाया। पति की मौत के बाद माया और श्री राम श्रीधर, प्रकाश मोतघरे के घर में रह रहे थे।
वहीं, बाद में 1998 में माया मोतघरे ने विधुर चंद्र प्रकाश से विवाह कर लिया। वह नई दिल्ली में उनके संग रहने लगी। वहीं दत्तक पुत्र ने परिवार पेंशन पर अपना दावा किया। जिसे सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद गोद लिए पुत्र को पेंशन का हकदार नहीं माना गया।