टैक्सपेयर्स को Supreme court के फैसले से मिली बड़ी राहत, अब इनकम टैक्स विभाग की नहीं चलेगी मनमानी
income tax : आयकर विभाग के पास लोगों की आय से जुड़े मामलों को लेकर कई अधिकार हैं। करदाताओं को अपनी सालाना आय के अनुसार टैक्स (tax rules on annual income) चुकाना होता है, कई मामलों में विभाग मनमानी करने लगता है तो इससे करदाताओं को परेशानी उठानी पड़ती है। अब विभाग ऐसी मनमानी नहीं कर सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने टैक्स के मामलों से जुड़ा अहम फैसला सुनाया है। आइये जानते हैं क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने।

HR Breaking News - (income tax rules)। इनकम टैक्स विभाग (Income Tax Department) की मनमानी पर अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लगाम लग सकेगी। टैक्सपेयर्स को अब आयकर विभाग परेशान नहीं कर सकेगा। न ही वह जब चाहे तब नोटिस भेज सकेगा। सब काम नियम व कानून (new rules for taxpayers) के दायरे में होंगे। सुप्रीम कोर्ट का यह अहम फैसला अब करदाताओं के बीच सुर्खियों में है। इस मामले में कोर्ट ने अहम टिप्पणी भी की है। इस अहम फैसले को हर करदाता के लिए जानना जरूरी है।
टैक्स से जुड़े मामले नहीं खुल सकते दोबारा-
आयकर विभाग की कुछ धाराएं टैक्स से जुड़े मामलों की रीअसेसमेंट से जुड़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा 153ए (IT act 153a) के तहत जिन मामलों की असेसमेंट हो चुकी है, उन्हें इनकम टैक्स विभाग फिर से नहीं खोल सकता। न ही बिना सबूतों के टैक्सपेयर्स (taxpayers update) की आय को बढ़ाया जा सकता है। अगर तलाशी में पुख्ता सबूत मिलते हैं और मामला गंभीर है तो धारा 147 और 148 के तहत टैक्स मामले की रीअसेसेमेंट की जा सकती है।
टैक्सपेयर्स पर पड़ता है रीअसेसमेंट का यह प्रभाव-
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी टैक्स मामले (income tax cases) की रीअसेसमेंट से टैक्सपेयर्स पर काफी प्रभाव पड़ता है। अगर विभाग के पास आय छिपाने या गड़बड़ी किए जाने के ठोस सबूत नहीं हैं तो रीअसेसमेंट (proves for Reassessment) से करदाताओं को परेशानी होने के साथ साथ उनका समय भी खराब होता है। उन्हें फिर से इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है व दस्तावेज जुटाने पड़ते हैं। अब करदाताओं को इस फैसले से काफी राहत मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।
धारा 153A में यह है प्रावधान -
आयकर कानून में अलग अलग धाराएं अलग अलग मामलों के लिए तय की गई हैं। इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act) की धारा 153ए में कहा गया है कि जिसकी तलाशी ली जा रही है, उसकी आय की प्रक्रिया को इस धारा के तहत बताया जा सकता है। इस धारा में प्रावधान है कि किसी करदाता की अघोषित इनकम को टैक्स के दायरे (income tax slabs) में लाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए विभाग के पास ठोस सबूत होने चाहिए।
रीअसेसमेंट का यह है नियम-
नियमों के अनुसार आयकर विभाग (Income Tax department) कम आय के 3 साल से ज्यादा पुराने मामले नहीं खोल सकता। दिल्ली हाई कोर्ट भी इस बारे में अहम फैसला सुना चुका है। पहले रीअसेसमेंट (Income Tax Reassessment) की टाइम लिमिट छह साल थी। अगर मामला 50 लाख से ज्यादा की सालाना आय से जुड़ा है और गंभीर फ्रॉड का है तो विभाग 10 साल पुराने केस भी खंगाल सकता है।