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लोन नहीं भरने वालाें के पास भी हैं 5 अधिकार, जानिये RBI के नियम

RBI - लोग अपनी बड़ी जरूरतों जैसे कार खरीदने (Car Loan), बच्चों की पढ़ाई (Education Loan) और शादी, बिजनेस के लिए (Business Loan) और मकान खरीदने (Home Loan) के लिए बैंक से लोन का सहारा लेते हैं। आज के समय में बैंक भी ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के ऑफर्स देते हैं। गौरतलब है कि लोन (Bank Loan) एक बड़ी वित्तीय जिम्मेदारी है। आपको हर महीने समय से लोन की किश्ता (EMI) चुकानी पड़ती है।  अगर कोई ग्राहक लोन लेने के बाद तय समय पर लोन की  किस्त नहीं भरता है तो तो ऐसी स्थिति में बैंक ग्राहकों को कॉल और मैसेज भेजने लगते हैं। यहां तक की कई बार देखा गया है कि बैंकों के रिकवरी एजेंट ग्राहकों को पैसे न भेजने की स्थिति में डराया और धमकाया भी जाता है। अब सवाल ये है कि अगर ऐसी स्थिति आपके सामने आ जाए तो आप क्या कर सकते हैं। इसके लिए आपको रिजर्व बैंक RBI के दिशा निर्देशों को पता होना चाहिए। आईये नीचे डिटेल में जानते हैं...
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HR Breaking News, Digital Desk- Loan Default: बैंक से उधान यानी लोन लेने की आवश्यकता किसी को भी पड़ सकती है। होम लोन हो या पर्सनल लोन, जब आप एक बार कर्ज ले लेते हैं तो अवधि की समाप्ति तक आपको किश्त (EMI) देना ही होता है।

अगर आप लोन की मासिक किस्‍त यानी EMI चुकाने में असफल रहते हैं तो इसका तत्‍काल नतीजा पेनाल्‍टी के तौर पर नजर आता है।  हालांकि, इसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलते हैं। 

 

 

 

CLXNS (कलेक्शंस) के एमडी एवं सीईओ मानवजीत सिंह के अनुसार, अगर आपको लगता है कि आप समय पर लोन की राशि चुकाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, तो आप शुरुआत में ही कुछ कदम तैयारियां कर सकते हैं।  उदाहरण के तौर पर आप लोन (EMI) की अवधि  बढ़ा सकते हैं, जिससे आपकी ईएमआई घट जाती है।  इसी तरह, लोन संबंधी शर्तों को निर्धारित करने से पहले अपने फाइनेंशियल स्थिति को व्यवस्थित करना और लोन का पुनर्गठन (Loan Restructuring) करना भी एक बड़ी मदद हो सकती है। आप फाइनेंशियल इमरजेंसी के कारण अस्थायी राहत का अनुरोध भी कर सकते हैं, लेकिन इस दौरान आपको जुर्माने का भुगतान करना पड़ सकता है।

 

 

 

मानवजीत सिंह कहते हैं कि अगर आप ऐसे उपाय नहीं कर पाए या आप जो कुछ भी कर सकते थे, उसके बाद भी आप लोन का रीपेमेंट नहीं कर पाए हैं तो लोन डिफॉल्टर के रूप में आपको अपने अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए। कानून के अनुसार, वित्तीय संस्थान (Financial Institutions) उधार ली गई राशि की वसूली के लिए कदम उठाता है। हालांकि, कर्जदाता और बैंकों को ऐसा करते समय मानदंडों का पालन करना होता है। लोन लेने वालों के भी कुछ अधिकार हैं जिन्‍हें जानना जरूरी है...

 

 

आपकी बातें सुने जाने का अधिकार

आपको लोन डिफॉल्टर के रूप में अपनी बात रखने या उसे सुने जाने का अधिकार है। आप लोन अधिकारी को लोन चुकाने में विफलता के कारणों को बताते हुए लिख सकते हैं, खासकर यदि ये नौकरी छूटने या मेडिकल इमरजेंसी के कारण हुआ है। फिर भी, यदि आप लोन राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं और बैंक से एक आधिकारिक नोटिस मिल चुका है, तो यह आपका अधिकार है कि आप अधिकारियों के समक्ष रिपजेशन नोटिस पर किसी भी आपत्ति के साथ रिप्रेजेंटेशन दे सकते हैं। 

कॉन्‍ट्रैक्‍ट की शर्तों का अधिकार-

दूसरी ओर बैंक या कोई भी थर्ड पार्टी वसूली एजेंट दिन के किसी भी समय कर्जदार को लोन राशि चुकाने के लिए परेशान या बाध्य नहीं कर सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंकों को वसूली कार्य की आउटसोर्सिंग करते समय एक आचार संहिता का पालन करना होगा और ग्राहकों को अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ संभालने के लिए प्रशिक्षित एजेंटों की नियुक्ति करनी होगी।  

उन्हें कॉल करने के घंटे और ग्राहक की जानकारी की गोपनीयता के बारे में पता होना चाहिए। ल्ज्ञैन् रिकवरी का समय और स्थान पहले से तय किया जा सकता है, उदाहरण के लिए सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच। 

सभ्य नागरिकों जैसा व्यवहार पाने का है अधिकार

यह आपका अधिकार है कि आपके साथ सभ्यतापूर्वक व्यवहार किया जाए।  आप कानूनी तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं यदि बैंक/कर्जदाता के प्रतिनिधि चिल्लाते है या शारीरिक हिंसा कर रहे हैं या धमकी दे रहे हैं। बैंक/कर्जदाता को आपके साथ वसूली एजेंट का विवरण भी साझा करना पड़ेगा। एजेंट के पास जाते समय आपकी प्राइवेसी का सम्मान करना चाहिए और सभ्य तरीके से व्यवहार करना चाहिए। 

उचित मूल्य पाने का अधिकार

यदि आप अपना बकाया चुकाने में असमर्थ रहे हैं और बैंक ने भुगतान की वसूली के लिए आपकी संपत्ति की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी है, तो आपको बैंक से इसकी सूचना देने वाला एक नोटिस मिला होना चाहिए। इसमें संपत्ति/एसेट्स के लिए उचित मूल्य, नीलामी के समय और तारीख का विवरण, आरक्षित मूल्य आदि का भी उल्लेख होना चाहिए।  लोन डिफॉल्टर के रूप में आपका अधिकार आपको आपत्ति करने का अधिकार देता है यदि संपत्ति का मूल्यांकन कम किया गया है। 

आय संतुलन का अधिकार

यदि संपत्ति की बिक्री के बाद बरामद धन से कोई अतिरिक्त राशि है, तो लोन देने वाले संस्‍थानों को इसे लौटाना होगा।  चूंकि संपत्ति या परिसंपत्ति का मूल्य किसी भी समय बढ़ सकता है, इसलिए इसका मूल्य उस राशि से अधिक हो सकता है जो आपको बैंक को चुकाना था।  इसलिए, नीलामी प्रक्रिया की निगरानी करना महत्वपूर्ण है।  

इतनी EMI नहीं भरने पर शुरू होती है बैंक की कार्रवाई


आईये अब आइए जानते हैं, होम लोन नहीं चुकाने पर रिजर्व बैंक (RBI) की गाइडलाइंस क्या है। जब कोई ग्राहक होम लोन की पहली किस्त (Home Loan EMi) नहीं चुकाता है तो बैंक या वित्तीय संस्थान  उसे गंभीरता से नहीं लेता है।  बैंक को लगता है कि किसी कारणवश एक किश्त (EMI) में देरी हो रही है।  लेकिन, जब ग्राहक लगातार दो EMI नहीं भरता है, तो बैंक की ओर से एक रिमाइंडर भेजता है।  इसके बाद भी अगर ग्राहक तीसरी EMI की किस्त भुगतान करने में असफल रहता है तो बैंक फिर लोन चुकाने के लिए ग्राहक को एक कानूनी नोटिस भेजा जाता है। एक तरह से तीसरी EMI नहीं चुकाने के साथ बैंक कार्रवाई शुरू कर देता है। 


अगर कानूनी नोटिस के बाद लोन नहीं चुकाता है तो फिर बैंक ग्राहक  को डिफॉल्टर घोषित कर देता है। साथ ही बैंक लोन अकाउंट (Bank Loan) को NPA मान लेता है। अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में ये सीमा 120 दिन की होती है। इस समय सीमा के बाद बैंक वसूली प्रक्रिया के बारे में सोचने लगता है।


जानिये, RBI की गाइडलाइंस


सिक्‍योर्ड लोन में प्रॉपर्टी को गिरवी रखा जाता है, ताकि लोन न चुकाने पर बैंक उस प्रॉपर्टी को बेचकर अपने पैसे की भरपाई कर सके। लेकिन बैंक की तरफ से ये  आखिरी विकल्प होता है। केंद्रीय बैंक गाइडलाइंस (RBI Guidelines) के अनुसार ग्राहक लोन को चुकाने के लिए काफी समय दिया जाता है।


बैंक के पास अपने पैसे वापस लेने के लिए  कानूनी तौर पर आखिरी विकल्प प्रोपर्टी की नीलामी होता है।  मौटे तौर पर बैंक 3 महीने की किश्त (Loan EMI) नहीं चुकाने के बाद ग्राहक को 2 महीने का और वक्त देता है। अगर ग्राहक इसमें भी चूक जाते हैं, तो बैंक ग्राहक  संपत्ति के अनुमानित मूल्य के साथ नीलामी का नोटिस भेज देता है। अगर ग्राहक नीलामी की तारीख से पहले यानी नीलामी नोटिस मिलने के एक महीने बाद भी EMI नहीं भरता है तो बैंक नीलामी औपचारिकताओं के साथ आगे बढ़ता है। हालांकि इन 6 महीने के समय के दौरान ग्राहक किसी भी समय बैंक से संपर्क कर बकाया राशि का भुगतान कर मामले को सुलझा सकता है। 


समय पर लोन नहीं चुकाने से सबसे बड़ा  नुकसान ये है कि बैंक ग्राहक को डिफॉल्डर (Loan Defaulters ) घोषित कर देता है। इससे ग्राहक का क्रेडिट स्कोर (CIBIL Score) खराब हो जाता है और एक बार सिबिल स्कोर खराब होने से भविष्य  में कोई बैंक लोन नहीं देगा।

RBI ने दी एक और बड़ी राहत

आरबीआई ने कर्जधारकों को बड़ी राहत देते हुए लोन के नियमों में संशोधन (Amendment in loan rules) किया है। रिजर्व बैंक ने बैंकों को और एबीएफसी को निर्देश दिया है कि अगर कोई कर्जदार वक्त पर ईएमआई नहीं दे पाता या EMI बाउंस हो जाता है तो उस पर फाइन लगाया जा सकता है, लेकिन इस फाइन पर ब्याज नहीं लगा सकते हैं। आरबीआई ने बैंकों की मनमानी पर रोक लगा दी है। बैंक ने कहा है कि बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने पीनल इंटरेस्ट (pinal interest) को अपना रेवेन्यू बढ़ाने का जरिया बना लया था। जिसीक वजह से लोन लेने वालों को मुश्किल हो रही थी। अब आरबीआई ने इसके लिए रिवाइज्ड गाइडलाइन जारी की हैं, जिसके मुताबिक बैंक और एनबीएफसी कर्ज के ईएमआई बाउंस पर फाइन की लगा सकेंगे , लेकिन उस पर ब्याज नहीं।

जानिए रिजर्व बैंक ने क्या कहा..

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) की 'दंडात्मक ब्याज' को अपना राजस्व बढ़ाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। आरबीआई ने इस बारे में संशोधित नियम जारी किए हैं। नए नियमों के तहत कर्ज भुगतान में चूक के मामले में अब बैंक संबंधित ग्राहक पर सिर्फ 'उचित' दंडात्मक शुल्क ही लगा सकेंगे। रिजर्व बैंक ने 'उचित ऋण व्यवहार-कर्ज खातों पर दंडात्मक शुल्क' के बारे में शुक्रवार को जारी अधिसूचना में कहा कि बैंक और अन्य ऋण संस्थानों को एक जनवरी, 2024 से दंडात्मक ब्याज लगाने की अनुमति नहीं होगी।

आरबीआई ने कर्ज लेने वाले व्यक्ति की ओर से ऋण अनुबंध की शर्तों का अनुपालन नहीं करने पर उससे 'दंडात्मक शुल्क' (penal charge) लिया जा सकता है। इसे दंडात्मक ब्याज के रूप में नहीं लगाया जाएगा। दंडात्मक ब्याज को बैंक अग्रिम पर वसूली जाने वाली ब्याज दरों में जोड़ देते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसके साथ ही यह स्पष्ट किया है कि दंडात्मक शुल्क (penal charge) उचित होना चाहिए। यह किसी कर्ज या उत्पाद श्रेणी में पक्षपातपूर्ण बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। अधिसूचना (RBI notification) में कहा गया है कि दंडात्मक शुल्क का कोई पूंजीकरण नहीं होगा। ऐसे शुल्कों पर अतिरिक्त ब्याज की गणना नहीं की जाएगी।

हालांकि, केंद्रीय बैंक के ये निर्देश क्रेडिट कार्ड, बाह्य वाणिज्यिक कर्ज, व्यापार क्रेडिट आदि पर लागू नहीं होगी। केंद्रीय बैंक ने कहा, ''दंडात्मक ब्याज/शुल्क लगाने की मंशा कर्ज लेने वाले में ऋण को लेकर अनुशासन की भावना लाना होता है। इसे बैंकों द्वारा अपना राजस्व बढ़ाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।''  

EMI नहीं भरने के मामले में हाईकोर्ट ने भी दिया अहम फैसला


लोन की किस्त (EMI) नहीं भरने के मामले में हाईकोर्ट ने भी हाल ही में महत्पूर्ण फैसला दिया था।  हाई कोर्ट ने एक फैसला देते हुए कहा है कि अगर कोई व्यक्ति गाड़ी खरीदने के लिए फाइनेंस कंपनी या बैंक से लोन लेता है और लोन की किस्त (Loan EMi) समय पर  चुकाने में असमर्थ होता है तो फाइनेंस कंपनी और बैंक द्वारा वसूली एजेंटों के जरिए गाड़ी को जब्त करना गैरकानूनी है।  
हाईकोर्ट ने कहा है कि बहुत सारे मामलों में देखा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी फाइनेंस कंपनी से लोन पर गाड़ी लेता है और वह उसकी EMI समय पर नहीं चुका  पाता है तो फाइनेंस कंपनी के दबंग जबरन उस व्यक्ति से उसकी गाड़ी को जब्त कर लेते हैं जो कि गलत है और इसीलिए कोर्ट ने अब फाइनेंस कंपनी और बैंकों पर जुर्माना लगाया। 


कोर्ट ने कहा दर्ज होगी FIR


हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अगर किसी बैंक या फाइनेंस कंपनी के रिकवरी एजेंट लोन की किस्त (Loan EMI Rules) नहीं चुकाने की स्थिति में जबरन किसी व्यक्ति से गाड़ी जब्त करते हैं तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए और कार्रवाई होनी चाहिए।


न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद की सिंगल बेंच ने इसी मामले से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि बैंक और फाइनेंस कंपनियों के द्वारा लोन  लोन नहीं चुकाने की स्थिति में उनके रिकवरी एजेंट अब जबरन गाड़ी को जब्त नहीं कर पाएंगे और ऐसे रिकवरी एजेंटों के खिलाफ FIR दर्ज करने के बाद  जिला में पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करेंगे ऐसे दबंग वसूली एजेंटों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।