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OPS vs NPS : सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना से कितना मिलेगा लाभ, जानिए क्यों मचा है हल्ला

OPS vs NPS : पिछले काफी समय से लोग पुरानी पेंशन स्कीम (Old Pension Scheme) को फिर से बहाल करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। जानकार मानते हैं कि पुरानी योजना के मुकाबले नई पेंशन योजना में कर्मचारियों को काफी कम फायदे मिलते हैं, जिससे उनका भविष्य सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
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HR Breaking News, Digital Desk- हम अपनी आजीविका चलाने के लिए कमाई करते हैं। कोई नौकरी करता है, तो कोई अपना बिजनेस करता है। वहीं, जो लोग सरकारी नौकरी करते हैं (केंद्र या राज्य सरकार के कर्मचारी के तौर पर) उन्हें पेंशन देने का प्रावधान है।

पिछले कुछ समय से आप ओपीएस यानी ओल्ड (पुरानी) पेंशन योजना और एनपीएस यानी नई पेंशन योजना पर विभिन्न सरकारों और कर्मचारी संगठनों के बीच रार ठनी हुई है। आइए जानते हैं क्या है पुरानी पेंशन स्कीम यानी ओपीएस जिसे कर्मचारी संगठन लागू करने की मांग कर रहे हैं। एनपीएस यानी नई पेंशन स्कीम का विरोध क्यों हो रहा है। 

क्या है पुरानी पेंशन योजना? 
बात अगर ओल्ड पेंशन योजना की करें, तो इसमें कर्मचारी के सेवा काल के आखिर के  वेतन का 50 फीसदी पेंशन के रूप में आजीवन किया जाता था। इसकी पूरी राशि का भुगतान सरकार की तरफ से किया जाता था। हालांकि, दिवंगत अटली बिहारी वाजपेयी की सरकार ने दिसंबर 2003 में इस पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया था। अब उसी पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए विभिन्न कर्मचारी संगठन सड़कों पर उतर रहे हैं।

पुरानी पेंशन योजना को कैसे समझें?
केंद्र और राज्यों में सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन अंतिम आहरित मूल वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया था। मतलब सेवा के आखिरी दौर में जितना वेतन मिलता था, उसका आधा प्रतिमाह रिटायरमेंट के बाद पेंशन के तौर पर मिलता था। इसके लिए कर्मचारियों के वेतन से कटौती भी नहीं होती थी। 


उदाहरण के लिए, अगर किसी रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी का सेवा में रहते हुए मासिक मूल वेतन 10,000 रुपये था, तो उसे 5,000 रुपये की पेंशन का आश्वासन दिया जाता था। इसके अलावा सरकार द्वारा सेवारत कर्मचारियों के लिए घोषित महंगाई भत्ते या डीए में बढ़ोतरी का असर भी पेंशनभोगियों के मासिक भुगतान पर पड़ता था। मतलब भत्ते और डीए का लाभ पेंशनभोगियों को भी मिलने लगता था। 


अभी तक सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली न्यूनतम पेंशन नौ हजार रुपये प्रति माह है और अधिकतम 62,500 रुपये है। (केंद्र सरकार में उच्चतम वेतन का 50 प्रतिशत, जो कि 1,25,000 रुपये प्रति माह है)। पुरानी पेंशन योजना यानी OPS को 2004 में बंद कर दिया गया था। इसके बदले नई पेंशन योजना लागू कर दी गई। 


पिछले काफी समय से लोग पुरानी पेंशन स्कीम को फिर से बहाल करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। जानकार मानते हैं कि पुरानी योजना के मुकाबले नई पेंशन योजना में कर्मचारियों को काफी कम फायदे मिलते हैं, जिससे उनका भविष्य सुरक्षित नहीं माना जा सकता। यही नहीं, जब नौकरी पूरी हो जाएगी और जो पैसे मिलेंगे उस पर टैक्स भी देना पड़ता है। यही सब वजह है कि कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना का विरोध कर रहे हैं।

आरबीआई के शोधपत्र में पुरानी पेंशन योजना पर क्या कहा गया?
वहीं दूसरी ओर सरकार का मत इसके उलट है। आरबीआई के एक शोध पत्र में कहा गया है कि पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के मामले में राजकोषीय बोझ नई पेंशन योजना से 4.5 गुना तक अधिक हो सकता है।    राज्यों का पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटना पीछे की ओर कदम रखने जैसा है। यह मध्यम से लंबी अवधि में राज्यों के वित्तीय स्थिति को अस्थिर कर सकता है।

गौरतलब है कि हाल में राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश ने पुरानी पेंशन को लागू करने का फैसला किया था। लेख में कहा गया है कि ओपीएस में परिभाषित लाभ हैं, जबकि एनपीएस में योगदान परिभाषित है। ओपीएस में अल्पकालिक आकर्षण है। वही मध्यम से लंबे समय में यह राज्यों के लिए एक चुनौती बन सकता है।

पुरानी पेंशन योजना लागू करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण क्यों?

राज्य 2040 तक ओपीएस पर वापस लौटने से वार्षिक पेंशन खर्च में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.1 प्रतिशत बचाएंगे। लेकिन 2040 के बाद वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद के 0.5 प्रतिशत तक पेंशन खर्च में औसत अतिरिक्त वृद्धि करनी होगी। लेख में चेतावनी दी गई है कि राज्यों का ओपीएस पर वापस लौटने से लंबी अवधि में उनके राजकोषीय तनाव को अस्थिर स्तर तक बढ़ा सकता है।

पुरानी पेंशन योजना से सरकार को क्या समस्या है?

- मुख्य समस्या यह थी कि पेंशन की देनदारी अनफंडेड रही। मतलब आय का कोई जरिया नहीं था और भुगतान की राशि में लगातार इजाफा होते जा रहा था।

- भारत सरकार के बजट में हर साल पेंशन के लिए प्रावधान किया जाता है। भविष्य में साल दर साल भुगतान कैसे किया जाए, इस पर कोई स्पष्ट योजना नहीं थी।

- एक तरफ पेंशन की देनदारियां बढ़ती जा रही थीं तो दूसरी ओर हर साल पेंशनर्स को दी जाने वाली सुविधाओं में भी बढ़ोतरी। मतलब महंगाई भत्ता, डीए से पेंशन भुगतान की राशि में और भी इजाफा होने लगा था।

- पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई। 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था और सभी राज्यों के लिए कुल व्यय 3,131 करोड़ रुपये था। 2020-21 तक, केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया। राज्यों के लिए यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया।