RBI देश में 4 जगहों पर बनाता है सिक्के, जानिए लगातार क्यों छोटा होता जा रहा है सिक्कों का साइज
RBI - कई लोगों को सिक्के इकट्ठे करने का शौक होता है, और कई लोग के पास आपको बहुत से सिक्के (coins) भी मिल जाएंगे. पर क्या आप जानते हैं कि ये बनते कैसे हैं और भारत में कहां ढाले जाते हैं? अगर नहीं तो चलिए आइए जान लेते है आज इस खबर में-

HR Breaking News, Digital Desk- (RBI) कई लोगों को सिक्के इकट्ठे करने का शौक होता है, और कई लोग के पास आपको बहुत से सिक्के भी मिल जाएंगे. पर क्या आप जानते हैं कि ये बनते कैसे हैं और भारत में कहां ढाले जाते हैं? अगर आपका जवाब नहीं है तो आपको भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के मुताबिक बता दें कि भारत में सिक्के चार अलग-अलग जगहों पर ढाले जाते हैं.
भारत में कहां पर बनते हैं सिक्के?
भारीतय रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में केवल चार जगहों पर ही सिक्के बनाए जाते हैं. ये जगहें मुंबई (mumbai), अलीपोर (कोलकाता), हैदराबाद (Hyderbad) और नोएडा (Noida) हैं. आप सिक्कों पर बने एक चिन्ह को देखकर भी पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का कहां बना है. हर सिक्के पर उसके मिंट (mint) किए जाने का साल लिखा होता है. सिक्कों पर लिखे इसी साल के नीचे यह चिन्ह बना होता है, जिसकी मदद से आप पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का किस जगह पर मिंट किया गया है.
सिक्के ढालने के निशान-
हैदराबाद: सिक्के पर सितारा का निशान
नोएडा: सिक्के पर ठोस बिंदु (सॉलिड डॉट) का निशान
मुंबई: सिक्के पर हीरे (डायमंड) का आकार
कोलकाता: सिक्के पर कोई निशान नहीं
यह जानकारी आपको अपने सिक्कों की पहचान करने में मदद करेगी
भारत में क्वाइनेज एक्ट (coins act) 1906 के तहत सिक्कों को मिंट किया जाता है. इस एक्ट के तहत ही भारत सरकार की तरफ से सिक्कों के उत्पादन और उसकी सप्लाई की जिम्मेदारी आरबीआई (Reserve Bank Of India) को दी गई है. आरबीआई इस मकसद के लिए साल भर का लक्ष्य तय करती है और भारत सरकार प्रोडक्शन का प्रोग्राम बनाती है.
वेबसाइट कोरा के भारत सरकार धातुओं के मूल्य के आधार पर समय-समय पर विभिन्न धातुओं को उपयोग में लाती है. फिलहाल अधिकांश सिक्कों के निर्माण के लिए फेरिटिक स्टेनलेस स्टील (17% क्रोमियम और 83% आयरन) का उपयोग किया जा रहा है.
सिक्कों की साइज क्यों छोटी होती जाती है?
दरअसल, किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होती है. एक ‘फेस वैल्यू’ और दूसरी ‘मेटैलिक वैल्यू’. फेस वैल्यू का मतलब है कि सिक्कों पर जो वैल्यू लिखी है. मतलब है अगर कोई सिक्का 1 रुपये का है तो उसकी फेस वैल्यू 1 रुपये ही होगी. इसी प्रकार 2 रुपये सिक्के की वैल्यू 2 रुपये और 5 रुपये के सिक्के की वैल्यू 5 रुपये है.
मेटैलिक वैल्यू का मतलब है कि उस सिक्के को बनाने में कितना खर्च किया गया है. मान लीजिए कि अगर किसी सिक्के को पिघलाया जाता है उसके प्राप्त मेटल को 5 रुपये में बेचा जाता है तो उसकी मेटैलिक वैल्यू (metallic value) 5 रुपये होगी. अब इसे एक उदहारण की मदद से समझते हैं.
मान लीजिए कि कोई व्यक्ति एक रुपये के सिक्कों को पिघलाकर 2 रुपये में बेच रहा है, तो उन्हें इस एक रुपये के सिक्के पर 1 रुपये का अतिरिक्त फायदा मिल रहा है. इस प्रकार इस व्यक्ति को 1 रुपये का नुकसान तो हुआ, लेकिन बदले में उन्हें 2 रुपये का फायदा भी हुआ.
सिक्कों की होती है मैटेलिक वैल्यू-
यदि सिक्कों का धात्विक मूल्य उनके अंकित मूल्य से अधिक हो जाए, तो लोग उन्हें पिघलाकर मुनाफा कमा सकते हैं. इससे बाजार से सिक्के गायब हो सकते हैं, जो सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. इस स्थिति से बचने के लिए, सरकार सिक्कों का धात्विक मूल्य उनके अंकित मूल्य से कम रखती है. महंगाई के हिसाब से सरकार हर साल सिक्कों का आकार और वजन कम करती रहती है ताकि उन्हें पिघलाकर मुनाफा कमाने का कोई मौका न मिले.
RBI पर होती है जिम्मेदारी-
भारत में करेंसी नोट (Indian Currency) छापने और सर्कुलेट करने की मुख्य जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI latest update) के पास है. RBI मौद्रिक नीति के जरिए अर्थव्यवस्था में पैसे के प्रवाह को नियंत्रित करता है - बाजार में ज्यादा पैसा होने पर उसे कम करता है और कम होने पर बढ़ाता है. हालांकि, 1 रुपये के नोट छापने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की होती है, जिस पर वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं. ये नोट भी RBI के जरिए ही सर्कुलेट किए जाते हैं.