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लोन की EMI नहीं भरने के मामले में Supreme Court ने दिया बड़ा फैसला, बैंकों को जारी किए ये निर्देश

रिजर्व बैंक का एक मास्टर सर्कुलर बैंकों को निर्देश देता है कि वे विलफुल डिफॉल्टर्स के लोन अकाउंट्स को फ्रॉड वर्गीकृत करें. रिजर्व बैंक के इस मास्टर सर्कुलर को कई अदालतों में चुनौती दी गई थी.आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.

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HR Breaking News (नई दिल्ली)। लोग कई बार कुछ अचानक जरूरत आने या कोई बड़ा काम निपटाने के लिए लोन का सहारा लेते हैं. कई बार लोग कारोबार बढ़ाने के लिए भी बैंकों से कर्ज लेते हैं. इनमें से कुछ ऐसे भी मामले सामने आते हैं, जिनमें कर्जदार बैंक के कर्ज की किस्तों का भुगतान नहीं कर पाता है ओर बैंक उसके लोन अकाउंट (Loan Account) को फ्रॉड घोषित कर देते हैं. अब बैंक पहले की तरह ऐसा नहीं कर पाएंगे. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस संबंध में एक ताजा फैसला सुनाया है.

डिफॉल्टर्स को मिलेगा ये मौका


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले कर्जदाता को बैंकों की तरफ से अपना पक्ष रखने का एक मौका दिया जाना चाहिए, क्योंकि बैंकों के इस कदम से संबंधित व्यक्ति के सिबिल स्कोर पर बुरा असर होता है. मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बैंक डिफॉल्टर को बिना अपना पक्ष रखने का मौका दिए एकतरफा अकाउंट को फ्रॉड नहीं घोषित कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने की ऐसी टिप्पणी


पीठ ने इसके अलावा यह भी कहा कि किसी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने के मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने से पहले ही इस तरह का कदम उठाने की कोई जरूरत नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करना संबंधित कर्जदार को ब्लैकलिस्ट करने के समान है. शीर्ष अदालत इस संबंध में दो हाई कोर्ट के फैसलों पर विचार कर रहा था.


क्या कहता है आरबीआई का सर्कुलर


दरअसल तेलंगाना हाई कोर्ट (Telangana High Court) और गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के फ्रॉड से जुड़े मास्टर सर्कुलर (Frauds Classification and Reporting by Commercial Banks and Select Fls Directions 2016) पर फैसला सुनाया था. रिजर्व बैंक का यह मास्टर सर्कुलर बैंकों को निर्देश देता है कि वे विलफुल डिफॉल्टर्स के लोन अकाउंट्स को फ्रॉड वर्गीकृत करें.

ये था हाई कोर्ट का फैसला


रिजर्व बैंक के इस मास्टर सर्कुलर को कई अदालतों में चुनौती दी गई थी. तेलंगाना हाई कोर्ट ने ऐसी ही एक चुनौती का सामना करते हुए कहा था कि पक्ष रखने का अधिकार नहीं देना कर्जदार के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट भी तेलंगाना हाई कोर्ट की राय से सहमत हुआ है.