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Salary से क्यों कट जाता है टैक्स? समझ ले पूरी कैलकुलेशन

Tax : हर शख्स अपनी मेहनत की कमाई पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स बचाना चाहता है। लेकिन, टैक्स कई तरह के होते हैं, जिनके बारे में बहुत से लोगों को पता नहीं होता। कई बार जब आपकी सैलरी से पैसा कट जाता है,अगर आप भी नौकरी करने वालों में से है तो यह खबर आपके काम की है, अकसर आपने देखा होगा की हर महीने आपको उम्मीद से कम ही पैसे खाते में आते है, आइए आपको बताते है की सैलरी से क्यों कट जाता है टैक्स? और कैसे होता है इसका कैलकुलेशन....
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HR Breaking News, Digital Desk - नौकरी करने वालों के लिए जनवरी-मार्च के महीने अक्सर परेशानी भरे होते हैं. इन तीन महीनों में उनकी सैलरी अचानक से कम हो जाती है क्योंकि अधिकतर कंपनियां उनकी सैलरी पर बनने वाले टैक्स को इन्हीं तीन महीनों में काटती है. कुछ कंपनियां वित्त वर्ष के शुरुआती महीनों में ही ये टैक्स काट लेती है. लेकिन सवाल ये है कि आपकी सैलरी से टैक्स कटता क्यों है, (tax deducted from salary)आप आईटीआर भरते समय इसे बाद में क्यों नहीं दे सकते और इसका कैलकुलेशन कैसे होता है?


कंपनियां या एम्प्लॉयर अपने एम्प्लॉई की सैलरी से जो टैक्स काटती हैं, उसे टीडीएस (TDS) यानी टैक्स डिडक्टेड एड सोर्स कहा जाता है. कंपनियां या एम्प्लॉयर या तो हर महीने की सैलरी से या सिर्फ किसी एक क्वार्टर की सैलरी से कई किस्तों में इस टैक्स कटौती को अंजाम देते हैं.


आपकी सैलरी के हिसाब से तय होता है TDS


हर एम्प्लॉई का टीडीएस (Employee's TDS) उसकी सैलरी पर डिपेंड करता है. इसलिए आपकी सैलरी से कितना टीडीएस कटेगा, इसका कोई फिक्स पैमाना नहीं है. हालांकि इसका कैलकुलेशन आपके पैकेज में से आपकी अनुमानित टैक्सेबल इनकम के आधार पर किया जाता है.
अगर आप साल की शुरुआत में ही अपने इंवेस्टमेंट, एचआरए, होम लोन वगैरह की जानकारी अगर अपने एचआर डिपार्टमेंट को दे देते हैं, तब आपकी एस्टिमेटेड टैक्सेबल इनकम (Estimated taxable income) कम हो जाती है और फिर आपकी सैलरी से टैक्स कम कटता है.

TDS का कैलकुलेशन कैसे होता है ?


आखिर आपकी सैलरी से हर महीने कितना टीडीएस कटेगा, इसका कैलकुलेशन कैसे होता है? आप अपने एचआर डिपार्टमेंट को जो भी इंवेस्टमेंट और टैक्स रिजीम की जानकारी देते हैं, उसके बाद कंपनी या एम्प्लॉयर का फाइनेंस डिपार्टमेंट आपकी टैक्सेबल इनकम पर टैक्स का कैलकुलेशन करता है. इसके बाद आपकी सैलरी से महीने दर महीने उसे ईएमआई की तरह समान अनुपात में काट लिया जाता है.