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Sarpanch Chhavi Rajawat : लाखों की नौकरी छोड़, इस महिला ने संभाला गांव, अब G 20 की बैठक के लिए आया निमंत्रण

दिल्ली और जयपुर में सात साल तक नौकरी करी और आज अपने गांव की सरपंच बनी ये महिला। अपने गांव की हालत देखते हुए उन्होनें लाखों की नौकरी छोड़ ये फसला लिया। 
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Sarpanch Chhavi Rajawat : लाखों की नौकरी छोड़, इस महिला ने संभाला गांव, अब G 20 की बैठक के लिए आया निमंत्रण

HR Breaking News, Digital Desk- राजस्थान के टोंक जिले के सोढ़ा गांव की दो बार सरपंच बनी छवि राजावत ने 2003 में पुणे से MBA किया. सात साल तक दिल्ली और जयपुर में कई कंपनियों में नौकरी की. जब उन्‍होंने नौकरी छोड़ी तब उन्‍हें 1 लाख रुपए महीना वेतन मिलता था. ऐसा नहीं है कि उन्‍होंने स्‍वयं सरपंच बनने का फैसला किया था. गांव वालों ने उन्‍हें निवर्तमान सरपंच की पत्‍नी के सामने चुनाव लड़वाया था. वे दो हजार से ज्‍यादा मतों से चुनाव जीत गई.


सरपंच बनने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती गांव में पानी की कमी को पूरा करना था. सरकार से मदद न मिलने पर छवि ने अपने पिता, दादा और उनके तीन दोस्तों की सहायता से क्राउंड फंडिंग से पैसे जुटाए. लोगों को श्रमदान के लिए राजी किया और गांव के तालाब की खुदाई कर डाली. दो दिन बाद बारिश हुई तो तालाब लबालब भर गया.


छवि ने गांव में 40 सड़कें बनवाई. सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया. वे गांव में अब जैविक खेती को प्रोत्‍साहित करने में जुटी हैं. वे खुद भी खेती करती हैं और खेतों में ट्रैक्‍टर से जुताई करती हैं.

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सोढ़ा गांव की आबादी 10 हजार है. छवि कहती हैं कि जब वे पहली बार 2010 में सरपंच बनी तब गांव अकाल, पानी की कमी, खराब सड़कों और गरीबी जैसी समस्‍याओं से जूझ रहा था. आज इनमें से अधिकतर समस्‍याओं का निवारण हो चुका है.


छवि (Chhavi Rajawat ) को सोडा के गांव में बाईसा के नाम से भी जाना जाता है. वे सरपंच का पद संभालने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति थी. उनके दादा जी ब्रिगेडियर रघुबीर सिंह भी छवि के चुनाव जीतने से 20 साल पहले इसी गांव के सरपंच रह चुके थे.

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छवि ने पंचायत की बैठकों में महिला पंचों की जगह उनके पतियों के भाग लेने पर पूरी तरह रोक लगा दी. उन्‍होंने कहा कि स्‍पष्‍ट कर दिया कि अगर गांव वालों ने महिलाओं को चुना है तो काम भी वे ही करेंगी.


गांव में क्‍या काम होने चाहिए, छवि ने यह घर-घर जाकर पता लगाया. उन्‍हें पता चला कि गांव की महिलाओं के लिए गांव में शौचालय नहीं है. इसलिए उन्‍होंने तालाब खुदाई के बाद शौचालय निर्माण को प्राथमिकता दी.

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