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Success Story: ये है भारत की पहली महिला इंजीनियर, 15 की उम्र में शादी 18 में हो गई थी विदवा, पढिए इनकी सक्सेस स्टोरी

A. lalita success story : भारत में इंजीनियर्स का महत्त्व तो आप अच्छे से जानते ही होगें। लेकिन क्या आप जानते हैं देश की पहली महिला इंजीनियर कौन थी? हम आपको बताने जा रहे हैं भारत की पहली महिला इंजीनियर की कहानी। जिसकी 15 वर्ष की उम्र में विवाह और 18 में विधवा हो गई। जानिए इनके पुरी स्टोरी...
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Success Story: ये है भारत की पहली महिला इंजीनियर, 15 की उम्र में शादी 18 में हो गई थी विदवा, पढिए इनकी सक्सेस स्टोरी

HR Breaking News (नई दिल्ली)। Ayyalasomayajula Lalitha: भारत में इंजीनियर्स का अधिक महत्व है। एक इंजीनियर विभिन्न प्रकार के उत्पादों और प्रणालियों का मूल्यांकन कर उसका विकास, निरीक्षण और रखरखाव का पूरा ध्यान रखता है। वहीं देश के पहले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने आधुनिक भारत की रचना की और देश को एक नया रूप दिया। कई बड़ी नदियों के लिए बांध और पुल बनाएं। हालांकि, इस दौरान महिलाओं की भी अहम भूमिका रही। वर्तमान में भी कई महिला इंजीनियर देश का नाम रोशन कर रही हैं।


उस समय जब महिलाओं को पर्दे के पीछे रखा जाता था, तब किसी महिला ने इंजीनियर बनने का सपना देखा था। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको  भारत की पहली महिला इंजीनियर के बारे में बताने वाले हैं, जो न केवल अपनी मेहनत के लिए जानी जाती है बल्कि निजी जीवन में चल रही कई परेशानियों के बावजूद भी उन्होंने ये उपलब्धि हासिल की।

 
देश की पहली महिला इंजीनियर :
भारत की पहली महिला इंजीनियर ए. ललिता हैं। उनका पूरा नाम अय्यलसोमायाजुला ललिता था। वह एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थीं। उस दौर में औरतों को पढ़ने लिखने की आजादी कम ही थी। इन सभी सामाजिक मानदंडों के बीच ए. ललिता का स्कूल जाना, पढ़ाई करना और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भविष्य बनाना हम सभी के लिए प्रेरणादायक है।


यहां हुआ था उनका जन्म :
अय्यलसोमायाजुला ललिता का जन्म 27 अगस्त 1919 को चेन्नई में हुआ था। उनके पिता पप्पू सुब्बाराव लेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे। ललिता सात भाई-बहनों में पांचवें नंबर की संतान थीं। उनके परिवार ने समाज की कु प्रथाओं को लांगते हुए ललिता को पढ़ने का मौका दिया। हालांकि, महज15 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई।


विधवा ललिता ने चुनी इंजीनियरिंग :
ललिता की शादी के तीन साल बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। इतनी कम उम्र में विधवा होना और 4 महीने की बेटी को संभालना ए. ललिता के लिए एक बड़ी चुनौती थी। पति की मौत के बाद ललिता के जीवन मे नया दौर आया। अपनी बेटी श्यामला का जीवन संवारने और खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया। परिवार के सहयोग से ललिता ने चेन्नई के क्वीन मैरी कॉलेज से फर्स्ट डिवीजन के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा को पास किया। इस शानदार प्रदर्शन के बाद ए. ललिता एक के बाद एक तरक्की की राह पर चलती गई।


ऐसे बनीं भारत की पहली इंजीनियर :
इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद ए. ललिता ने मद्रास विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज में चार साल के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग प्रोग्राम में दाखिला लेने की योजना बनाई। लेकिन साल 1930 के दशक के अंत तक टेक्निकल ट्रेनिंग में सिर्फ पुरुषों को दाखिला मिलता है। हालांकि, ए. ललिता ने फिर भी हार नहीं मानी और अपने पिता की सहायता से इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया।

 

 

अपनी मेहनत और लगन से मंजिल की राह पर चलने वाली ए. ललिता ने इस दौरान कई परेशानियों का सामना भी किया। लेकिन वह अपने करियर को लेकर एकाग्र थी। बाद में ललिता ने बिहार के जमालपुर में रेलवे वर्कशॉप में अप्रेंटिस की। इसके बाद शिमला के सेंट्रल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया में इंजीनियरिंग असिस्टेंट के पद पर कार्य किया।

यूके में लंदन के इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स से ग्रेजुएट शिप एग्जाम भी दिया और अपने पिता के साथ रिसर्च कार्य में भी जुड़ीं। ए. ललिता कई जगहों पर काम करने के साथ भारत के सबसे बड़े भाखड़ा नांगल बांध के लिए जनरेटर प्रोजेक्ट का हिस्सा भी बनीं। यह उनके सबसे प्रसिद्ध कामों में से एक है। 1964 में पहले इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आफ वुमन इंजीनियर एंड साइंटिस्ट कार्यक्रम के आयोजन में उन्हें आमंत्रित किया गया।