अफगानी लड़कियों को लेकर मलाला यूसुफजई ने जताई चिंता, बोली सोचकर रूह कांप जाती है, बंदूकधारी लोग तय करते है ज़िंदगी

पिछले करीब दो दशकों में अफगानिस्तान में लाखों लड़कियों और महिलाओं ने शिक्षा प्राप्त की। लेकिन जिस भविष्य का उनसे वादा किया गया था, अब वह पूरे तरीके से फिसलता नज़र आ रहा है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई का कहना है कि जिस तालिबान ने लड़कियों को स्कूल-कॉलेज जाने से रोका था, देश आज फिर उसी तालिबान की गिरफ्त में है।
मलाला यूसुफजई कहती हैं- मेरे मन में भी अफगानी बहनों को लेकर डर है। मैं मदद नहीं कर सकती, पर बचपन के बारे में सोचती हूं, जब 2007 में तालिबान ने पाकिस्तान में मेरे गृहनगर पर कब्जा करके लड़कियों की शिक्षा को रोक दिया था। उस समय मैं मोटी शॉल के नीचे किताबें छिपाकर डरते हुए स्कूल जाती थी।
मैंने स्कूल जाने के अधिकार पर बोला तो मुझे मारने की कोशिश की गई। ग्रेजुएट होने के बाद मैंने करियर की राह बनानी शुरू कर दी है, मैं यह सब खोने की कल्पना नहीं कर सकती। अफगानी लड़कियां आज वहीं पहुंच गई हैं, जहां कभी मैं थी। उस जिंदगी में लौटने का सोचकर भी रूह कांप जाती है, जिसकी रूपरेखा बंदूकधारी पुरुष तय करेंगे।
हालांकि, तालिबान का कहना है कि वे लड़कियों की शिक्षा और काम करने के अधिकार नहीं छीनेंगे, पर महिला अधिकारों को लेकर तालिबान के दमनकारी इतिहास को देखते हुए महिलाओं का डर जायज है। अफगान के लिए कुछ भी नया नहीं है।
अफगानिस्तान में बच्चे युद्ध के माहौल में पैदा हुए हैं। परिवार बरसों से शरणार्थी शिविरों में रह रहा हैं। तालिबान द्वारा उठाए गई कलाश्निकोव (राइफल) देश के लोगों के कंधों पर भारी बोझ है। जिन देशों ने अफगानों को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया, अब उन्हें अपने दम पर लड़ने के लिए छोड़ दिया है। पर अफगानी महिलाओं और बच्चों की मदद करने में अभी देर नहीं हुई है।
अफगानी लोग चाहते हैं कि तालिबान स्पष्ट कर दे कि वह किन चीजों को अनुमति देगा। यह कहना काफी नहीं है कि लड़कियां स्कूल जा सकती हैं। हमें समझौते करने की जरूरत है कि लड़कियां शिक्षा पूरी कर सकें, साइंस-मैथ पढ़ सकें, यूनिवर्सिटी जा सकें, उन्हें मनपसंद नौकरी की आजादी हो। आशंका है कि तालिबानी का जोर सिर्फ धार्मिक शिक्षा पर होगा।
जो बच्चों को उस कौशल को पाने से रोक देगा, जिनकी बदौलत वे सपने पूरे करना चाहते हैं और उनका देश बिना डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिकों वाला होगा। हमें इस नाजुक घड़ी में अफगानी महिलाओं और लड़कियों की आवाज सुननी ही होगी। उन्हें सुरक्षा, शिक्षा और आजादी दिलानी ही होगी, जिसका उन्हें वादा किया गया था। हम उन्हें लगातार विफल नहीं होने दे सकते।