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बच्चे की कस्टड़ी के लिए लड़ रहे माता-पिता एक बार जरूर पढ़ ले सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को सवाल किया कि माता-पिता के बीच वैवाहिक विवाद में फंसे बच्चे की कस्टडी से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलुओं को विधायिका एक कानून के तहत लाने का प्रयास क्यों नहीं करती।

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शीर्ष अदालत ने बच्चे की कस्टडी से जुड़े विभिन्न कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि उनसे याचिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, 'सवाल यह है कि पहले से ही पर्याप्त कानून हैं।

इसके लिए मेंटीनेंस एक्ट, गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, प्रोटेक्शन आफ वूमेन फ्राम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट हैं। चार-पांच एक्ट हैं और वे एक अदालत से दूसरी अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। यह समय है जब विधायिका इन सब चीजों को देखे।' पीठ ने कहा, 'विधायिका इसको इस दृष्टिकोण से क्यों नहीं देखती.. आप एक बार में ही इन सभी को एक छतरी के नीचे क्यों नहीं लाते।'

पत्नी के कमाने के बावजूद, पति उसे कानूनी और नैतिक रूप से गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य: हाईकोर्ट

अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मुद्दे पर लिखित जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय देने की मांग की, इस पर पीठ ने उन्हें इसकी अनुमति प्रदान कर दी। शीर्ष अदालत वर्ष 2017 के गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल हेमंत बाबूराव वसंते द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी।

नाबालिग लड़की से बने संबंध से पैदा बच्चे को जैविक पिता को सौंपा जाए- दिल्ली हाई कोर्ट

नाबालिग लड़की से बने संबंध से पैदा हुए बच्चे को उसकी मां की सहमति से दिल्ली हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपों का सामना कर रहे जैविक पिता को सौंपने की अनुमति दी। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की पीठ ने कहा कि किशोरी अभी नाबालिग है और उसे बालिग होने तक आश्रय गृह में रखा जाएगा। इसके बाद कहीं भी रहने के लिए स्वतंत्र है। पीठ ने यह आदेश पीड़िता का बयान सुनने के बाद दिया।

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