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Ajab Gajab : देश के इस गांव में शादी से पहले लड़के के साथ रहती है लड़की, 500 साल पुरानी है परम्परा

ajab gajab news : हमारी देश में शादी को लेकर बहुत सारे रीती रिवाज पूरे किये जाते हैं, कुछ तो रिवाज़ ऐसे है जिनके बारे में जान कर आपको भी हैरानी होगी, ऐसी ही एक परम्परा इस गांव में भी निभाई जाती है जहाँ शादी से पहले ही लड़का और लड़की एक साथ रहते हैं| आइये जानते हैं इसके बारे में 

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 'दापा' प्रथा

HR Breaking News, New Delhi :  आधुनिक युग में लिव इन रेलेशनशिप भले ही बीते 15-20 साल पहले प्रचलन में आया हो, लेकिन आदिवासी समाज में यह बहुत पहले से प्रचलित है. लिव इन रिलेशन की यह प्रथा राजस्थान के सिरोही जिले में आदिवासी बाहुल्य माउंट आबू इलाके के आदिवासियों में सदियों से चलती आ रही है. इस प्रथा को 'दापा' प्रथा कहा जाता है. कुछ लोग इसे गंधर्व विवाह का नाम भी देते हैं. बताया जाता है कि आदिवासी इस परंपरा का बीते करीब 500 बरसों से निर्वहन कर रहे हैं

इस अद्भुत परंपरा को सिरोही जिले के भुला वालोरिया झामुंडी और आबू रोड इलाके के उपलाखेड़ा आदिवासी गांवों में देखा जा सकता है. इस प्रथा के तहत लड़की समाज के सामने ही मेले में किसी लड़के को पसंद कर उसका हाथ पकड़ती है. उसके बाद लड़का उसे अपने घर ले जाता है. लड़की बिना शादी के ही उसके साथ उसके घर में लिव इन रिलेशनशिप में रहती है.

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लड़की की ओर से लड़का पसंद किए जाने के बाद वह अपनी सखियों के माध्यम से उसके परिवार को इसकी सूचना भिजवाती है. उसके बाद लड़की के परिवार वाले ढोल नगाड़े बजाते हुए लड़के के घर जाते हैं. वहां बकरे की बलि दी जाती है. वे दो-तीन दिन तक लड़के घर में रहकर अपने संबंधों को मजबूत बनाते हैं.

दोनों परिवार साथ रहकर लड़की और लड़के की रजामंदी के नए रिश्ते को सामाजिक मान्यता प्रदान करते हैं. फिर लड़का और लड़की पति पत्नी की तरह साथ में रहते हैं. इस परंपरा में कई रीति रिवाज को भी जोड़ा गया है. दोनों में अगर बॉडिंग अच्छी हो जाती है तो वे शादी कर लेते हैं. लेकिन अगर लड़के को लड़की पसंद नहीं आती है उसके पास उसे छोड़ देने का विशेषाधिकार होता है.

उसके बाद वह लड़की किसी दूसरे लड़के का हाथ नहीं पकड़ सकती जबकि लड़का स्वतंत्र रहता है. लेकिन उसे आजीवन उस लड़की के भरण पोषण की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. वह उसे अपने ही घर के किसी कोने में जगह दे देता है. यह प्रथा लड़कों के पक्ष की मानी जाती है. क्योंकि इस प्रथा में लड़के पर निर्भर करता है कि वह हाथ पकड़ने वाली लड़की से शादी करेगा या नहीं.

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अगर वह शादी कर लेता है तो ठीक है अन्यथा वह उस लड़की को वह बिना शादी किए ही घर में एक झोपड़ी बनाकर दे देता है. उसके बाद वह लड़की बिना शादी के ही आजीवन वहां रहती है. लड़का ही उसके खाने पीने की व्यवस्था करता है. इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए 1 साल में तीन बार मेले का आयोजन किया जाता है.

साल में सबसे पहले फाल्गुन के महीने में इसका आयोजन किया जाता है. उसके बाद गर्मियों के मौसम में मई माह इस मेले का आयोजन होता है. साल का तीसरा और अंतिम मेला दिसंबर महीने में आयोजित किया जाता है. इस प्रथा के तहत सबकुछ ठीक रहने के बाद 33 करोड़ देवी देवताओं की स्थली मानी जाने वाले माउंट आबू की नक्की झील की परिक्रमा करके इस विवाह को संपन्न किया जाता है.