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Land acquisition के मामले में आम लोगों को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला

land compensation rules : देशभर में इस समय में कई नए शहरों का निर्माण किया जा रहा है और सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्देश्य के लिए ही कई गावों या शहरों की भूमि अधिग्रहण (Land acquisition) करती है। अब इसी बीच आम लोगों को बड़ी राहत के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिससे आम लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। आइए खबर में जानते हैं सुप्रीम कोर्ट(supreme court decision) के इस ऐतिहासिक फैसले के बारे में।

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Land acquisition के मामले में आम लोगों को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला

HR Breaking News (Land acquisition) सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण के लिए जो जमीन ली जाती है, उसका इस्तेमाल देशभर में विकास को गति देने के लिए किया जाता है।  इसके लिए ही जमीन का अधिग्रहण किया जाता है। कई बार भूमि अधिग्रहण(Land acquisition rules) से जुड़े मामलें इतने पेचीदे हो जाते हैं कि ये मामले कोर्ट तक पहुंच जाते हैं।

 

 

अब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में ऐतिहासिक फैसला सुनाकर आम लोगों को बड़ी राहत दी है।

क्या कहता है संवैधानिक अधिकार


हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया था, जिसके तहत यह फैसला सुनाया गया है। भू अधिग्रहण के एक मामले में(Land acquisition case) में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संपत्ति का अधिकार (property rights) संविधान के अनुच्छेद-300-A के मुताबिक संवैधानिक अधिकारों में शामिल है।

संविधान के अनुच्छेद-300-A के मुताबिक बिना कानूनी अधिकार लिए किसी संपत्ति के मालिक (property ownership) को उस संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता है। 

क्यों की गई थी जमीन अधिगृहीत


बता दें कि सुप्रीम कोर्ट(SC decision in Land acquisition)  ने यह फैसला बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भू-अधिग्रहण (Land acquisition ) से जुड़े मामले के तहत सुनाया है। इस बारे में कर्नाटक हाई कोर्ट ने 2022 में फैसला सुनाया था और इस फैसले को भू मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। यह फैसला भू मालिकों (property owner rights) के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

सरकार नहीं उठा सकती है ये कदम


अगर ऐसे में किसी को संपत्ति से बेदखल (property evicted rules)करना है तो इसके लिए बेदखल जैसा कदम सरकार मुआवजा देने से पहले नहीं उठा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में टिप्पणी देते हुए कहा है कि इस मामले में भी मुआवजा राशि बिना दिए ही संपत्ति से भू मालिकों को बेदखल कर दिया गया। 

जानिए क्या था पूरा मामला


दरअसल, कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB case decision) की ओर से एक प्रोजेक्ट के लिए  साल 2003 में अधिसूचना जारी की गई थी, लेकिन इसके बाद नवंबर 2005 में भू मालिकों की जमीन को अधिग्रहीत (land compensation rules) कर लिया गया थी। बता दें कि ये भू मालिक अपीलकर्ता ही थे और 22 साल बीत जाने पर भी मुआवजा न मिलना गलत है। मुआवजा दिए बिना ही संपत्ति से बेदखल (evicted from property) किया गया है, यह भी सरासर गलत है। ऐसे में भू मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट से नए रेट पर मुआवजा दिलाने की गुहार लगाई थी।

अधिकारियों ने बरती काम में ढील


मामले पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि भू मालिकों को मुआवजा देने में KIADB  (Karnataka Industrial Area Development Board) के अधिकारियों ने ठीक से काम नहीं किया है और बाद में जब अवमानना नोटिस जारी किया गया तो खास भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) ने मार्केट वैल्यू अनुसार मुआवजा निर्धारित करने के लिए 2011 में सरकार के प्रचलित निर्देशों को इसका आधार बनाया।ये सब होने के बाद ही मुआवजा राशि (SC decision in property compensation) निर्धारित की गई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा


भूमि अधिग्रहण से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) का कहना है कि साल 2003 में राज्य सरकार की तरफ से भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई और तब से न तो भू मालिकों का मुआवजा मिला और न ही इतने लंबे समय में किसी फैसले में यह आधार तय किया गया कि किस साल के मार्केट रेट पर मुआवजा राशि मिलनी चाहिए। तो ऐसे में उस समय के यानी साल 2003 के मार्केट रेट पर मुआवजा देना सही नहीं है। 

नए मार्केट रेट पर तय होनी चाहिए मुआवजे की राशि


सुप्रीम कोर्ट (supreme court)का कहना है कि भू मालिकों को वर्तमान के मार्केट रेट पर मुआवजा दिया जाना उचित है और  संविधान के अनुच्छेद-300-A के मुताबिक पुराने रेट पर किसी भूमि का मुआवजा (property compensation rules) देना इस धारा का उल्लंघन करना ही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने SLAO  को अप्रैल 2019 के मार्केट रेट के मुताबिक मुआवजा तय करके देने के आदेश जारी किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने दिए आदेश 
 

सुप्रीम कोर्ट (supreme court news) ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े इस मामले में फैसला सुनाया हैं कि पक्षकारों की सुनवाई की जाए, उसके बाद ही खास भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) नई मुआवजा राशि की घोषणा करें और इसे 2 माह के भीतर संबंधितों को प्रदान किया जाए । कोर्ट का कहना है कि पक्षकारों के पास यह मौका होगा कि अगर वे नई मुआवजा राशि से असंतुष्ट है तो उसे भी चुनौती दे सकते हैं।