Loan NPA: लोन कब बन जाता है NPA और लोन लेने पर इसका क्या होता है असर

HR Breaking News, डिजिटल डेस्क नई दिल्ली, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक अगर किसी बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती है, तो उस लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाता है. अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में यह सीमा 120 दिन की होती है. बैंक उसे फंसा हुआ कर्ज मान लेते हैं. एनपीए बढ़ना किसी बैंक की सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता. साथ ही एनपीए कर्ज लेने वाले के लिए भी मुश्किलें खड़ी करता है. जानिए किस तरह एनपीए लोन लेने वाले पर डालता है असर !
सिबिल रेटिंग होती है खराब
अगर कोई कर्जधारक लगातार तीन महीने तक बैंक की किस्त नहीं चुका पाता है और उस कर्जधारक के लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाता है, तो इससे कर्जधारकों की सिबिल रेटिंग खराब हो जाती है. कर्ज लेने के लिए सिबिल रेटिंग का अच्छा होना बहुत जरूरी है. अगर सिबिल रेटिंग खराब हो जाए तो कस्टमर्स को आगे किसी भी बैंक से लोन लेने में मुश्किलें होती हैं. अगर किसी तरह लोन मिल भी जाए, तो आपको उस लोन के लिए बहुत ज्यादा ब्याज दरें चुकानी पड़ सकती हैं.
तीन प्रकार के होते हैं एनपीए
जब भी हम एनपीए के बारे में पढ़ते या सुनते हैं, तो लोगों को लगता है कि बैंक की रकम डूब गयी है. लेकिन ऐसा नहीं है. खाते को एनपीए घोषित करने पर बैंक को तीन श्रेणियों में विभाजित करना होता है. सबस्टैंडर्ड असेट्स, डाउटफुल असेट्स और लॉस असेट्स. जब कोई लोन खाता एक साल तक सबस्टैंडर्ड असेट्स खाते की श्रेणी में रहता है तो उसे डाउटफुल असेट्स कहा जाता है. लोन वसूली की उम्मीद न होने पर उसे ‘लॉस असेट्स’ मान लिया जाता है.
आखिरी विकल्प होता है नीलामी
बैंक की तरफ से लोन लेने वाले को लोन को चुकाने के लिए काफी समय दिया जाता है. लेकिन अगर लोन लेने वाला व्यक्ति फिर भी कर्ज नहीं चुका पाता है, तो बैंक उसे रिमाइंडर और नोटिस भेजता है. इसके बाद भी अगर ऋण लेने वाला व्यक्ति लोन का भुगतान नहीं करता, तब बैंक उसकी प्रॉपर्टी को कब्जे में लेता है और इसके बाद नीलामी करता है. यानी लोन चुकाने के लिए बैंक कई मौके देता है, फिर भी न चुकाने पर प्रॉपर्टी की नीलामी करके लोन की रकम की भरपाई की जाती है.