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लोन EMI नहीं भरने के मामले में Supreme Court ने दिया बड़ा फैसला, आपने भी ले रखा है लोन तो जरूर जान लें

Loan EMI : लोन लेने के लिए आजकल ग्राहकों के पास बैंकों के अलावा नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को विकल्प भी मौजूद है। पैसों की जरूरत के समय जैसे-तैसे लोन तो मिल जाता है, लेकिन इसके डिफॉल्ट (loan default) होने पर या समय पर किस्त न भर पाने पर लोन लेनदार के सामने कई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। अब लोन की ईएमआई भरने में असमर्थ होने वालों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अगर आपने भी कहीं से लोन ले रखा है तो इस फैसले को जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।

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लोन EMI नहीं भरने के मामले में Supreme Court ने दिया बड़ा फैसला, आपने भी ले रखा है लोन तो जरूर जान लें

HR Breaking News - (Loan EMI Rules)। लोन लेने के बाद कई लोग विभिन्न कारणों से इसे चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। लोन डिफॉल्ट होने पर बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान कर्जदार पर कार्रवाई शुरू कर देते हैं। ऐसे में लोन लेनदार की समस्याएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में उनके द्वारा खरीदी गई कोई प्रोपर्टी या वाहन आदि भी जब्त होने तक की नौबत आ जाती है। लोन ईएमआई न भरे जाने के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट (SC Decision on loan EMI) ने अहम निर्णय सुनाया है, जो हर लोन लेने वाले के लिए जानना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर लोन लेनदारों के अलावा लोन देने वाले बैंकों व अन्य फाइनेंसिंग कंपनियों पर भी पड़ेगा। आइये जानते हैं कोर्ट के इस फैसले के बारे में।


जानिये इस कानूनी प्रावधान को-


कानूनी तौर पर एक प्रावधान किया गया है कि कार लोन लेने वाले को कार की किस्त (Loan EMi) समय पर ही भरनी होगी, नहीं तो कार का मालिक लोन फाइनेंसर होने के कारण वह आप पर तुरंत कार्रवाई कर सकता है। लोन की किस्तें (EMI) जब तक पूरी न चुका दी जाएं तब तक कार मालिक फाइनेंस करने वाला बैंक या कंपनी ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक फैसले में कहा है कि लोन डिफॉल्ट (loan default hone par kya kre) होने  या किस्तें ड्यू होने पर फाइनेंसर वाहन पर कब्जा कर सकता है और इसे अपराध भी नहीं माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में ऐसे पहुंचा मामला -


अम्बेडकर नगर के एक युवक ने करीब 12 साल पहले साल 2013 में फाइनेंस पर एक गाड़ी खरीदी थी। इस गाड़ी के लिए 1 लाख रुपये की डाउनपेमेंट भी कर दी गई थी और बाकी राशि का लोन करवाया था। इसके बाद युवक को हर महीने करीब 12,530 रुपये की किस्त भरनी थी। उक्त युवक ने कुछ समय तक तो कार की किस्त (Loan EMI rules) समय पर भरी लेकिन बाद में नहीं भरी। इसके बाद 5 महीने तक लोन देने वाली कंपनी ने युवक का इंतजार किया कि वह ईएमआई भर दे। इसके बाद भी लोन लेनदार नहीं जागा तो फाइनेंस (finance rules in loan) करने वाली कंपनी ने कार को उठा लिया। इसके बाद मामला निचली कोर्ट-कचहरी से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा।

कंज्यूमर कोर्ट ने दिया था यह फैसला -


इस मामले में हालांकि कंज्यूमर कोर्ट से लोन लेने वाले को कुछ राहत मिली थी। गाड़ी उठा लेने के बाद ग्राहक ने उपभोक्ता अदालत (Consumer Court) में केस दर्ज कराया और कंज्यूमर कोर्ट ने फाइनेंसर के विरुद्ध फैसला सुनाते हुए उसे पर 2 लाख से ज्यादा  का जुर्माना ठोक दिया। कंज्यूमर कोर्ट का फैसला था कि ग्राहक को बिना नोटिस दिए फाइनेंसर द्वारा गाड़ी उठाना गलत है। इसके अलावा फाइनेंसर कंपनी ने ग्राहक को किस्त भरने का पूरा अवसर देना चाहिए था। इसके बाद फाइनेंसर कंपनी अगली कोर्ट में मामले को ले गई।


सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनाया फैसला -


फाइनेंसर कंपनी ने सीधे ही सर्वोच्च अदालत (SC decision on loan) में यह मामला पहुंचा दिया और अपील कर दी। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गाड़ी खरीदने वाला डिफॉल्टर था, और शुरू की 7 किस्त चुकाने के बाद उसने 5 माह तक किस्त ही नहीं भरी। इस बात को खुद लोन लेनदार ने भी माना है।

इसके बाद फाइनेंसर कंपनी ने काफी इंतजार के बाद गाड़ी को अपने कब्जे में लिया। कंपनी की ओर से की गई यह कार्रवाई अपराध नहीं है। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (National Consumer Commission) की ओर से फाइनेंसर कंपनी पर लगाए जुर्माने को पूरी तरह से रद्द कर दिया लेकिन ग्राहक को नोटिस नहीं देने को लेकर 15000 रुपये का जुर्माना देने के आदेश सुनाए।

लोन रिकवरी के लिए नियम -


लोन डिफॉल्ट होने के बाद लोन रिकवरी के भी कई नियम हैं। इसमें लोन लेनदार को कई अधिकार भी हैं। लोन रिकवरी एजेंट लोन डिफॉल्टर (loan defaulter's rights) के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकते। इसके अलावा लोन रिकवरी एजेंट रात के समय में ग्राहक के पास नहीं जा सकता और न ही उसे कॉल कर सकता। इसके अलावा कई कानूनी प्रावधान भी हैं।

लोन डिफॉल्ट पर कानूनी प्रावधान -


लोन डिफॉल्ट के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट(supreme court) ने लोन लेने वालों को कुछ राहत दी है। कोर्ट के अनुसार  किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों व लोन देने वाली कंपनियों को लोन लेनदार को इसकी सूचना देनी होगी। उसे अपना यह पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा कि वह लोन भरने या ईएमआई से चूकने (loan default rules) में असमर्थ क्यों है और फिर से कब से भर सकता है।

इसके बाद समाधान न होने पर ही कोई कार्रवाई बैंकों या फाइनेंसिंग कंपनी की ओर से की जा सकती है। कोर्ट के अनुसार ग्राहक पर बिना सूचित किए ऐसी कार्रवाई करने से यानी लोन डिफॉल्टर घोषित करने से ग्राहक का सिबिल स्कोर (CIBIL Score) खराब होता है। बैंक की ओर से कर्जदार को अपना पक्ष रखने का मौका देना होगा, एकतरफा कार्रवाई कर किसी को फ्रॉड या डिफॉल्ट (loan default hone par kya hoga) घोषित नहीं किया जा सकता।

बैंक सीधे ही नहीं उठा सकते यह कदम-


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई लोन चुकाने या ईएमआई भरने में असमर्थ होता है तो पुलिस में शिकायत देने से पहले यानी प्राथमिकी दर्ज कराने से पहले डिफॉल्टर या फ्रॉड घोषित करने की कार्रवाई की जरूरत नहीं है। यह लोन लेनदार को ब्लैकलिस्ट करने जैसा है। इससे ग्राहक को भविष्य में कई वित्तीय परेशानी होती हैं, इसलिए यह सब नियम अनुसार किया जाना चाहिए। इसके बाद ही उचित कार्रवाई करते हुए सही कदम बैंकों को उठाना चाहिए।