home page

Success Story - मां मनरेगा में करती थी दिहाड़ी, खुद को संभालने पड़ते थे घर के पशु, इसके बावजूद हासिल की बढ़ी कुर्सी

कहते है मेहनत करने से इंसान असंभव को भी संभव कर दिखाता है। आज इसी लाइन को सच करते हुए हम आपको एक उदाहरण देने जा रहे है। जिसमें मां ने मनरेगा गांव में दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का गुजार किया तो वहीं बेटा घर के पशुओं का काम किया करता था। इतनी कठिनाइयों से भरे इस सफर के बावजूद भी बेटे ने हासिल की है बड़ी कुर्सी। आइए जानते है इनकी पूरी कहानी।  
 
 | 

HR Breaking News, Digital Desk- दूध बेचने वाले के बेटे ने CA की परीक्षा में सफलता हासिल की है। दूध बेचने से लेकर गाय-भैंसों की देखभाल करते हुए बाबूलाल गुर्जर ने अपनी मंजिल हासिल की है। कोटा के लाडपुरा पंचायत समिति के पांचकुई गांव का यह लाडला अब सबका चहेता बन गया है। मां प्रेमबाई मनरेगा मजदूर हैं और पिता कन्हैयालाल गुर्जर पशुपालक। बाबूलाल गांव का पहला ऐसा व्यक्ति है, जिसने CA की परीक्षा पास की है। पिछले 5 साल से तैयारी में जुटे थे। 

8 से 10 घंटे रोज पढ़ाई-


 CA परीक्षा के दूसरे ग्रुप में चौथे अटेम्प्ट में यह सफलता मिली है। 400 में से 227 अंक हासिल किए हैं। पहला ग्रुप 2019 में पास किया था। दूध बेचकर घर का खर्च चलता है। बाबूलाल पांच बहन-भाई हैं। साल 2017 में बाबूलाल की शादी हुई थी। उनके दो बच्चे हैं। पत्नी ने REET दिया है। बाबूलाल ने बताया कि उनका परिवार खेती-बाड़ी से जुड़ा है। घर में 10 गाय और इतने ही भैंस हैं। पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हैं। काम के साथ उन्होंने रोज 8 से 10 घंटे पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने पुणे, दिल्ली व जयपुर से ऑनलाइन कोचिंग की। कई बार तो दूध की सप्लाई खुद की और खेतीबाड़ी में भी हाथ बंटाया।

9 किलोमीटर दूर स्कूल का सफर पैदल-


बाबूलाल ने बताया कि उनकी पत्नी B.Ed डिग्री होल्डर है। एक भाई-बहन B.Ed कर रहे हैं। एक छोटा भाई 12वीं में पढ़ता है। बाबूलाल ने कहा कि उन्होंने 12वीं तकरानपुर सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। इस दौरान वो कभी लिफ्ट मांगकर, कभी पैदल ही स्कूल गए। घर से स्कूल की दूरी करीब 9 किलोमीटर है। 12वीं के बाद कोटा के रंगबाड़ी में एक टीचर के पास ट्यूशन ली। टीचर ने उन्हें CA बनने के लिए प्रेरित किया। वो साल 2014 से CA की तैयारी में जुट गए।

बच्चों को माता-पिता ने संभाला-


CA बनने के लिए संघर्ष जरूरी था। साथ ही बच्चों की देखभाल का ख्याल भी रखना था। उनकी 4 साल की बेटी, डेढ़ साल का बेटा है। उनका सारा वक्त पढ़ाई व काम में निकलता था। ऐसे में परिजनों का पूरा साथ मिला। माता-पिता ने ही बच्चों को संभाला। बाबूलाल ने बताया कि मुझे तो केवल ये ही पता था कि मेरे दो बच्चे हैं। उनका पालन-पोषण तो माता-पिता के हाथ मे था।


विदेश में नौकरी करने की इच्छा-


बाबूलाल ने बताया कि वो गुर्जर समाज से आते हैं। उनके समाज में ज्यादातर लोग पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं। बाबूलाल अभी अच्छी फर्म में काम करने के बाद विदेश में जाकर जॉब करना चाहते हैं।