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Success Story: धोबी के बेटे को इस क्रिकेटर ने दिया था सहारा, बना दिया कॉर्पोरेट जगत की जानीमानी हस्ती

आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे है जिसमें एक धोबी के बेटे  को क्रिकेटर का मिला सहारा तो वह कॉर्पोरेट जगत की जानीमानी हस्ती बन गया। आइए खबर में जानते है इनके सफर की पूरी कहानी। 
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धोबी के बेटे को इस क्रिकेटर ने दिया था सहारा, बना दिया कॉर्पोरेट जगत की जानीमानी हस्ती

HR Breaking News, Digital Desk- आपको हर दिन एक हस्ती की सक्सेस स्टोरी से रूबरू कराता है. आज की ये कहानी भी अपनी ज़िंदगी में जीत हासिल करने वाली एक हस्ती की है. इस कहानी में मिलिए कलकत्ता की फुटपाथ पर पले-बढ़े बिकाश चौधरी (Bikash Chowdhury) से. बिकाश ने साल 2000 में CAT एग्जाम क्लीयर किया और फिर IIM कलकत्ता से पढ़ाई की. पढ़िए उनकी कहानी.

कहते हैं हर कामयाब हस्ती के पीछे कोई न कोई ज़रूरी होता है. आज कॉर्पोरेट जगत की जानीमानी हस्ती कहलाने वाले बिकाश चौधरी के पीछे भी किसी के होने के साथ-साथ उनकी मेहनत और लगन भी रही. कलकत्ता की फुटपाथ पर पले-बढ़े बिकाश चौधरी आज JSW Steel कंपनी में बतौर VP काम कर रहे हैं.

बिकाश का जन्म कलकत्ता के भवानीपुर इलाके में एक धोबी के घर में हुआ. उनके घर के आर्थिक हालात उन्हें पढ़ाने की इजाजत नहीं देते थे. जो भी हाल थे उन्होंने उसी मुताबिक, लॉन्ड्री के काम में पिता का हाथ बंटाना शुरू किया. उन्हीं दिनों (आज से लगभग 4 दशक पहले) भारतीय क्रिकेटर अरुण लाल दिल्ली से कलकत्ता शिफ्ट हुए. इत्तेफाकन अरुण ने इस छोटे से विकास चौधरी को अपने घर की सफाई और कपड़े प्रेस करने के लिए काम पर रखा. जब वे अरुण के घर रोज़ाना कपड़े देने जाते तो अरुण लाल की पत्नी देबजानी ने उन्हें उस समय में अंग्रेजी पढ़ाने की पेशकश की.

देबजानी उन्हें ट्यूशन के साथ साथ हमेशा रेगुलर स्टडी के लिए प्रेरित करतीं. हाल ही में विकाश ने एक इंटरव्यू में शेयर किया कि वे रोज़ाना ट्यूशन संतरे के जूस के लिए बी जाते थे. क्योंकि जब वे पढ़ने जाते तो देबजानी उन्हें जूस दिया करती थीं. उस समय बिकाश महज 12 साल के थे, जब अरुण-देबजानी ने उनकी पढ़ाई में मदद करना शुरू की. इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले, वे अपने घर के पहले बच्चे बने. हाई स्कूल पास करने के बाद उन्होंने St. Xavier’s College से बैचलर डिग्री ली.


बिकाश ने साल 2000 में CAT एग्जाम क्लीयर किया और फिर IIM कलकत्ता से पढ़ाई की. पढ़िए उनकी कहानी. MBA पूरा करने के बाद कुछ ही साल में उन्हें Deutsche Bank से नौकरी का ऑफर मिला. वे वहां वाइस प्रेजिडेंट बने. इसके बाद उन्होंने Singaporean multinational DBS bank, HDFC bank और Crédit Agricole के साथ भी काम किया. हाल ही में उन्होंने JSW Steel कंपनी को बतौर VP जॉइन किया.

आज चौधरी अपनी सफलता का श्रेय अपने "अडॉप्टेड" माता-पिता अरुण और देबजानी लाल के देते हैं. बिकाश ने उन्हें एक मर्सिडीज गिफ्ट की और लाल परिवार को बंगला खरीदने के लिए आर्थिक मदद भी की. परम-श्रद्धांजलि (ultimate tribute) के रूप में, उन्होंने अपनी बेटी का नाम अरुणिमा लाल रखा. इसके अलावा, चौधरी गरीब और जरूरतमंद लोगों खासकर दृष्टिहीन की लगातार मदद करते हैं.