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Success Story: कचरे को रिसाइकिल कर बैग बनाने का काम किया शुरू, आज है एक करोड़ का टर्नओवर

Business Success Story/Lifafa founder Kanika Ahuja: आज हम आपको ऐसी एक महिला उद्यमी(entrepreneur) की स्कसेस स्टोरी बताना चाह रहे हैं। जिन्होंने प्लास्टिक रिसाइकिल कर बड़ा नाम कमाया है। आज उनकी कंपनी का एक करोड़ टर्नओवर है।  जानें इनकी सफलता की कहानी..
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Success Story: कचरे को रिसाइकिल कर बैग बनाने का काम किया शुरू, आज है एक करोड़ का टर्नओवर 
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HR Breaking News,(डिजिटल डेस्क):  कहते हैं सफलता किसी की मोहताज नहीं होती। कई लोग ऐसे होते हैं जो अवसर देखते हैं जो अवसर बनाते हैं। कई लोग सब कुद होते हुए भी अपनी किस्मत को दोष देते रहते हैं, वहीं दूसरी ओर कई ऐसे लोग होते हैं जो अपनी आसपास की चीजों में ही अवसर ढूंढ लेते हैं। जिन वस्तुओं को हम बेकार समझकर फैंक देते हैं, वहीं कई लोग उनसे करोड़ों रुपये कमा रहे है। आज हम आपको ऐसी एक महिला उद्यमी(entrepreneur) की स्कसेस स्टोरी बताना चाह रहे हैं। जिन्होंने प्लास्टिक रिसाइकिल(plastic recycling) कर बड़ा नाम कमाया है। आज उनकी कंपनी का एक करोड़ टर्नओवर है।  हम  बात कर रहे हैं  लिफ़ाफ़ा की संस्थापक कनिका आहूजा(Lifafa founder Kanika Ahuja) की। 

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 लिफ़ाफ़ा की संस्थापक कनिका आहूजा कम उम्र में एक लैंडफिल पर जाने की अपनी यात्रा को याद करती हैं. वे उस पर चढ़ना चाहती थीं, जिसे उन्होंने एक छोटी सी पहाड़ी मान लिया था. उन्होंने उस क्षेत्र के और भी बहुत से बच्चों को वहाँ खेलते देखा. हालाँकि उन्हें ऐसा करने से मना किया गया था. उनसे कहा गया था कि अगर वा वहां खेलती हैं तो उन्हें चोट लग जाएगी या वे बीमार हो जाएंगी. लैंडफिल में बढ़ते कचरे की कल्पना को याद करते हुए कनिका ये भी याद करती हैं कि वे एक ऐसे घर में पली-बढ़ीं, जो इस बात पर बेहद सचेत रहता था कि उन्होंने कितना और क्या खाया. मगर यहीं से उनकी कामयाबी की राह निकली. आज वे करोड़ों रु कमा रही हैं. 


 पैरेंट्स ने बनाई एनजीओ 1998 में, कनिका के माता-पिता, अनीता और शलभ आहूजा ने एनर्जी एफिशिएंसी पर केंद्रित एक एनजीओ, कंजर्व इंडिया की स्थापना की. उन्होंने अंततः प्लास्टिक के खतरे से निपटने के तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया. ये एक समस्या है जिससे दिल्ली तब और अब भी जूझ रही है. उनके माता-पिता इस एनजीओ को चलाने में व्यस्त थे, मगर वे कनिका के इस काम में शामिल होने के इच्छुक नहीं थे. 

कहां से की पढ़ाई


 उनके पिता खास कर नहीं चाहते थे कि कनिका इस कार्य में शामिल हों. इसलिए, उन्होंने कर्नाटक के मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर एसआरसीसी, दिल्ली से एमबीए किया. 2015 तक वे एक मार्केट रिसर्च फर्म में शामिल हो गयीं. उस फर्म में कम के दौरान वे स्विच करना चाहती थीं और डेवलपमेंट सेक्टर का हिस्सा बनना चाहती थीं. इस तरह 2016 में वह अपने माता-पिता द्वारा स्थापित एनजीओ में शामिल हो गई. 

2017 में बनाया अपना ब्रांड 


द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एक समय ऐसा भी आया जब कंजर्व इंडिया जो काम कर रहा था, वह सिर्फ एक एक्सपोर्ट हाउस का था और तभी उन्होंने ब्रेक लिया और उस काम का पुनर्मूल्यांकन करने का फैसला किया जो वे कर रहे थे. इस ब्रेक के कारण 2017 में लिफ़ाफ़ा की शुरुआत हुई, जो एक ऐसा ब्रांड है जो भारत, अमेरिका और यूरोप में अपसाइकल किए गए प्लास्टिक उत्पादों का डिज़ाइन और मार्केटिंग करता है. 


1 करोड़ का टर्नओवर 


आज, लिफाफा में करीब 12 टन बेकार प्लास्टिक को सालाना वॉलेट, बैग, लैपटॉप स्लीव्स, टेबल मैट आदि में बदला जा रहा है, जो प्लास्टिक के लैंडफिल में खत्म होने से रोकता है. पिछले वित्तीय वर्ष में लिफाफा की इनकम 1 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गयी. अब ये ब्रांड इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है. कंजर्व इंडिया ने वर्षों में खरीदारों का एक नेटवर्क बनाया था. इसलिए, उन्होंने वेस्ट से तैयार उत्पादों को इन लोगों के समूहों को प्रशिक्षण देकर शुरुआत की. फिर लिफ़ाफ़ा ब्रांड नाम के तहत इसकी मार्केटिंग की.

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ये रही सबसे बड़ी चुनौती


 कनिका के मुताबिक मानसिकता में बदलाव लाना सबसे बड़ी चुनौती रही है. लोग अभी भी पूछते हैं कि उन्हें 'कचरे' से बनी किसी चीज़ को खरीदने पर पैसा क्यों खर्च करना चाहिए. अब वे एक लंबा सफर तय कर चुकी हैं, मगर वे कहती हैं कि यात्रा खत्म नहीं हुई है.