ग्वार की कम पैदावार होने का मुख्य कारण उखेड़ा बीमारी: डॉ. बीडी यादव

एचआर ब्रेकिंग न्यूज। ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बीडी यादव ने कहा कि हरियाणा के बारानी इलाकों में ग्वार एक महत्वपूर्ण फसल है। प्रदेश के रेतीले इलाकों में जडग़लन रोग ग्वार फसल में एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। उखेड़ा रोक के प्रकोप से 20 से 45 प्रतिशत खड़ी फसल मुरझाकर सूख जाती है। लेकिन इस रोक को किसान मात्र 15 रूपए के बीज उपचार से रोक सकते हैं। डॉ यादव शनिवार को गांव चिड़ौद में किसानों को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने किसानों को बीजोपचार करने के लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया।
एचएयू से सेवानिवृत कृषि विज्ञानी डॉ आरएस ढुकिया के तत्वावधान में आयोजित इस प्रशिक्षण शिविर में किसानों को संबोधित करते हुए डॉ यादव ने कहा कि ग्वार में कम पैदावार होने का उखेड़ा बीमारी एक मुख्य कारण है। किसानों को इस रोक के प्रति जानकारी न होने से इसका ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। गोष्ठी के दौरान किसानों से रूबरू होने पर पता चला कि यह उखेड़ा बीमारी कम से कम 30 प्रतिशत इस क्षेत्र में आती है।
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जडग़लन रोग के लक्षण
डॉ यादव ने बताया कि उखेड़ा यानि जडग़लन बीमारी के शुरूआती लक्षण में पत्ते पीले पडऩे शुरू हो जाते हैं और धीरे धीर मुरझाकर सूख जाते हैं। ऐसे पौधों को जब उखाड़ कर देखते हैं तो उनकी जड़े काली मिलती है।
कैसे करें इस बीमारी का इलाज
डॉ यादव ने बताया कि इस रोक की फफूंद जमीन के अंदर पनपती है जो उगते हुए पौधों की जड़ों पर आक्रमण करती है। इस प्रकोप से पौधे की जड़ें काली पड़ जाती है तथा जमीन से उनकी खुराक रूक जाती है। इसलिए पौधों पर स्पे्र करने का कोई फायदा नहीं होती। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 3 ग्राम कार्बन्डाजिम 50 प्रतिशत बेविस्टीन प्रतिकिलो बीज की दर से सूखा उपचारित करने के बाद ही बिजाई करनी चाहिए। ऐसा करने से 80 से 85 प्रतिशत इस रोक पर काबू पाया जा सकता है। जडग़लन रोक का यह इलाज केवल 15 रूपए के बीजोपचार से संभव है। ग्वार विशेषज्ञ ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीजोपचार ही एकमात्र हल बताया।
ग्वार की कौन सी किस्मे अपनाएं
डॉ यादव ने किसानों को उन्नतशील किस्में एचजी 365, एचजी 563 तथा एचजी 2-20 बोने की सलाह दी तथा बिजाई के लिए जून का दूसरा पखवाड़ा सबसे उचि बताया। उन्होंने कहा कि जो किसान अभी तक बिजाई नहीं कर पाए हैं आगे मानसून की बारिश होने पर बिजाई पांच जुलाई तक पूरी कर लें। इसके बाद पैदावार में कमी होनी शुरू हो जाती है। शिविर में मुख्यातित्थि डॉ ढूकिया ने इस बात पर जोर दिया कि बिजाई से पूर्व अपने खेत की मिट्टी व पानी की जांच जरूर करवाएं। इससे पता चल जाता है कि जमीन में किस पोषक तत्व की कमी है। उन्होंने किसानों को अपने खेत में गोबर की तैयार खाद डालने की सलाह दी। सेवानिवृत कृषि विज्ञान डॉ जगदेव सिंह ने दलहन फसलों की कास्त व पैदावार बढ़ाने के बारे में किसानों को जागरूक किया। इस शिविर में 45 किसानों ने भाग लिया, जिन्हें बीज उपचार की एक एकत्र की दवा व एक जोड़ी दस्ताने निशुल्क भेंट किए गए। इसके साथ ही किसानों को सैनेटाइजर व मास्क वितरित किए गए। इस मौके पर प्रगतिशील किसान रमेश श्योराण, अजीत सिंह, कृष्ण कुमार, रामस्वरूप, सुभाष, महीपाल, वजीर सिंह व करतार सिंह सहित अन्य किसान मौजूद थे।