Chanakya Niti - जीवन में इन 4 लोगों के पाप की सजा भुगतनी पड़ती है इनके अपनों को, हमेशा रखें ध्यान

चाणक्य के मुताबिक जीवन में इन 4 लोगों के पाप की सजा भुगतनी पड़ती है इनके अपनों को। आइए निचे खबर में जानते है कि आखिर वे 4 लोग कौन से है। 

 

HR Breaking News, Digital Desk- आचार्य चाणक्य राजनीति और कूटनीति बहुत कुशल थे, वे अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ थे. इसी कारण उन्हें कौटिल्य कहा जाता था. चाणक्य के द्वारा लिखे गए महत्वपूर्ण शास्त्रों में से नीतिशास्त्र लोगों के बीच आज भी बहुत लोकप्रिय है. इसके पीछे वजह है कि नीतिशास्त्र की बातें प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को बहुत करीब से स्पर्श करती हैं.

चाणक्य नीति में ऐसी स्थितियों के बारे में बताया गया है जब मनुष्य को दूसरों के पापों या गलती का फल भोगना पड़ता है. चाणक्य के मुताबिक धरती पर चार प्रकार के मनुष्य हैं जो जीवन में दूसरों के कामों की वजह से परेशानी में फंसते हैं. चाणक्य नीति के छठे अध्याय के 9वें श्लोक में आचार्य ने बताया है कि किस प्रकार के मनुष्य को किनके पापों का फल भोगना पड़ता है, आइए जानते हैं इसके बारे में.


किन लोगों को मिलती है दूसरों के पाप की सजा-


पंडित विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद चाणक्य नीति के छठे भाग के 9वें श्लोक में चाणक्य कहते हैं: 

राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः ।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।।

राजा के द्वारा किए गए पाप-
चाणक्य कहना चाहते हैं कि, देश में यानी वहां रहने वाले लोगों द्वारा किए गए पापों को राजा, राजा के द्वारा किए गए पाप या गलत कार्यों को पुरोहित या राजा को सलाह देने वाला मंत्री, पत्नी द्वारा किए गए पापों को पति और शिष्यों द्वारा किए गए पापों को गुरु ही भोगता है. इसलिए बेहद जरूरी है कि हर इंसान अपने स्तर पर गलत काम से दूर रहे.

कर्मों का बहुत ध्यान रखना चाहिए-


अपने इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य यह बताना चाहते हैं कि हमें अपने कर्मों का बहुत ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कई बार हमारे द्वारा किए गए किसी गलत कार्य या पाप की सजा आपसे जुड़े दूसरे व्यक्ति को मिल सकती है. श्लोक के पहले भाग में चाणक्य कहते हैं कि अगर किसी राज्य या देश की जनता कोई गलत काम करती है तो उसके परिणाम या कर्मो का फल वहां के राजा या शासक को भी भुगतना पड़ता है. इसलिए राजा की जिम्मेदारी है कि उसकी जनता कोई भी गलत कार्य न करे.

शिष्य के कर्म गुरू को-


जब कोई शिष्य अच्छे कार्य करता है तो उसका श्रेय गुरू को जाता है, इसी तरह से जब कोई शिष्य गलत कार्य करता है तो उसका फल गुरू को भोगना पड़ता है. गुरू का कार्य होता है कि वह अपने शिष्य को सही राह दिखाए, उसे सही और गलत के बीच सही को चुनने के लिए प्रेरित करे. यदि शिष्य गलत राह पर चलता है तो इसके दोष गुरू को ही दिया जाता है.

गलत कर्मों का फल जीवनसाथी को-


पति और पत्नी परस्पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं, इसलिए जब पत्नी कोई गलत कार्य करती है तो उसका फल पति को भोगना पड़ता है और जब पति कोई गलत कार्य करता है तो उसका फल पत्नी को भोगना पड़ता है.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. HR Breaking News.com इसकी पृष्टी नहीं करता है.)