Delhi High Court का मकान मालिकों के हक में अहम फैसला, किराएदारों को तगड़ा झटका
Delhi Court : अक्सर मकान मालिकों और किराएदारों के बीच विवाद चलते रहते है। कोर्ट में भी इन विवादों से जुड़े लाखों मामलें पेंडिंग पड़े है। इन दिनों भी दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से एक मामले पर फैसला सुनाते हुए मकान मालिकों के हक में भी एक बड़ी बात कही है जिसे किराएदारों को बड़ा झटका लगा है। आइए खबर द्वारा सुनाए गए इस अहम फैसले के बारे में विस्तार से।
HR Breaking News - (High Court News) कोर्ट की तरफ से मकान मालिक को तथा किराएदारों से जुड़े कई मामले सामने आते रहते हैं। इन दिनों दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से एक बड़ा फैसला सुनाया है जो कि मकान मालिको के हक में आया है। दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सुनाए गए इस फैसले से किराएदारों को बड़ा झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट का कहना है किराएदारों को यह तय करने का कोई अधिकार नहीं है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का सबसे सही इस्तेमाल किस तरह कर सकता है। किराएदार प्रॉपर्टी का इस्तेमाल को लेकर मकान मालिक को सलाह नहीं दे सकता है।
किराएदार को भी दखल करने के लिए हाईकोर्ट में दायर की गई एक याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया गया। कोर्ट ने कहा कि किरायेदार मकान मालिक को संपत्ति के इस्तेमाल की शर्तें (Terms of use of the property) तय करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। मकान मालिक अपनी आवश्यकताओं का सबसे अच्छा जज होता है। यह अदालत का काम नहीं है कि वह तय करे कि मकान मालिक को किस तरीके से और कैसे रहना चाहिए। दिल्ली हाई कोर्ट ने किरायेदार को 6 महीने का समय दिया है कि वह परिसर खाली करे और शांतिपूर्ण कब्जा सौंप दे।
यह मामला उस याचिका से संबंधित (tenant rules) था जिसे एक परेशान दंपति ने दायर किया था, जो अपने मकान के एक हिस्से में रह रहे किरायेदार को बेदखल करना चाहते थे। किरायेदार 1989 में उनके घर में रहना शुरू किया था और 2003 तक किरायेदारी जारी रही। इसके बाद मकान मालिक ने उससे घर खाली करने को कहा। लेकिन, किरायेदार ने घर नहीं छोडा।
मकान मालिक का कहना था कि बीमारी की वजह से उसे नर्सिंग स्टाफ और अपनी तलाकशुदा बेटी को अपने घर में रखने के लिए जगह चाहिए। वहीं, किरायेदार ने तर्क दिया कि मकान में पर्याप्त जगह है, जिससे मकान मालिक अपनी तलाकशुदा बेटी या स्टाफ को समायोजित कर सकता है।
निचली अदालत ने किरायेदार के हक में दिया था फैसला
मकान मालिक ने किराया नियंत्रण अदालत (rent control court) के फैसले को चुनौती दी। निचली कोर्ट (lower court) ने मकान मालिक की दलीलों को न मानते हुए किरायेदार के हक में फैसला दिया था। अदालत ने कहा था कि उनकी चिकित्सा स्थिति के पर्याप्त सबूत पेश नहीं किए गए।
वहीं हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति (High Court Justice) तारा वितस्ता गंजू ने ट्रायल कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और कहा कि “उपलब्ध रिकॉर्ड यह भी दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों के समर्थन में पर्याप्त दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिनमें चिकित्सा दस्तावेज, याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी की स्थिति की तस्वीरें, याचिकाकर्ता की बेटी का तलाक डिक्री और उसकी अस्थायी रोजगार प्रमाणपत्र शामिल हैं।”
मकान मालिक (Landlord Rules) की ओर से पेश वकील संजय कटयाल और देविका मोहन ने बताया का कहना है कि याचिकाकर्ता 80 वर्ष के हैं और 1966 से 1972 तक भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। वह 1971 के युद्ध के योद्धा हैं।
वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता पार्किंसन, पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी कई बीमारियों से पीड़ित हैं, जिससे वह बिस्तर पर हैं और दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। वकीलों ने बताया कि पत्नी भी 76 वर्ष की हैं और गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं।