Husband Wife Dispute : क्या पति को घर से निकाल सकती है पत्नी, कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

भारत में पति-पत्नी के रिश्ते को सबसे पवित्र माना जाता है. एक बार जब दोनों एक-दूसरे का हाथ थामते हैं तो 7 जन्मों तक साथ रहने का वादा करते हैं। आप जानते ही है की रिश्ता कितना ही गहरा हो कभी न कभी खटास आ ही जाती है, ऐसे में क्या कभी आपने सोचा है की क्या पति को घर से निकाल सकती है पत्नी, हाल ही में कोर्ट ने पति, पत्नी और प्रॉपर्टी को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है, आइए खबर में जानते है इसके बारे में पूरी जानकारी।
 

HR Breaking News, New Delhi : वैवाहिक रिश्तों में कड़वाहट (Bitterness in marital relationships) कई बार तमाम तरह की कानूनी लड़ाइयों में तब्दील हो जाती हैं। इसमें प्रॉपर्टी से लेकर बच्चों की कस्टडी और मैंटिनेंस वगैरह कई पहलू शामिल हो सकते हैं। घरेलू हिंसा भी रिश्तों में कड़वाहट और अलगाव की बड़ी वजहों में से एक है। लेकिन क्या कोई पत्नी जॉइंट तौर पर खरीदे गए घर (पति के साथ मिलकर खरीदा गया घर) से पति को निकाल सकती है या इसके उलट कहें कि क्या कोई पति अपनी पत्नी को घर से निकाल सकता है? इस पर कानून क्या कहता है और क्या हैं इसे लेकर कोर्ट के फैसले? मुंबई के एक मैजिस्ट्रेट कोर्ट में ऐसा ही एक मामला आया जिसमें पत्नी ने पति को घर से निकालने की मांग (Demand to expel husband from home) की थी जिसे उन दोनों ने मिलकर खरीदा था। 'हक की बात' (Haq Ki Baat) सीरीज के इस अंक में आइए जानते हैं कि पति, पत्नी और प्रॉपर्टी पर क्या कहता है कानून।

मुंबई में एक मैजिस्ट्रैट कोर्ट ने इसी हफ्ते घरेलू हिंसा के एक मामले (a case of domestic violence) में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पति को घर पर कानूनी अधिकार है और उसे निकाला नहीं जा सकता। पत्नी और पति ने मिलकर भायखला में एक घर खरीदा था। पत्नी ने कोर्ट से मांग की कि उसके पति को इस घर से बाहर किया जाए। कोर्ट ने कहा कि पति के पास उस घर पर कानूनी अधिकार (Legal Rights) है और उसे बेदखल नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा, 'इसके अलावा उसका ये नैतिक फर्ज है कि वह अपनी पत्नी औ बेटियों के साथ घर में रहे ताकि उनकी देखभाल कर सके।' महिला और उसकी बेटियां अलग रहती हैं। हालांकि, कोर्ट ने शख्स को आदेश दिया कि वह पत्नी को मैंटिनेंस के तौर पर 17 हजार रुपये हर महीने दे। मैंटिनेंस का भुगतान (maintenance payment) अगस्त 2021 से होगा जब महिला ने पहली बार कोर्ट का रुख किया था।महिला ने अपने पति, ससुर समेत ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा की याचिका डाली थी। उसने कोर्ट को बताया कि उसकी 2007 में शख्स से शादी हुई। 2008 और 2014 में उसकी दो बेटियां हुईं। महिला ने आगे कहा कि शख्स की सरकारी नौकरी है और उसने उसके साथ मिलकर लोन पर एक फ्लैट खरीदा था। महिला का आरोप है कि शादी के बाद ही ससुराल वाले उसे ताना मारने लगे और प्रताड़ित करने लगे जब उसने नौकरी के साथ-साथ घर भी संभाला, ये सोचकर कि आगे चलकर चीजें ठीक हो जाएंगी।

महिला ने कहा कि उसे हर समस्या के लिए दोषी ठहराया जाता था। 2008 में उसकी ननद के पति की मौत हुई तब भी उसे दोष दिया गया। इसके बाद महिला ने अपने पति का घर छोड़ दिया। बाद में पति उसे मनाकर घर लाया लेकिन उसने शर्त रखी कि वह अलग घर में रहेगी। भायखला में जो फ्लैट खरीदा था उसमें पति-पत्नी रहने लगे लेकिन जल्द ही महिला के ससुराल वाले भी वहां रहने लगे। महिला का आरोप है कि इसके बाद नए फ्लैट में भी उसे प्रताड़ित करने का सिलसिला जारी रहा। दूसरी संतान भी बेटी पैदा करने के लिए उसे ताने मारे जाते थे। महिला ने कोर्ट को बताया कि उसके पति की सरकारी नौकरी है और वह हर महीने 1 लाख 30 हजार रुपये कमाता है। उसने अपने लिए हर महीने 50 हजार रुपये के गुजारे भत्ते की मांग की।

इसके अलावा उसने फ्लैट पर सिर्फ और सिर्फ अपना अधिकार भी मांगा। दूसरी तरफ, पति ने सभी आरोपों को खारिज किया। पति का कहना है कि पत्नी 2021 में अपनी मर्जी से घर छोड़ी थी। शख्स ने कोर्ट में दावा किया कि घर खरीदने के लिए उसने पनवेल के अपने फ्लैट तक को बेच दिया। उससे मिले पैसों से उसने नया फ्लैट और एक कार खरीदी जिसमें महिला चलती है। आखिरकार, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शख्स अपनी पत्नी को हर महीने 17 हजार रुपये मैंटिनेंस दे। ये फैसला अगस्त 2021 से लागू होगा जिस दिन महिला ने पहली बार अदालत का रुख किया था। हालांकि, कोर्ट ने फ्लैट से पति को बेदखल करने की महिला मांग को खारिज कर दिया।

हिंदू अडॉप्शंस ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 (हिंदू दत्तक और भरण-पोषण कानून) के तहत महिला का अपने पति की पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता। पैतृक संपत्ति में सिर्फ हिंदू संयुक्त परिवार के कॉपरसनेर यानी सहदायिक का ही अधिकार होता है। चूंकि, पत्नी अपने पति की जॉइंट फैमिली में सहदायिक नहीं है लिहाजा पैतृक संपत्ति में उसका अधिकार नहीं होता। हां, पैतृक संपत्ति में उसके पति को जो हिस्सा मिलता है उस पर महिला का अधिकार है। अगर पति की बिना वसीयत किए मौत हो जाए तो उसकी ऐसी संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा।

अगर वसीयत लिखा गया हो तब तो संपत्ति का बंटवारा उसी के हिसाब से होगा।ससुराल के घर में जहां तक महिला के रहने के अधिकार की बात है तो उसे पूरा अधिकार है। हिंदू अडॉप्शंस ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 के तहत हिंदू पत्नी को अपने ससुराल के घर में रहने का अधिकार है भले ही उसके पास उसका स्वामित्व हो या न हो। इससे फर्क नहीं पड़ता कि ससुराल का घर पैतृक संपत्ति है, जॉइंट फैमिली वाला है, स्वअर्जित है या फिर रेंटेड हाउस यानी किराये का घर है। महिला को अपने ससुराल वाले घर में रहने का ये अधिकार तबतक है जब तक उसके पति के साथ उसके वैवाहिक संबंध बरकरार रहता है। अगर महिला पति से अलग हो जाती है तब वह मैंटिनेंस का दावा कर सकती है।

अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून के तहत अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अगर कोई महिला घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत शिकायत दर्ज कराती है तो उसे ससुराल के साझा के घर में रहने का अधिकार है भले ही वह किराये का घर हो या ससुराल वालों के स्वामित्व वाला घर हो और उसके पति का उसमें कोई स्वामित्व नहीं हो। इस महत्वपूर्ण फैसले ने घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाओं को बड़ी राहत दी है। अब ससुराल वाले इस आधार पर ऐसी महिलाओं को घर छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकतें कि उस घर में पति का कोई स्वामित्व नहीं है। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में 'साझे के घर' का दायरा और स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के पास साझे वाले घर में रहने का अधिकार है।

महिला चाहे जिस भी धर्म से ताल्लुक (belonging to religion) रखती हो, वह चाहे मां हो, बेटी हो, बहन हो, पत्नी हो, सास हो, बहू हो या फिर घरेलू रिश्ते के तहत आने वाली किसी भी श्रेणी से संबंध रखती हो, उसे साझे वाले घर में रहने का हक है। उसे उस घर से निकाला नहीं जा सकता है। जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अगर कोई महिला शादी के बाद पढ़ाई, रोजगार, नौकरी या किसी अन्य वाजिब वजह से पति के साथ किसी दूसरी जगह पर रहने का फैसला करती है तब भी साझे वाले घर में उसके रहने का हक बना रहेगा।

घरेलू हिंसा (domestic violence) कानून की धारा 17 (1) उसे ये अधिकार देती है।हालांकि, पत्नी का साझे के घर में रहने का अधिकार स्थायी नहीं है। अदालतों ने समय-समय पर कुछ अपवाद भी तय किए हैं। मार्च 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि अगर सास-ससुर की संपत्ति है तो उसमें बहू को रहने का अधिकार पर्मानेंट नहीं है। सास-ससुर उसे अपने घर से निकाल सकते हैं। इस मामले में ससुर 74 वर्ष की और सास 69 वर्ष की थी। कोर्ट ने कहा कि दोनों अपने जीवन की सांझ में हैं और उन्हें ऐसे वक्त में सुकून से रहने का अधिकार है।

उसके बेटे और बहू के वैवाहित विवाद की वजह से उनका चैन नहीं छिनना चाहिए। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी जनवरी 2022 में घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में कहा कि अगर बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर को प्रताड़ित (harassing mother-in-law and father-in-law) करती है तो वे अपने स्वामित्व वाले घर से उसे बाहर कर सकते हैं। ससुराल के घर से लेकर संपत्ति तक में बहुओं के पास क्या-क्या अधिकार हैं, इस पर हम 'हक की बात' सीरीज में पहले ही बता चुके हैं जिसे आप विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं।