Tenant landlord dispute : इस स्थिति में मकान मालिक नहीं बढ़ा सकता किराया, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Tenant rule : भारत में प्रोपर्टी को लेकर हर रोज विवाद (Property Dispute) होते रहते है। सबसे ज्यादा विवाद किराये पर दी हुई प्रोपर्टी से जुड़े हुए होते है। किरायेदार और मकानमालिक (landlord Dispute) में किराये की ज्यादा बढ़ोतरी और किरायेदार का घर पर अधिकार जमाने से संबंधित मामले में विवाद होने की स्थिति ज्यादा रहती है। कोर्ट ने किराये की प्रोपर्टी (Rent Property) से संबंधित विवादों से निपटने के लिए नियम और कानून तय किए है। हाल में कोर्ट ने किराये की संपत्ति से जुड़ा नया कानून जारी किया है। 
 

HR Breaking News (Tenant landlord Rule Update) : प्रोपर्टी से जुड़े विवादों (Rent Dispute in India) में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। देश के सभी प्रमुख शहरों में सबसे ज्यादा प्रोपर्टी के विवाद सामने आ रहे है। किरायेदार और मकान मालिकों से जुड़े विवादों में सबसे ज्यादा वृद्धि हो रही है। 
भारत में किराये पर घर एंव प्रोपर्टी देकर अधिक मुनाफा कमाने (Rent Culture) का दौर चल रहा है। सब व्यक्ति अपने खाली प्लाट,फ्लेट और घर को किराये पर देकर अत्यधिक मुनाफा अर्जित (Tenant Rule) करना चाहते है। वहीं, किराये से संबंधित कानूनों की जानकारी न होने के कारण मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। 

 


रेंट एग्रीमेंट है सरकार का कानून


सरकार ने किराये की प्रोपर्टी से संबधित विवादों से निपटने के लिए रेंट एग्रीमेंट (Rent Agreement) का कानून बनाया है। रेंट एग्रीमेंट किरायेदार और मकान मालिक के बीच एक लिखित सहमति होती है। जिसमें संबंधित मकान, फ्लैट, कमरा या कोई व्‍यावसायिक परिसर (Commercial Place) आदि को तय अवधि के लिए किराएदार को दिया जाता है।


इस एग्रीमेंट में किराया, मकान की हालत, पता और रेंट अग्रिमेंट (Rent agreement rule) खत्म करने संबंधित नियम और शर्तों का विवरण होता है। पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17(1) के तहत किरायेदारी की अवधि अगर 11 महीने से अधिक है तो उसका पंजीकृत होना आवश्‍यक है।

 

 


कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला


प्रोपर्टी का किराया तय समय से पहले बढ़ाने के संबंध में कर्नाटक हाईकोर्ट (karnataka Highcourt on rent agreement) ने विशेष फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि बिना रेंट एग्रीमेंट के कोई प्रोपर्टी को किराये पर देता है तो मकानमालिक इस स्थिति में 11 महीने से अधिक समय के बाद किराया बढ़ाने का हकदार नहीं है। 11 महीने तक के किराएनामा (Rent Agreement New rule) को पंजीकृत कराने की आवश्‍यकता नहीं है। निचली अदालत (Lower Court) के आदेश को पलटते हुए हाईकोर्ट ने संपत्ति मालिक द्वारा किराया बढ़ोतरी और एरियर की मांग को खारिज कर दिया।

पीएनबी बैंक से जुड़ा है मामला


कर्नाटक में दक्षिण भारत के पहले प्राइवेट बैंक नेदुंगडी बैंक की ब्रांच ने एक प्रोपर्टी किराये पर ली थी। इसका बाद में पीएनबी (Punajab National bank) में विलय कर दिया गया था। बैंक ने प्रोपर्टी श्रीनिवास एंटरप्राइजेज ने 13,574 रुपये मासिक  किराये पर ली थी। किराएदार ने 81,444 जमानत राशि भी जमा कराई थी।


1998 में, 23,414 रुपये के मासिक किराए (monthly rent) के साथ किरायेदारी को अगले 5 वर्षों के लिए रिन्‍यू कर दिया गया। रेंट एग्रीमेंट में यह भी कहा गया है कि हर 3 साल में किराए में 20% की बढ़ोतरी (Rent agreement Hike) के साथ किरायेदारी को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। साल 2006 में श्रीनिवास एंटरप्राइजेज ने लीज समझौते के अनुसार किराया वसूलने के लिए एक दीवानी मुकदमा दायर किया। 


पीएनबी ने रेंट एरिअर के रुप में दिए 5 लाख 80 हजार रुपये


पीएनबी (PNB) ने तर्क दिया कि श्रीनिवास एंटरप्राइजेज ऐसा करने का हकदार नहीं है क्योंकि किराया समझौता न तो पंजीकृत था और न ही उस पर सही मुहर लगी थी। लेकिन निचली अदालत ने पीएनबी (rent arier) की दलीलों को नहीं माना और साल 2018 में पीएनबी को श्रीनिवास एंटरप्राइजेज को 5.8 लाख रुपये किराए और रेंट एरियर के रूप में देने का आदेश दिया।


हाईकोर्ट ने पीएनबी के हक में सुनाया फैसला


पीएनबी बैंक ने रेंट एरिअर (rent arier rule) पर आए निचली अदालत के फैसले को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि रेंट एग्रीमेंट 11 महीने से ज्‍यादा समय के लिए बना था। 


इसलिए इसको रजिस्‍टर्ड कराना जरूरी था। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। इसलिए प्रॉपर्टी ओनर किराया बढ़ाने का हकदार नहीं है। साथ ही लिमिटेशन एक्‍ट (limitation Act) की धारा 52 के अनुसार 3 साल तक किराया ड्यू होते रेंट एरियर वसूलने के लिए वाद दायर करना होता है, लेकिन वादी ने ऐसा नहीं किया। इसलिए वह एरियर के लिए अपील करने का हकदार नहीं है।