Success Story - पढ़ने के लिया कभी नही लिया लाइब्रेरी का सहार, पहेल ही प्रयास में क्लियर कर दिया नीट 
 

कहते है पढ़ाई करने वालों के आड़े सुविधाएं को होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता, आज इसी कहावत को सच कर दिखाया है जौनपुर में रहने वाले किसान के बेट ने। जिसने मंदिर के बरामदे में पढ़कर पहले ही प्रयास में नीट में सफलता हासिल की है. आइए जानते है इनके बारे में। 
 
 

HR Breaking News, Digital Desk- 'कोई लक्ष्य बड़ा नहीं हारा वही जो लड़ा नहीं' इस कहावत को सच कर दिखाया है जौनपुर के एक छात्र ने. जिसने मंदिर के बरामदे में पढ़कर पहले ही प्रयास में नीट में सफलता हासिल की है. उसे 720 में से 613 अंक मिले हैं. छात्र के पिता छोटे किसान और मां गृहणी हैं. छात्र की सफलता में   गांव के रहने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर अखिलेश मोदवाल का बड़ा हाथ है. 

सुजानगंज थाना क्षेत्र के अरूवां गांव के रहने वाले मगन लाल यादव के बेटे सचिन यादव ने 12वीं तक की पढ़ाई मैथ्स से की थी. वह इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था. इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर की वजह से लॉकडाउन लग गया. जिसके चलते असिस्टेंट प्रोफेसर अखिलेश मोदवाल भी गांव आ गये. गांव आने के बाद उनका समय नहीं कट रहा था. तब उन्होने गांव के बच्चों को पढ़ाने की सोची. 

वह गांव के ही हनुमान मंदिर के बरामदे को पाठशाला बनाकर बच्चों को फ्री कोचिंग देने लगे. यहां सचिन भी पढ़ने के लिए आने लगा. डॉ अखिलेश ने उसकी प्रतिभा को परखने के बाद उसे बायोलॉजी सब्जेक्ट से दोबारा की पढ़ाई करने का सलाह दी. उनकी बात मानकर सचिन ने जीआईसी प्रयागराज में एडमिशन लिया. उसके बाद इण्टर और नीट की तैयारी एक साथ करने लगा.


अखिलेश मोदवाल के मार्गदर्शन और उसकी कड़ी मेहनत का परिणाम रहा कि उसने पहले की प्रयास में नीट की परीक्षा पास कर ली. उसे 720 अंकों में से 613 अंक मिले हैं, ओवर ऑल उसकी 15203 रैंक आयी है. सचिन का सफलता मिलते ही गांव में खुशी का माहौल है.

फोन पर बातचीत के दौरान सचिन ने बताया कि वह बेहद गरीब परिवार से आता है. उसके पिता मगन लाला यादव किसान हैं. खेत केवल दो बीघा है, जिससे केवल खाने के लिए अनाज पैदा होता है. सचिन बताया कि परीक्षा के एक महीने पहले उसके छोटे भाई की ब्लड कैंसर के चलते मौत हो गयी थी. 

सचिन की मां नगीना बताती हैं कि बेटा दिन-रात पढ़ता था. ना खाने का फिक्र न सोने की, हमें तो बड़ी चिंता रहती थी. पिता मगन लाल बताते हैं कि उनको अपने बेट पर गर्व है और उसके टीचर को बहुत-बहुत धन्यवाद जो समय-समय पर सही रास्ता दिखाये. सचिन ऐसे विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा बने हैं जो पैसों के अभाव में कोचिंग का सहारा नहीं ले पाते और निराश हताश हो जाते हैं, ऐसे में सचिन की कहानी अपने आप में प्रेरणा देती है.