Success Story- आंखों की रोशनी न होने पर भी हासिल की माइक्रोसॉफ्ट में नौकरी
HR Breaking News, Digital Desk- झारखंड के इंजीनियरिंग छात्र सौरभ प्रसाद उन लोगों के लिए एक मिसाल हैं जो दिव्यांगता और नेत्रहीनता को अपनी कमजोरी समझते हैं। महज 11 साल की उम्र में एक बीमारी की वजह से सौरभ के आंखों की रोशनी चली गई।
बावजूद इसके सौरभ ने अपने हौंसले की उड़ान को थमने नहीं दिया। नेत्रहीनता के बावजूद चतरा के लाल ने पूरी मेहनत से पढ़ाई की और अपने पिता के सपनों को साकार कर दिखाया। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में 51 लाख का पैकेज हासिल किया है।
पढ़ाई के जज्बे से मिली कामयाबी-
दिव्यांगता और नेत्रहीनता के कारण अकसर बच्चे या फिर युवा ठीक से स्कूलिंग नहीं कर पाते। उनके लिए आत्मविश्वास से लबरेज चतरा के सौरभ प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं। सौरभ बचपन से ही पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते थे, लेकिन 11 साल की उम्र में ग्लूकोमा नाम की बीमारी से पीड़ित हो गए। जिसके कारण कक्षा 3 के बाद उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई। बावजूद इसके सौरभ ने हार मानने के बजाय आगे की पढ़ाई ब्रेल लिपि में करने की ठान ली।
11 साल की उम्र में चली गई थी आंखें-
सौरभ के पिता महेश प्रसाद ने बताया कि बेटे की इच्छा देखकर उन्होंने भी पूरा सहयोग दिया। उन्होंने बेटे का नामांकन रांची के संत मिखाईल स्कूल में करा दिया, जहां से सौरभ ने सातवीं तक की पढ़ाई पूरी की। लेकिन सातवीं कक्षा के बाद उनकी जिंदगी में बड़ी रुकावट सामने आ गई। ब्रेल लिपि से आठवीं से दसवीं तक की किताबें ही नहीं छपी थी। ऐसे में सौरभ के पिता को भी लगा कि हमारी सारी मेहनत अब बेकार चली गई। उन्होंने बताया कि बहुत आग्रह करने पर सरकार की ओर से सहयोग मिली। सौरभ के लिए आठवीं से दसवीं तक की किताबें उपलब्ध कराई गईं।
सौरभ के पिता ने बताया बेटे को कैसे मिली कामयाबी-
सौरभ के पिता ने बताया कि इसके बाद बेटे का नामांकन आईबीएस देहरादून स्कूल में करवाया गया। वहां से सौरभ ने 10वीं की परीक्षा में 97 फीसदी अंक लाकर टॉप किया। इतना ही नहीं 93 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं भी पास की। जिसके बाद आईआईटी दिल्ली में सौरभ का सीएसई में नामांकन करवाया गया। वर्तमान में सौरभ सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं।
परिवार ने लगातार दिया सौरभ को सपोर्ट-
सौरभ के पिता बताते हैं कि बेटे की आंखों की रोशनी जाना, एक पल के लिए हमारे हौसलों को तोड़ दिया था। लेकिन बेटे ने हिम्मत नहीं हारी तो हम भी उसके हर कदम पर साथ चले। इसी का परिणाम है कि आज सौरभ माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी में जॉब पाकर घर परिवार के साथ पूरे प्रखंड और जिले का नाम रोशन कर दिया। वहीं मां बताती हैं कि बेटे की जब आंख की रोशनी गई तो हमें झकझोर कर रख दिया था। अब आखिर सौरभ के जीवन का पहिया कैसे चलेगा। लेकिन शायद सौरभ ने कुछ और ही ठाना था। इसी का परिणाम है कि आज सौरभ माइक्रोसॉफ्ट जैसी कम्पनी में जॉब पाया।
मेहनत और घर के सपोर्ट से माइक्रोसॉफ्ट में मिली नौकरी-
बहरहाल, सौरभ की इस सफलता से उन्हें सीख लेनी चाहिए कि अगर हौसले बुलंद हो तो दिव्यांगता और नेत्रहीनता आपके सफलता के रास्ते का रोड़ा कभी नहीं बन सकती। दिव्यांग और नेत्रहीन बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह अपने मां-बाप का नाम रोशन कर सकते हैं। बस जरूरत है उन्हें सही दिशा और मौका दिए जाने की।