Success Story: फीस भरने के लिए किया वेटर का काम,  21 साल की उम्र में बनकर दिखाया IAS
 

आज तक हमने बहुत से आईएएस अधिकारियों के संघर्ष और सफलता की कहानी आपसे साझा की है. आज जिस शख्सियत कि हम बाते करने जा रहे है उनके पास कभी अपनी फीस भरने  तक के रूपये नहीं थे जिसके लिए उन्होंने वेटर का काम किया, और आज महज 21 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से IAS बनकर दिखाया.
 
 

HR Breaking News, Digital Desk- आज तक हमने बहुत से आईएएस अधिकारियों के संघर्ष और सफलता की कहानी आपसे साझा की है. आज जिस शख्सियत से हम आपको मिलाने जा रहे हैं, उसकी कहानी सुनकर आप दांतो तले उंगली दबा लेंगे. अंसार को जानकर लगता है कि क्या यह हकीकत है या कोई फिल्म की स्क्रिप्ट सुनायी जा रही है.

यहां गरीबी है, भूख है, हर तरह का अभाव है और साथ है तो हर हालात में पढ़ाई करने का जज्बा, आईएएस ऑफिसर बनने का जुनून और अंत में जीत उस साहस की होती है जो कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खुद को थामे रहता है, बिखरने नहीं देता.

स्कूल छुड़ाने की हो गयी थी पूरी तैयारी-

अंसार के पिता अहमद शेख ऑटो रिक्शा चलाते थे और घर में मां-बाप के अलावा दो बहनें और एक भाई थे. कुल मिलाकर चार बच्चे और दो बड़े. पिता की कमाई से खर्चा पूरा नहीं पड़ता था इसलिये मां अज़ामत शेख भी लैंड लेबर का काम करती थीं. खेतों में काम करके जो थोड़ा बहुत पैसा मिलता था वे अंसार को पढ़ाई के लिये उपलब्ध कराती थीं. इसी बीच जब अंसार कक्षा 4 में थे तो उनके पिता को किसी ने सलाह दी कि इसकी पढ़ाई बंद कराओ और काम पर लगाओ तो दो पैसे घर आयें.

वैसे भी कौन सा पढ़ने से नौकरी मिल जायेगी. अंसार के पिता को बात समझ आयी और वे पहुंच गये स्कूल अंसार की पढ़ाई छुड़ाने. लेकिन भला हो अंसार के शिक्षक पुरुषोत्तम पडुलकर का जिन्होंने उनके पिता को कहा कि उसे पढ़ने दें वो पढ़ाई में बहुत अच्छा है. एक साक्षात्कार में अंसार बताते हैं कि अगर परुषोत्तम सर नहीं होते तो आज वे भी ऑटो ही चला रहे होते.

कंप्यूटर सीखने को बने वेटर-

यह बात कक्षा दसवीं की है. गर्मियों की छुट्टियों के दौरान अंसार को कंप्यूटर सीखने का मन किया. उस समय कंप्यूटर क्लास जिसे वे ज्वॉइन करना चाहते थे कि फीस 2800 के आसपास थी. अंसार ने फीस भरने के लिये पास के ही एक होटल में वेटर का काम करना शुरू कर दिया जहां उन्हें तीन हजार रुपये पगार पर रखा गया था.

सुबह 8 से रात 11 तक की इस नौकरी में बीच में दो घंटे का ब्रेक मिलता था. अंसार इसी ब्रेक में खाना खाते और कंप्यूटर क्लास अटेंड करने जाते. इस होटल में अंसार ने अपनी क्षमता से दोगुने साइज के पानी के बर्तन को कुंए से भरने से लेकर, टेबल पोछने और रात में होटल का फर्श साफ करने तक का काम किया. पर वे खुश थे कि अपनी फीस भर पा रहे हैं.

ऐसे आया ऑफिसर बनने का ख्याल-

बीपीएल वर्ग को मिलने वाली एक योजना का लाभ लेने जब अंसार के पिता ऑफिस पहुंचे तो वहां बैठे ऑफिसर ने अंसार के पिता से घूस मांगी और अंसार के पिता ने उन्हें घूस दी. तब अंसार को लगा कि इस करप्शन का शिकार हम जैसे गरीब लोग सबसे ज्यादा होते हैं. इसे मिटाने के लिये उन्हें भी ऑफिसर बनना है. ऑफिसर बनने की तो ठीन ली पर रास्ता नहीं पता था कि तभी दूसरों के माध्यम से मार्ग खुला. इस घटना के बाद अंसार के दसवीं के एक शिक्षक का चयन एमपीएससी में हो गया,

जिसे देखकर अंसार बहुत प्रभावित हो गये कि मुझे भी सर के जैसा ऑफिसर बनना है. दसवीं के बाद जब अंसार कॉलेज पहुंचे तो उनके एक और शिक्षक जो खुद एमपीएससी की तैयारी कर रहे थे ने अंसार को यूपीएससी के बारे में भी बताया, वस यहीं से उन्होंने मन बना लिया कि वे भी यह परीक्षा पास करेंगे. मजे की बात यह है कि अंसार का एमपीएससी परीक्षा में चयन नहीं हुआ.

डू और डाय वाले हालात थे-

अंसार के लिये यह सफर आसान नहीं था. दसवीं, बारहवीं यहां तक की कॉलेज के पहले साल भी अंसार ने हर साल छुट्टियों में काम किया लेकिन आखिरी दो साल वे पूरा फोकस पढ़ाई पर करना चाहते थे.

ऐसे में जब-जब पैसे की कमी आयी अंसार के भाई अनीस शेख जिन्होंने खुद अपनी पढ़ाई 5वीं में ही छोड़ दी थी और जोकि उम्र में अंसार से छोटे हैं ने हमेशा अंसार को पैसे भेजे. अंसार अपने मां-बाप के साथ ही भाई को भी अपनी इस सफलता का क्रेडिट देते हैं.

अंसार आगे बताते हैं कि यूपीएससी में असफलता का डर उन्हें कभी नहीं सताया क्योंकि वे जानते थे कि यह नहीं तो कुछ नहीं. उनके हालात उन्हें डू और डाई वाली स्थिति में ले आये थे जहां हारने का विकल्प था ही नहीं. लेकिन अंसार शेख की हिम्मत, मेहनत और जज्बे की दाद देनी होगी की साल 2015 में पहले ही प्रयास में उन्होंने 361वीं रैंक लाकर वो कर दिखाया जो बहुत से कैंडिडेट सभी सुविधाओं के बाद भी न जाने कितने प्रयासों में भी नहीं कर पाते. अंसार को पश्चिम बंगाल में नियुक्ति मिली.

जब अंसार का रिजल्ट आया तो उनके पास दोस्तों को ट्रीट देने तक के पैसे नहीं थे, उल्टा उनके दोस्तों ने उन्हें खाना खिलाया. अगर ऐसे अभावग्रस्त माहौल से निकला लड़का इतनी कम उम्र में आईएएस बन सकता है तो शायद किसी को भी बहानों के पीछे नहीं छिपना चाहिये. सच तो यह है कि अगर ठान लो तो मंजिल मिलती ही है वरना बहाने बनाने में तो जिंदगी निकल जाती है.